मूल्य सीमाएं

Issue price range मुद्दा मूल्य-सीमा का
ONGC की गैस पर मूल्य सीमा की सिफारिश कर सकती है पारेख समिति
सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के पुराने क्षेत्रों से निकलने वाली प्राकृतिक गैस के लिए मूल्य सीमा तय की जा सकती है। सरकार द्वारा किरीट पारेख की अगुवाई में नियुक्त गैस मूल्य समीक्षा समिति इसकी सिफारिश कर सकती है। सीएनजी और पाइपलाइन से आने वाली रसोई गैस पीएनजी की कीमतों में नरमी लाने के लिए ऐसा किया जाएगा।
हालांकि, मुश्किल क्षेत्रों से निकलने वाली गैस के लिए मूल्य निर्धारण फॉर्मूले को नहीं बदला जाएगा।
अधिकारियों ने बताया कि किरीट पारेख समिति को ‘‘भारत में गैस-आधारित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए बाजार-उन्मुख, पारदर्शी और भरोसेमंद मूल्य निर्धारण व्यवस्था’’ सुनिश्चित करने के लिए सुझाव देने का काम सौंपा गया था। समिति को यह भी तय करना था कि अंतिम उपभोक्ता को उचित मूल्य पर गैस मिले।
अधिकारियों ने कहा कि इसके लिए समिति दो अलग-अलग मूल्य निर्धारण व्यवस्था का सुझाव दे सकती है।
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ओएनजीसी) और ऑयल इंडिया लिमिटेड (ओआईएल) के पुराने क्षेत्रों से निकलने वाली गैस के लिए मूल्य सीमा तय करने की सिफारिश की जा सकती है। इन क्षेत्रों में लंबे समय से लागत वसूली जा चुकी है।
किरीट पारेख पैनल ने 1 जनवरी 2026 से गैस की कीमतों को पूरी तरह से नियंत्रण मुक्त करने का सुझाव दिया है
भारत में गैस मूल्य निर्धारण फॉर्मूले की समीक्षा के लिए भारत सरकार द्वारा गठित किरीट पारेख पैनल ने 30 नवंबर को भारत सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।पैनल ने 1 जनवरी, 2026 से भारत में गैस की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने के लिए कई सिफारिशें की हैं।
सितंबर में, सरकार ने उचित मूल्य सुनिश्चित करने के उद्देश्य से देश में उत्पादित गैस के लिए गैस मूल्य निर्धारण फार्मूले की समीक्षा करने के लिए ऊर्जा विशेषज्ञ और पूर्व योजना आयोग (जिसका नाम बदलकर नीति आयोग रखा गया है) के सदस्य किरीट पारिख के नेतृत्व में समिति का गठन किया था।
समर्थन मूल्य पर चना बेचने के लिए पंजीयन सीमा में की गई वृद्धि, 29 जून तक की जाएगी चने की खरीद
देश में अभी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चना खरीद का काम ज़ोरों पर चल रहा है। ऐसे में सरकार ने ऐसे किसानों को बड़ी राहत दी है जिन किसानों ने अभी तक समर्थन मूल्य पर चना बेचने के लिए पंजीयन नहीं कराया था। राजस्थान सरकार ने राज्य में किसानों से समर्थन मूल्य पर चना खरीद के लिए पंजीयन अवधि को आगे बढ़ा दिया है। जिससे ऐसे किसान जिन्होंने समर्थन मूल्य पर अपनी उपज बेचने के लिए पंजीयन नहीं कराया था वह किसान भी अब पंजीयन कराकर 29 जून तक बेच सकते हैं।
राजस्थान सरकार ने राज्य में चना खरीद के लिए पंजीयन सीमा को 10 मूल्य सीमाएं प्रतिशत तक बढ़ा दिया है। राजस्थान के सहकारिता मंत्री श्री उदय लाल आंजना ने कहा कि समर्थन मूल्य पर 29 जून तक की जा रही चना खरीद के लिए पंजीयन सीमा को 10 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। इस वर्ष राज्य में समर्थन मूल्य पर चने की खरीद केंद्र सरकार द्वारा घोषित मूल्य 5230 रूपए प्रति क्विंटल पर की जा रही है।
किसान 2 मई से करा सकेंगे चने के लिए पंजीयन
राजस्थान में समर्थन मूल्य पर चना बेचने के लिए सभी जिलों के 564 क्रय केन्द्रों पर चना बेचने के लिए किसान क्षेत्र के क्रय केन्द्र या ई-मित्र केन्द्र पर 2 मई से पंजीयन करा सकते है। इस निर्णय से राज्य के 21 हजार 529 किसानों को फायदा मिलेगा। राज्य में अभी तक 19191 किसानों को चना तुलाई की दिनांक आवंटित की जा चुकी हैं। समर्थन मूल्य पर 8,121 किसानों ने 17,331 मीट्रिक टन चना बेचान किया हैं, जिसकी राशि 90.64 करोड़ रुपए हैं।
चना समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए किसानों को ऑनलाइन पंजीयन करते समय जनआधार कार्ड, बैंक पासबुक एवं गिरदावरी की प्रति पंजीयन फार्म के साथ अपलोड करनी होगी। किसान को आधार आधारित बायोमैट्रिक अभिप्रमाणन पर पंजीयन करवाना होगा। सभी किसान अपना मोबाईल नम्बर आधार में लिंक करवा लें, ताकि किसानों को समय रहते तुलाई दिनांक की सूचना प्राप्त हो सके। किसान यह सुनिश्चित करें कि जनआधार कार्ड में अपने बैंक खाते नम्बर को अंकित करें ताकि खाता संख्या एवं आई.एफ.एस.सी. कोड में यदि कोई विसंगति नही रहे ताकि भुगतान के समय परेशानी ना हो।
अमेरिका क्यों चाहता है कि भारत रूसी तेल की मूल्य सीमा तय करने वाले गठजोड़ का हिस्सा बनें ?
वर्तमान समय में अमेरिका के स्वभाव से पूरी दुनिया वाकिफ मूल्य सीमाएं होने लग गई है। दो देशों को किस तरह युद्ध की आग में झोंककर अमेरिका स्वयं पीछे हट जाता है यह रूस और यूक्रेन युद्ध के दौरान देखने को मिल ही गया। यही कारण है कि जो अमेरिका कभी पूरी दुनिया पर अपनी दादागिरी चलाया करता था, उसकी छवि अब एक कमजोर देश के रूप में बदलने लगी हैं। इसी के चलते जो अमेरिका कभी भारत को डराता और धमकाता था, आज उसके लिए भारत का साथ बेहद ही आवश्यक होता चला जा रहा है।अमेरिका किसी भी हाल मूल्य सीमाएं में भारत को अपने पाले के लिए बेकरार हो रहा है।
दरअसल अब अमेरिका चाहता है कि भारत रूसी तेल की मूल्य सीमा तय करने वाले गठजोड़ का हिस्सा बनें। इसका उद्देश्य रूस के लिए आय के साधनों को बाधित करना और वैश्विक ऊर्जा कीमतों मूल्य सीमाएं को नरम बनाना है। कच्चे तेल की कीमत 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक होने पर अमेरिका समेत दूसरे जी-7 देश रूसी तेल पर मूल्य सीमा लागू करने पर विचार विमर्श कर रहे हैं।
भारत रूस की बढती मित्रता देख अमेरिका बौखलाया
अमेरिका के उप वित्त मंत्री वैली अडेयेमो हाल ही में तीन दिनों की भारत यात्रा पर आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने इन्हीं मुद्दों पर चर्चा की। इस दौरान अडेयेमो ने अपने एक बयान में कहा कि “रूस के ऊर्जा और खाद्यान्न व्यापार को प्रतिबंधों से बाहर रखा गया। भारत जैसे देश स्थानीय मुद्रा सहित किसी भी मुद्रा का प्रयोग करके सौदे कर सकते हैं।” उन्होंने यह भी दावा किया कि “भारत ने रूस से आने वाले तेल के दाम की सीमा तय करने वाले प्रस्ताव पर ‘गहरी दिलचस्पी’ दिखाई है।” उन्होंने कहा कि “मूल्य सीमा तय होने से रूस को मिलने वाले राजस्व में कमी आएगी।”
अमेरिकी उप वित्त मंत्री के अनुसार यह उपभोक्ताओं के लिए ऊर्जा की कीमतों को कम करने के उद्देश्य के अनुरूप है। इस बारे में हम उन्हें (भारत को) सूचनाएं दे रहे हैं और विषय पर संवाद जारी रखेंगे। गौरतलब है कि युद्ध की शुरुआत से ही देखने को मिलाकि भारत ने रूस या यूक्रेन में से किसी एक का पक्ष चुनने से परहेज किया। भारत ने भले ही किसी का साथ नहीं दिया, परंतु कही न कही अमेरिका की जगह रूस के पक्ष में खड़ा रहा। हालांकि भारत ने जो भी निर्णय लिए वो स्वयं के फायदे को ध्यान में रखकर किए। सस्ते दाम में भारी मात्रा में तेल खरीदने के साथ हमने रूस के साथ अपने पक्के संबंध भी बरकरार रखे।
भारत के आगे अमेरिका के सारे दांव फेल
अमेरिका को अपने सभी दांव स्पष्ट तौर पर फेल होते हुए नजर आ रहे हैं। परंतु अभी भी अमेरिका भारत को अपने इशारों पर चलाने की कोशिश कर रहा है और इसलिए वो चाहता है कि भारत इस रूस विरोधी गठजोड़ का हिस्सा बने, जिसे भारत और रूस की साझेदारी टूट जाए। हालांकि ऐसा प्रतीत है कि अमेरिका बार-बार यह भूल जाता है कि अब उसका सामना एक नए भारत से हो रहा है, जो किसी के भी इशारों पर नहीं चलता। ना ही कोई भारत को अपने इशारों पर चला सकता हैं। भारत अपना हर निर्णय स्वयं लेने में पूरी तरह से सक्षम हैं। वही फैसले भारत लेता है, जो उसके स्वयं के लिए फायदेमंद हो।
रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर पश्चिमी देशों द्वारा जताई जाने वाली आपत्ति को मूल्य सीमाएं लेकर भारत कई बार करारा जवाब देता आया है।विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका के ज्ञान को लेकर आईना दिखाते हुए अपने एक बयान में कहा था कि “भारत रूस से जितना तेल एक महीने में खरीदता है, यूरोप उसे ज्यादा आयात महज एक दोपहर तक कर डालता है।”
Issue price range मुद्दा मूल्य-सीमा का
Issue price range मुद्दा मूल्य-सीमा का
Issue price range इस मसले पर यूरोपियन यूनियन में तीखे मतभेद उभर चुके हैं। मूल्य सीमाएं भारत और चीन इसमें शामिल होंगे, इसकी संभावना कम है। दरअसल, पश्चिम के प्राइस कैप को ना मानने वाले देशों की सूची इन दोनों देशों के अलावा और भी लंबी हो सकती है।
Issue price range क्या सचमुच पश्चिमी देश रूस के कच्चे तेल पर मूल्य सीमाएं प्रस्तावित मूल्य सीमा को लागू कर पाएंगे? यूरोप में इसको लेकर जो विरोध उभरा है, उसे देखते हुए यह आसान नहीं लगता। यह साफ सामने आया है कि कई यूरोपीय देश अब ऐसा कदम उठाने के पक्ष में नहीं हैं, जिससे उनका ऊर्जा संकट और बढ़े। इसी का परिणाम है कि इस मसले पर यूरोपियन यूनियन (ईयू) में तीखे मतभेद उभर चुके हैं। भारत जैसे देश तो पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे ऐसे किसी कदम का हिस्सा नहीं बनेंगे। जाहिर है, चीन भी इसमें शामिल नहीं होगा।