सीएफडी की समीक्षा

अंत में अछूतों के एक गांव में बसने के बाद, वह बच्चों को पढ़ाता हैं और ग्रामीणों को भूमि कर सीएफडी की समीक्षा के खिलाफ राहत के लिए उनकी लड़ाई में मदद करता हैं।
Ek Kahani Ki Samiksha “एक कहानी की समीक्षा” Hindi Essay 300 Words, Best Essay, Paragraph, Anuched for Class 8, 9, 10, 12 Students.
कहानी संग्रह’ की समीक्षा पिछले दिनों मैंने एक कहानी-संग्रह पढ़ा। इस कहानी-संग्रह का नाम ‘बुद्ध सीएफडी की समीक्षा का काँटा’ था। इसके संपादक थे श्री बलराम इसमें श्री चंद्रधर शर्मा गुलेरी जी की तीन कहानियाँ संकलित हैं: बुद्ध का काँटा, सीएफडी की समीक्षा उसने कहा था और सुखमय जीवन। कुछ आलोचक मानते हैं कि गलेरी जी की पहली कहानी ‘उसने कहा था’ नहीं थी बल्कि ‘घंटाघर’ थी। यह कार्लाइल की एक रचना से प्रेरित
गलेरी जी की बहुपठित कहानी ‘उसने कहा था’ है। यह 1915 में लिखी गई थी। इसमें अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति से छटपटाते भारतीय युवक की उदारता और वीरता सीएफडी की समीक्षा का चित्रण किया गया है। वह युवक लहनासिंह है। उसका बलिदान आज के युवकों को प्रेरणा देता है। उसने कहा था’ ऐसी कहानी है जिस पर उपन्यास लिखा जा सकता था। इस कहानी का कथावस्तु लंबा है। लेकिन जिज्ञासा और उत्सुकता के कारण पाठक इसे पूरी पढ़कर ही उठता है। भाषा में आंचलिकता है और संवादात्मकता है। कहानी को संवादात्मकता इसकी शक्ति है। कहानीकार आज के युवकों को संदेश देता है कि अपने देश पर हँसते-हँसते कुर्बान हो जाना चाहिए। ‘बुद्ध का काँटा’ उनकी दूसरी प्रसिद्ध कहानी है। ‘बुद्ध का काँटा’ का सीएफडी की समीक्षा कथानक उसी तरह भव्य है जिस तरह “सुखमय जोवन’ और ‘उसने कहा था’ का। नगेन्द्र जी ‘बुद्ध का काँटा’ को ‘सखमय जीवन’ सीएफडी की समीक्षा से अच्छी कहानी मानते हैं। ‘सुखमय जावन’ कहानी में गुलेरी जो ने ऐसे युवक की पोल खोली है जिसे दांपत्य जीवन का थोड़ा भी अनुभव नहीं है। ‘बुद्ध का काटा एसे विद्यार्थी की कहानी है जिसे संसार की वास्तविकता का तनिक भी ज्ञान नहीं है। इसकी नायिका भागवती और नायक रघुनाथ है। इनकी परस्पर नोंक-झोंक, छेड़छाड़ कहानी को अलग रंग देती है। इस कहानी में नायक का चुलबुलापन भी है और ग्रामीण सौन्दर्य भी। इन कहानियों में कला और लेखन के श्रेष्ठतम आयाम हैं। हिंदी साहित्य में ये तीनों कहानियाँ मील की पत्थर हैं।
Hindi Essay, Story on “Daulat Andhi Hoti Hai”, “दौलत अंधी होती है” Hindi Kahavat for Class 6, 7, 8, 9, 10 and Class 12 Students.
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कर्मभूमि-प्रेमचंद -पुस्तक समीक्षा
कर्मभूमि का प्रकाशन 1934 मे हुआ था | 1930 के दशक की शुरुआत में भारत के एक बड़े समूह में गरीब और अनपढ़ लोगों शामिल थे , इन गरीबों और मेहनतकश जनता के प्रति सहानुभूति और विदेशी अत्याचार के खिलाफ ही प्रेमचंद ने कर्मभूमि की पृष्ठभूमि लिखी।
गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन से बहुत प्रभावित होने के कारण, प्रेमचंद ने इस उपन्यास को गांधीजी द्वारा बनाए गए सामाजिक लक्ष्यों ( स्वच्छ सड़क , आवास,जल )के इर्द-गिर्द रचा ।
इस उपन्यास में मानव जीवन को एक ऐसे कर्म के क्षेत्र के रूप में दिखाया जाता है जिसमें व्यक्तियों के चरित्र और नियति उनके कार्यों के माध्यम से बनती और प्रकट होती है। प्रत्येक चरित्र नैतिक जागृति के एक बिंदु पर पहुचते हैं , जहां सभी पुरुष व स्त्री को अपने विश्वासों पर कार्य करना चाहिए।