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क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग

क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग

Bullish Trend in Hindi. स्टॉक मार्केट बुलिश ट्रेंड कैसे बनते हैं ?

कई बार हम एक्सपर्ट को यह बात करते हुए पाते हैं की, "स्टॉक मार्केट बुलिश ट्रेंड में शॉर्ट सेलिंग कभी ना करें।" आज हम यहाँ पर, इस बात के तथ्य जान लेते हैं। और यह भी की इस बात में कितना दम हैं !

अगर हम निफ़्टी, सेंसेक्स के चार्ट देखते हैं तो हमें यह मालूम होता है कि, स्टॉक मार्केट लंबी अवधि में लगातार बुलिश ट्रेंड में कामकाज कर रहा है। बुलिश ट्रेंड यह स्टॉक मार्केट का प्रमुख नैसर्गिक ट्रेंड है।

बुलिश ट्रेंड का मतलब क्या हैं ?

"लगातार बनती तेजी को स्टॉक मार्केट बुलिश ट्रेंड कहते हैं।" बुलिश ट्रेंड यह निवेशकों का भरोसा होता है इससे स्टॉक मार्केट ऊपर की तरफ बढ़ते ही जाता है।

स्टॉक मार्केट के बड़े शेयर्स की कीमतें लगातार बढ़ती जाती हैं। इससे प्रमुख इंडेक्स में भी लगातार बढ़त होने लगती हैं। कभी थोड़ी गिरावट होने के बाद और ज्यादा तेज गति से कीमतें बढ़ती हैं। इसे " स्टॉक मार्केट बुलिश ट्रेंड" कहते हैं।

उदाहरण

मेरे दोस्त के क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग भाई, "मि. एस कुमार" ने देखा की, सुबह स्टॉक मार्केट ऊपर ओपन हुआ और "दिन भर तेजी" में रहा। पिछले दिन भी स्टॉक मार्केट में इसी तरह से कामकाज हुआ है। पिछले हफ्ते में भी स्टॉक मार्केट "लगातार ऊपर की तरफ" बढ़ता गया है और पिछले महीने में भी काफी दिनों तक स्टॉक मार्केट ऊपर की चाल पकडे हुए हैं। चार्ट को और पीछे लेकर देखा तो उन्होंने जाना की, पिछले 6 महीनों से "स्टॉक मार्केट में बढ़त का सिलसिला कायम है।"

दोस्तों, जब भी कभी इस प्रकार की जानकारी को हम महसूस करते हैं तब हमें इस नतीजे पर पहुंचना ही होता है कि, स्टॉक मार्केट में बुलिश ट्रेंड चल रहा है। और आगे भी कई दिनों तक या महीनों तक भी यह ट्रेंड कंटिन्यू हो सकता है।

बुलिश ट्रेंड क्यों बनते हैं ?

अग्रेसिव बायिंग के सौदों के कारण बुलिश ट्रेंड बनते हैं। बुलिश ट्रेंड बनने के प्रमुख 3 कारणों के बारे में हम यहां पर जानकारी लेते हैं।

1 ) फंडामेंटल चेंज

जब भी कभी देश की अर्थव्यवस्था में फंडामेंटली चेंज आ जाता है तब स्टॉक मार्केट में बहुत ही बढ़िया बुलिश ट्रेंड बनता है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था में फंडामेंटली चेंजेस और बिजनेस करने के लिए अनुकूलता निर्माण होती जाती है, वैसे वैसे स्टॉक मार्केट में तेजी की हुंकार बढ़ती जाती है। ऐसे बुलिश ट्रेंड जो की फंडामेंटल चेंजेस के कारण बनते हैं यह 3 से 5 सालों तक चल सकते हैं।

2 ) पॉलीटिकल चेंज

जब भी कभी देश में, खराब नीतियों वाली सरकार जाने की और नई सरकार आने की संभावना दिखाई देती है तब स्टॉक मार्केट में बुलिश ट्रेंड बनता हुआ दिखाई देता है। ऐसे बुलिश ट्रेंड 1 से 3 सालों तक चल सकते हैं। बनी हुई नई सरकार अगर अच्छे कदम उठाती है, अच्छे फैसले लेती है जिससे कि इकोनामी में प्रगति हो तो स्टॉक मार्केट में बुलिश ट्रेंड काफी लम्बे वक्त तक चलता है। इससे सभी को लाभ मिलता है।

3 ) विदेशी निवेश

ऊपरी दो अंतर्गत कारणों के अलावा कई सारे इंटरनेशनल गतिविधियों के कारण भी विदेशी निवेश में इजाफा होता है। इससे स्टॉक मार्केट में बुलिश ट्रेंड बनता हैं। इस तरह से बनने वाली तेजी एक साल तक चल सकती हैं।

बुलिश ट्रेंड कैसे बनते हैं ?

यह सिच्युएशन पर डिपेंड करता हैं। एक जैसे सिच्युएशंस पर अलग-अलग बुलिश ट्रेंड बन सकते है। इस वजह से हिस्टोरिकल चार्ट का स्टडी करके, अगले इवेंट के अंदाजे पूरी तरह सही साबित नहीं होते।

Bullish Trend on Nifty 50 Weekly Chart in Hindi.

इसलिए यहाँ पर हम निफ़्टी के बुलिश ट्रेंड का एक मॉडल लेकर इसे समज़ने की कोशिश करेंगे। इससे हमें यह मालूम हो जाएगा की, बुलिश ट्रेंड कैसे बनता हैं ?

इस तेजी की शुरुआत एप्रिल 2020 में हुई हैं। 12420 के बड़े रेजिस्टेंस को ब्रेक करने के बाद बनी यह तेजी अभी तक कायम रही हैं। निफ़्टी में तकरीबन 4000 पॉइंट्स तक की बढ़त इस ट्रेंड में देखने को मिली हैं। और यह बुलिश ट्रेंड आगे भी जारी रह सकता है।

ख़राब और जोखिम भरी स्थिति के बाद निफ़्टी के स्टॉक्स में खरीददारी के अच्छे मौके बने। निवेशकों ने गिरावट में खरीददारी शुरू की। इससे निफ़्टी ने, अपने जाने. 2020 के ऑल टाइम हाई को ब्रेक किया। तब से यह बुलिश ट्रेंड चल रहा है।

जैसा की हम सभी जानते ही हैं की, बुलिश ट्रेंड की हर गिरावट निवेश का मौका होता है। यह बात जून 2022 से बनी बढ़त से क्लियर होती है।

बुलिश ट्रेंड में स्टॉक मार्केट अग्रेसिव बढ़त दर्शाता हैं। ऐसे में हर एक रेजिस्टेंस आसानी से ब्रेक होते जाता है। इस ट्रेंड में निवेश और ट्रेडिंग के सभी फायदे एवं जोखिम को ध्यान में लिया जाए तो यह स्पष्ट हो जाता हैं की, बुलिश ट्रेंड में शॉर्ट सेलिंग के सौदे लेना समजदारी नहीं है। एक्सपर्ट्स की इस बात में दम हैं। इसलिए हमें इस राय पर जरूर अंमल करना चाहिए। ठीक हैं ?

महत्वपूर्ण बात

स्टॉक मार्केट में बुलिश ट्रेंड चल रहा हो तो यह हमारे ट्रेडिंग परफॉर्मेंस पर प्रभाव डाल सकता है। इसमें हमें बुलिश ट्रेंड के अनुसार ही ट्रेडिंग करनी चाहिए। ऐसा करने के लिए हमें अपनी "ट्रेडिंग स्ट्रेटजी बुलिश ट्रेंड के अनुकूल बनानी चाहिए।" ठीक है ? और जाहिर सी बात हैं की, इससे हमारे प्रॉफिट में बढ़ोतरी होंगी।

बुलिश ट्रेंड के बारे में हमने यह जाना

स्टॉक मार्केट में अप ट्रेंड, डाउन ट्रेंड और साइड वेज ट्रेंड बनते रहते हैं। इनमे से अप ट्रेंड अगर लम्बे समय तक एक्टिवेट रहता है तो बुलिश ट्रेंड चल रहा हैं ऐसा माना जाता है।

"बुलिश ट्रेंड स्टॉक मार्केट का मूल स्वभाव होता है।" स्टॉक मार्केट में लम्बे समय के क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग लिए हमेशा निवेश होते रहते हैं। इससे यह ट्रेंड कायम रहता है। इस ट्रेंड में होने वाली गिरावट निवेश के लिए अवसर बनती है।

ट्रेडिंग के नजरिए से देखा जाए तो बुलिश ट्रेंड में खरीददारी के सौदे ज्यादा क्वांटिटी के साथ लेना फायदेमंद रहता हैं।

सर्वश्रेष्ठ पांच प्रवृत्ति संकेतक

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आपने कभी सोचा कि निवेश बाजार कैसे काम करता है। हां, व्यापारी शेयर, कमोडिटी, मुद्राओं आदि को खरीदते और बेचते हैं, लेकिन वे अपने कारोबार का आधार चार्ट, कैंडलस्टिक पैटर्न और प्रवृत्ति संकेतकों सहित कई कारकों का विश्लेषण करने के बाद बनाते हैं। ये उपकरण कारोबारियों को बाजार की गतिविधियों और निवेश के जोखिम का विश्लेषण करने में मदद करते क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग हैं। कारोबारी आम तौर पर कई अलग-अलग संकेतकों का उपयोग करते हैं लेकिन यहां पर सर्वोत्तम दिए गए हैं।

शीर्ष 5 सर्वश्रेष्ठ प्रवृत्ति संकेतक

निम्नलिखित संकेतक सबसे अच्छा प्रवृत्ति संकेतक के रूप में माना जाता है:

बोलिंगर बैंड संकेतक

बोलिंगर बैंड सबसे व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले प्रवृत्ति संकेतकों में से एक है, खासकर खुदरा कारोबारियों के बीच। अमेरिकी वित्तीय विश्लेषक, जॉन बोलिंगर द्वारा पेश किया गए, इन संकेतकों के दो उपयोग हैं – ये कारोबारियों को प्रवृत्ति की स्थिति दिखाते हैं और ये बाजार में अस्थिरता को मापने में मदद करते हैं। बोलिंगर बैंड संकेतक में तीन बैंड होते हैं, जो परिसंपत्तियों की कीमत का बारीकी से पालन करते हैं, मध्य बैंड एक गतिमान औसत के रूप में सेवा करता है, उदाहरण के लिए, एक घातीय गतिमान औसत। सूचकांक के सिरे परिसंपत्ति की कीमत का पालन करते हुए इसकी अस्थिरता को दर्शाते हैं। बैंड करीब आने पर अस्थिरता कम हो जाती है, जो एक ब्रेकआउट आसन्न बनाता है।

गतिमान औसत कन्वर्जेंस डाइवर्जेंस संकेतक

गतिमान औसत कन्वर्जेंस डाइवर्जेंस संकेतक, जिसे MACD सूचक के रूप में भी जाना जाता है, शीर्ष प्रवृत्ति संकेतकों में से एक है। यह ऑसिलेटिंग सूचक शून्य के आसपास उतार-चढ़ाव करता है और प्रवृत्ति और गति दोनों को मापने में मदद करता है। जबकि MACD सूचक गणना के लिए सरल गतिमान औसत का पालन करता है, इसमें कई अतिरिक्त सुविधाएं भी हैं जो आपको हाल ही के गतिमान औसत का विश्लेषण पुरानों की तुलना में करने में सहायता करती हैं। MACD सूचक का प्रयोग इकलौते प्रवृत्ति सूचक की तरह करने के स्थान पर इसके अन्य तकनीकी संकेतकों के मिलाना बेहतर है।

सापेक्षिक शक्ति सूचकांक सूचक

सापेक्षिक शक्ति सूचकांक सूचक(रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स इंडिकेटर) एक और ऑसीलेटिंग प्रवृत्ति संकेतक है जो ट्रेंडिंग हो रहे शेयरों के लिए अत्यधिक बाजार भावनाओं को मापने में मदद करता है। RSI सूचक पर, संपत्ति को बाजार में अतिक्रयित( overbought ) और अतिब्रिकी( oversold ) माना जाता है, जिससे एक प्रवृत्ति बन जाती है। तो यदि सूचक 100 में से 70 रीड करता है, तो इसका मतलब है कि एक परिसंपत्ति को अधिक खरीदा गया है, और बाजार सुधार करीब है। इसके विपरीत, यदि सूचक 30 से नीचे की सीमा तक पहुंचता है, तो परिसंपत्ति को अतिबिक्री के रूप में माना जाता है।

औसत दिशात्मक सूचकांक संकेतक

औसत दिशात्मक सूचकांक प्रवृत्ति कारोबार सूचक प्रवृत्तियों और गति का विश्लेषण करने में मदद करती है। यह सूचक कारोबारियों को कारोबार कर रही संपत्ति की कीमत ताकत का आकलन करने की अनुमति देते हुए, मुख्य रूप से एक विशिष्ट प्रवृत्ति की ताकत को मापता है। अनुमान सकारात्मक और नकारात्मक दोनों दिशाओं में किया जाता है। ADX सूचक में एक रेखा शामिल है जो शून्य और 100 के बीच उतार चढ़ाव करती है। यदि यह 25 और 100 के बीच मूल्यों को इंगित करता है, तो आप कह सकते हैं कि एक मजबूत प्रवृत्ति हो रही है। इसके विपरीत, यदि परिसंपत्ति का मूल्य 25 से नीचे गिर जाता है, तो एक प्रवृत्ति को कमजोर पड़ी हुई कहा जाता है।

ऑन बैलेंस वॉल्यूम इंडिकेटर

ऑन बैलेंस वॉल्यूम इंडिकेटर, जिसे ओबीवी ट्रेंड इंडिकेटर के रूप में भी जाना जाता है, एक और लोकप्रिय उपकरण है जो सुरक्षा की मात्रा प्रवृत्ति को मापने में सहायता करता है। मात्रा को एक महत्वपूर्ण पूरक उपाय माना जाता है जिसका उपयोग मूल्य रुझानों की पुष्टि करने के लिए किया जाता है कि क्या प्रवृत्ति कम या उच्च संख्या में कारोबार में हो रही है। आमतौर पर, यदि कारोबारों की उच्च या कम मात्रा के साथ अपवर्ड या डाउनट्रेंड होते हैं, तो इसे उस विशेष प्रवृत्ति के लिए सहायक संकेत माना जाता है।

अधिकांश नए लोग कारोबार करते समय झुंड मानसिकता का पालन करने की गलती करते हैं। वे मित्रों और रिश्तेदारों से कारोबारी सलाह लेते हैं। हालांकि, अगर आप अपने निवेश को सार्थक बनाना चाहते हैं, तो आपको एंजेल वन जैसे विशेषज्ञों से संपर्क करना चाहिए। एंजेल वन में, हम आपको आवश्यक चार्ट, डेटा और प्रवृत्ति संकेतक प्रदान करते हैं, जो आपको सूचित निवेश निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।

क्या होती है ये हॉर्स ट्रेडिंग… अभी तो राजनीति में काफी ट्रेंड में है मगर इसकी शुरुआत कहां से हुई?

Horse Trading In Politics: जब भी राजनीति में सरकार पर संकट आता है तो हॉर्स ट्रेडिंग का नाम सामने आने लगता है और अभी राजस्थान में ऐसे आरोप लग रहे हैं. ऐसे में जानते हैं इस शब्द की कहानी.

क्या होती है ये हॉर्स ट्रेडिंग. अभी तो राजनीति में काफी ट्रेंड में है मगर इसकी शुरुआत कहां से हुई?

TV9 Bharatvarsh | Edited By: मोहित पारीक

Updated on: Jun 08, 2022 | 4:20 PM

जब भी किसी प्रदेश में सरकार खतरे में आती है तो विधायकों को होटल में एक साथ रखने आदि का सिलसिला शुरू हो जाता है. सरकार बचाने के लिए कई तरह के कदम उठाए जाते हैं और ये हम कर्नाटक, राजस्थान जैसे राज्यों में देख चुके हैं. फिर जब भी इस तरह की स्थिति बनती है तो न्यूज चैनल से लेकर राजनीतिक गलियारों में और सोशल मीडिया पर एक शब्द चर्चा में आ जाता है और वो शब्द है हॉर्स ट्रेडिंग (Horse Trading). राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे पर हॉर्स ट्रेडिंग का आरोप लगाती है. वैसे इस पूरे मामले में घोड़ों को खरीदने और बेचने की बात तो कहीं भी नहीं आती, फिर भी हॉर्स ट्रेडिंग शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है.

ऐसे में आज हम आपको ये ही बताने जा रहे हैं कि आखिर ये हॉर्स ट्रेडिंग क्या है, इसका इतिहास क्या है और भारतीय राजनीति में उथल-पुथल के दौर में इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है और इस हॉर्स ट्रेडिंग की पूरी कहानी क्या है…

क्या है हॉर्स ट्रेडिंग का मतलब?

अगर हॉर्स ट्रेडिंग के शाब्दिक अर्थ की बात करें तो इसका मतलब है घोड़ों का व्यापार. इस शब्द का प्रयोग पहले वाकई में घोड़ों की खरीद फरोख्त के संदर्भ में ही होता था. रिपोर्ट्स के अनुसार, करीब 1820 के आस-पास घोड़ों के व्यापारी अच्छी नस्ल के घोड़ों को खरीदने के लिए बहुत जुगाड़ और चालाकी का प्रयोग करते थे. इसे लेकर घोड़ों को छिपाना, उनकी पूंछ दिखाना जैसी कहानियां प्रचलित है. दरअसल, घोड़ों की खरीद-फरोख्त धीरे-धीरे एक मुहावरा बन गई है.

कैंब्रिज डिक्शनरी के हिसाब से इसका मतलब बताया जाता है, ‘अनौपचारिक बातचीत जिसमें किसी भी दो पार्टियों के लोग ऐसी आपसी संधि करते हैं जहां दोनों का फायदा क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग होता है.’ अब इस तरह की जहां भी खरीद-फरोख्त होती है, वहां इस फ्रेज का इस्तेमाल कर दिया जाता है.

राजनीति में कहां से आया ये शब्द?

अब राजनीति में इसका इस्तेमाल कब से होने लगा, इसका तो कोई फिक्स वक्त नहीं है. लेकिन, भारतीय राजनीति में भी इसका इस्तेमाल लंबे वक्त से हो रहा है. राजनीति में जब किसी को लालच देखकर काम साधने की कोशिश हुई तो इसके लिए भी हॉर्स ट्रेडिंग वाले मुहावरा का इस्तेमाल होने लगा. लेकिन, ये सवाल भी है कि आखिर राजनीति में होने वाली खरीद फरोख्त के लिए हॉर्स ट्रेडिंग ही क्यों इस्तेमाल होती है, किसी दूसरे जानवर का इस्तेमाल क्यों नहीं. ऐसे में इसका जवाब ये है कि गुप-चुप में होने वाली ट्रेडिंग के लिए हॉर्स ट्रेडिंग का ही इस्तेमाल इसलिए इसे भी राजनीति की ट्रेडिंग भी हॉर्स ट्रेडिंग ही है.

वैसे एक बार सुप्रीम कोर्ट ने भी ये सवाल उठाया था. साल 2014 में आम आदमी पाटी की ओर से बड़े स्तर पर खरीद-फरोख्त किए जाने के आरोपों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, आखिर इसे घोड़े का कारोबार (क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग हॉर्स ट्रेडिंग) क्यों कहा जाता है, आदमियों का क्यों नहीं. जस्टिस एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आप की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फली एस नरीमन द्वारा बड़े पैमाने पर खरीद फरोख्त किए जाने का आरोप लगाए जाने पर यह चुटकी ली थी.

राजनीति में क्या होती है हॉर्स ट्रेडिंग?

अब बात करते हैं राजनीति में किन स्थितियों को हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है. दरअसल, जब एक पार्टी, दूसरी पार्टी के सदस्यों लाभ का लालच देते हुए अपने में मिलाने की कोशिश करती है, जहां यह लालच पद, पैसे या प्रतिष्ठा का हो सकता है. इस तरह की डील को हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है. अक्सर सरकार बनाने या बचाने के वक्त या फिर वोटिंग के वक्त इसका इस्तेमाल किया जाता है.

Intraday Trading kaise kare in Hindi

दोस्तों, बात शेअर मार्केट की हो और Intraday कि चर्चा ना हो ऐसा हो सकता है क्या? इंट्राडे ट्रेडिंग दिखने में जितनी आसान दिखती है उतनी ही पेचीदा होती हैं.Intraday Trading Kaise kare इसीलिए आपके पैसे को सेफ रखने के लिये और उसे बढ़ाने के लिये हम आपके लिये Intraday Trading के नुस्खे बतायेंगे जिसे अगर आप समझते हैं तो बड़े आसानी से और विचारपुर्वक आप इंट्राडे ट्रेडिंग कर सकते हों.
इंट्राडे ट्रेडिंग वहीं कर सकता है जो शेअर मार्कट का गणित समजता हैैं.आपने अभी अभी शेअर मार्केट पे आई सोनी कि वेबसेरिज देखी ही होगी जिसका नाम था स्कैम 1992 जो की भारत के सबसे बढे स्कैंम हर्षित मेहता पर बनी थी इसमें एक डायलॉग है जो कि देखा जाये तो इसमें बहुत सच्चाई हैं वह डाॅयलाॅग यह था कि शेअर मार्केट इतना बढ़ कुआं है कि हर एक कि प्यास बुझा सकता हैं, हालाकी यह सच भी लेकिन बिना नाॅलेज के यह आपको डुबा भी सकती हैं.

Intraday Trading Tricks & Tips in Hindi 2021

इससे पहले हमने आपको शेअर मार्केट के आधारित बहुत से विषय थे जिनके बारे में पुरे विस्तार से बताया है यह भी आप पढ़ सकते हैं.

इंट्रा-डे ट्रेडिंग क्या होती हैं?

अगर हम किसी Stock को आज के दिन ही खरिदते है और आज के दिन हि बेचते हैं तो इस इंट्रा-डे कहते हैं.
अगर आपने उसे बेचा नहीं तो क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग भी ऑटोमैटिक वह स्केअर अप यानी एक्सिट हो जाता हैं जैसे ही ट्रेंडिंग का समय खत्म होता हैं.
इंट्रा-डे में आपको कम पैसों में ज्यादा शेअर खरिदने मिलते हैं यानी ज्यादा नफा और इसका उल्टा ज्यादा रिस्क भी, कुछ भी हो जाये आपको नुकसान हो या फायदा वह दिन के आखिर में पता लग ही जायेंगा.

अगर आप इंट्राडे करते हैं तो हम कुछ टिप्स और ट्रिक्स आपको बताने जा रहे हैं.

इंट्रा-डे ट्रेडिंग करने के 7 टिप्स और ट्रिक्स:

1. ओवर ट्रेडिंग से दुर रहें

यह सबसे महत्वपूर्ण बातों में से एक बात है अगर आप नये नये स्टाॅक मार्केट में आहे हो तो क्योंकि ज्यादातर लोग इसी कारण नुकसान में रहते हैं.
ओवर ट्रेडिंग मतलब जादा ट्रेंड लेना और अपने रिस्क को बढाना.
जब हम इंट्रा-डे करना चाहते हैं तो पहले ही यह फिक्स करले कि आप कितने ट्रेंड ज्यादा से ज्यादा लेंगे इससे होगा ये कि आपका कॅपिटल बच जायेगा और आप अगले दिन ट्रेंड ले पायेंगे.
ज्यादातर लोग अगर थोड़े लाॅस में जाते हैं तो उसको रिकव्हर करने के लिये बादमें फिर बिना सोचे समझे ट्रेंड में घुस जाते हैं और ज्यादा नुकसान कर बैठते हैं.
एक बाद हमेशा याद रखिये जिस दिन मार्केट आपके ऍनालायसिस में मेल खायेगा तब आपको प्रोफिट होना तय है लेकिन जबरदस्ती ट्रेंड ना लें इससे गलती होने कि जादा चान्सेस हो जाते हैं.

2. चुनिंदा स्टेटर्जी पर काम करें
इंट्रा-डे में यह छोटी छोटी बातें ही हिरो या जेरो बना देती हैं. बहुत से लोग ज्यादातर नये नये मार्केट में पैर रखनेवाले किसी स्टॅटर्जी को सुनते हैं या देखते हैं और उसी पे ट्रेंड करना चालु कर देते हैं थोड़े दिन उससे प्रोफिट भी मिलता हैं लेकिन एक दिन ऐसा आता है की यह काम नहीं करता तो उसे छोड़कर दुसरे स्टेटर्जी को ढुढने लग जाते हैंं, और वह भी किसी दिन नहीं चलती तो और कोई तिसरी स्टॅटर्जी,ऐसे में आपको लाॅस होना तय हैं क्योंकी कोई भी कितनी भी अच्छी स्टॅटर्जी हो वह १०० प्रतिशत कभी नहीं वर्क करेगी इसलिये चुनिंदा स्टेटर्जी पर ही काम करें भले एक दो दिन के लिये नुकसान हो लेकिन महिने के आखिर में या साल के एंड में आप उसे सही तरिके से फोलो करते हो तो आप फायदे में ही रहोगें.

3. स्टाॅपलाॅस लगाने कि आदत डालें

कितना भी आपको Confidence हो कि शेअर प्राइस आपके डायरेक्शन में जायेंगी लेकिन स्टाॅपलाॅस लगाना ना भुले क्योंकी किसी एक न्युज से या ज्यादा सेलर आने से कई बार एक ही केंडल में प्राइस गलत डायरेक्शन में जाता है इससे हमारा ज्यादा नुकसान हो सकता हैं इसलिये स्टाॅपलाॅस क्या है ट्रेंड ट्रेडिंग लगाने कि आदत हमेशा डाले.
टार्गेट सेट करना इतना महत्वपूर्ण नहीं है लेकिन एक ट्रेंड में हमारा ज्यादा से ज्यादा कितना नुक्सान हम सह सकते उतना ही स्टाॅपलास आपका होना चाहिये और उसके हिसाब से आपको ट्रेंड में उतरना चाहियें.
अगर रिस्क को सही से हम मैनेज करना हम सिख गये तो‌ नुकसान होना नामुमकिन हैं.

4. ट्रेंड लेने से पहले एनालायसिस करें ट्रेंड लेने के बाद नहीं
जितना रिसर्च करना है वह ट्रेंड लेने से पहले करें बाद में या तो आपका स्टाॅपलाॅस हिट होना चाहिये या तो टार्गेट , कई लोग ट्रेंड में इंट्री लेने के बाद उसकी एनालिसिस करने बैठ जाते हैं और वह स्टाॅक प्राॅफिट भी दे रहा होगा तो भी आखिरी तक हम गलत स्टॅटर्जी से बाहर निकल जाते हैं और नुकसान कर बैठते हैं , एक बार अगर ट्रेंड ले लेते हैं तो एक तो स्टाॅपलाॅस हिट करना चाहिये या तो आपका टार्गेट बिच में एनालिसिस करना बैठना गलत बात हैं.
अगर आप इमोशन नहीं कंट्रोल कर सकते तो कुछ भी नहीं प्रोफिट क्या पायेंगे.

5. इंट्रा-डे में टेक्निकल एनालाइसेस कि समझ होना जरुरी हैं

इंट्रा-डे में फंडामेंटल एनालासिस कि ज्यादा जरुरत नहीं होती लेकिन टेक्निकल एनालिसिस कि जानकारी होना बहुत जरुरी होती हैं. इंट्राडे में हम स्टाॅक को ज्यादा देर नहीं लेके करते इसलियें Fundamental Analysis ज्यादा मायने नहीं रखते लेकिन technical Analysis कि ज्यादा नाॅलेज होनी जरुरी है अगर आप Intraday Trading करना अथवा सिखना चाहतें हैं तो.

6. कम स्टाॅक को रखें वाॅचलिस्ट में
अगर आप सभी स्टाॅक की एनालायसिस करने बैठ जायेंगे तो यह नामुमकिन हैं की आपको फायदा होगा, लेकिन अगर आप कुछ 8 से 10 स्टाॅक पर हि ज्यादा ध्यान देकर उनमें ही ट्रेंड करने की सोचेंगे तो सही होगा क्योंकि अगर आप ज्यादा share पर ध्यान देंगे तो आप कन्फुज हो जायेंगे इसलिये जितना हो सके कम स्टाॅक्स को चुने इससे आप लक्ष ज्यादा देकर सही ट्रेंड लेनी कि प्रोबेबिलिटी को बढ़ा सकेंगे.
अगर आप चुनिंदा ही स्टाॅक में ज्यादा समय ट्रेंड करते हो तो उसकी Moment का पता आपको लग जायेगा कि यह स्टाॅक कितना Volatile हैं कितना Movement दिनभर दे सकता है यह आपको बाद में Predict करना आसान जायेगा.

7. पेड़ सब्सक्रिप्शन और न्युज के चक्करों में ना पड़ें

नये लोग जो भी इंट्रा-डे करने आ जाते हैं वह ज्यादा प्रोफिट कमानें के चक्कर में आ जाते हैं जो कि शुरुवात में न्युज देखकर या पेंड सब्सक्रिप्शन को पैसे देकर आ जाते हैं लेकिन सच कहे तो जबतक आप खुद मार्केट को पुरी तरह से ना समझते हो तब तक आप इसमे से किसी चक्कर में ना पड़ें क्योंकी पहले पहले देखने में यह काफी आसान लगता है लेकिन हम जब असली में इनके बताते ट्रेंड लेते हैं तो कई बार शुरवात में प्रोफिट होता भी है लेकिन ज्यादातर बार हम हमारा कॅपिटल भी बचा नहीं पाते.
ऐसा नहीं है कि सभी पेड़ सब्सक्रिप्शन और न्युज गलत होती है लेकिन जब-तब आपको शेअर मार्केट कि नाॅलेज ना हो तब तब इंट्रा-डे के चक्कर में ना ही पड़ना बेहतर हैं.

आपने क्या सीखा:

इस आर्टिकल में हमने आज सीखा कि Intraday Trading Kaise Kare उसके टिप्स, इंट्रा-डे ट्रेंडिंग के लिये ऐसे कौन कौन से टिप्स और ट्रिक्स है और यह करते वक्त हमें कौन कौन सी बातों का ध्यान रखना होता है यह भी सभी देखना होगा तभी जाके हम इंट्रा-डे में प्रोफिट कर सकते हैं नहीं तो १०० में से ९५ प्रतिशत लोग नुकसान ही करते हैं अगर हम इंट्रा-डे कि बात करें.

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