विदेशी मुद्रा ब्रोकर समीक्षाएं

विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है

विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है

रुपए की कमी: संपत्ति चाहने वालों को अब खरीदना चाहिए या इंतजार करना चाहिए?

मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव, विभिन्न तरीकों से किसी देश के अचल संपत्ति बाजार को प्रभावित कर सकता है – सेवाओं की लागत और इस्पात और सीमेंट जैसे कच्चे माल को श्रम मजदूरी, परिवहन लागत और उप-कंट्रैक्टिंग के प्रभाव से प्रभावित करने से आर्किटेक्ट्स, इंजीनियरों और बिल्डर्स। विदेशी मुद्राओं के मुकाबले रुपये में गिरावट आम तौर पर कमजोर आर्थिक स्वास्थ्य का संकेत है। एक कमजोर रुपया बजट में वृद्धि और परियोजनाओं के समय सीमा में देरी कर सकता है, जिससे, impacलंबे समय तक खरीदारों और बिल्डरों को समान रूप से टिंग करें।

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अपनी ही करंसी क्यों गिराती हैं सरकारें ? कमजोर रुपये के फायदे भी जानें

डॉलर के मुकाबले रुपया बुधवार, 15 दिसंबर को पिछले डेढ़ साल के सबसे निचले स्तर तक गिर गया. यानी एक डॉलर की कीमत 76 रुपये के पार. आपने लोगों को यह कहते भी विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है सुना होगा कि सरकार कुछ करती क्यों नहीं? इसकी सीधी जिम्मेदारी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) पर आती है. लेकिन कहा यह भी जा रहा है कि सेंट्रल बैंक खुद नहीं चाहता कि रुपये की गिरावट थमे. बल्कि वह तो दिसंबर के अंत तक देसी करंसी को 76.50 रुपये के लेवल तक गिरते देखना चाहता है. वह ऐसा क्यों करेगा भला ? लेकिन ऐसा होता है. दुनिया भर की सरकारें और उनके केंद्रीय बैंक कई बार जान-बूझकर भी अपनी करंसी विदेशी मुद्रा के मुकाबले कमजोर रखते हैं. ऐसा कुछ समय के लिए ही होता है. लेकिन कई बार हालात ऐसे बन जाते हैं कि यह मजबूरी लंबी खिंच जाती है और चाहकर भी करंसी ऊपर नहीं आ पाती. जैसा तुर्की और कई अन्य देशों में देखने को मिल रहा है.
तो क्या अपना रिजर्व बैंक भी रुपये को चढ़ते नहीं देखना चाहता ? इसके जवाब और इससे जुड़ी तमाम कड़ियां सुलझाने से पहले हम एक अच्छी खबर सुनाते हैं. भारत का निर्यात 1 से 14 दिसंबर के बीच 44.41 फीसदी बढ़कर 16.46 अरब डॉलर पर पहुंच गया। इसमें बड़ा योगदान कमजोर रुपये का भी रहा. एक्सपोर्ट बढ़ने से व्यापार घाटे को काबू करने में भी थोड़ी मदद मिली. यानी गिरता रुपया हमेशा बुरी खबर लेकर नहीं आता. यहीं से हम उन तमाम पहेलियों को सुलझाते चलेंगे, जो किसी भी देश में गिरती करंसी और बढ़ती महंगाई के इर्द-गिर्द घूमती हैं.

गिरता रुपया कैसे बढ़ाता है एक्सपोर्ट ?

मान लीजिए भारत से कोई व्यापारी अमेरिका को लेदर-बैग एक्सपोर्ट करता है. भारतीय मुद्रा का मूल्य 70 रुपये प्रति डॉलर मानकर चलिए। एक बैग की कीमत 1000 रुपये है. अमेरिकी इम्पोर्टर 500 बैग का ऑर्डर देता है और प्रति बैग 1000 रुपये के हिसाब से करीब 7,142 डॉलर का भुगतान कर देता है. सिलसिला चलता रहता है. एक दिन अचानक वह अमेरिकी इम्पोर्टर भारतीय एक्सपोर्टर से कहता है- ' यही बैग मुझे इंडोनेशिया में सस्ता पड़ रहा है. तुम दाम घटाओ'. भारतीय एक्सपोर्टर अपनी लागत और मजबूरियों का हवाला देकर दाम घटाने से इनकार कर देता है. अमेरिकी व्यापारी भारत से माल मंगाना बंद कर देता है. कुछ समय बाद पता चलता है कि रुपये का मूल्य गिरकर 75 रुपये प्रति डॉलर हो गया है. तब वही अमेरिकी व्यापारी भारतीय निर्यातक से फिर माल मंगाना शुरू कर देता है. दाम पुराना ही है, लेकिन अमेरिकी व्यापारी को यह सौदा अब करीब 35,714 रुपये सस्ता पड़ता है. उसे हर कंसाइनमेंट पर 7,142 डॉलर की जगह 6,666 डॉलर ही देने पड़ते हैं. यानी पहले जितना खर्च में ही वह 35 बैग अतिरिक्त मंगा सकता है. रुपया कमजोर बना रहता है और कई अन्य अमेरिकी इम्पोर्टर भी भारतीय एक्सपोर्टर्स को ऑर्डर देने लगते हैं. बाहर से आने वाले महंगे डॉलर पर भारतीय निर्यातक को जो नुकसान हो रहा था, उसकी भरपाई व्यापार बढ़ने से हो जाती है. लेकिन एक्सपोर्ट की मात्रा बढ़ने से पूरी इकनॉमी में असका असर दिखता है. देश का कुल निर्यात बढ़ने लगता है.

व्यापार घाटे का करंसी कनेक्शन

जब कोई देश बाहर से ज्यादा माल मंगाए और कम माल बाहर भेजे, तब व्यापार घाटे (Trade Deficit) की नौबत आ जाती है. आर्थिक भाषा में इसे नकारात्मक व्यापार संतुलन ( Negative Trade Balance) भी कहते हैं. घरेलू करंसी कमजोर होने से इस मोर्चे पर राहत मिलती है. मसलन, विदेशी करंसी महंगी होगी तो उनके लिए भारत का माल सस्ता होगा और भारतीयों के लिए विदेशी माल महंगा हो जाएगा. यानी इम्पोर्ट के मुकाबले एक्सपोर्ट बढ़ेगा. सरकारी खजाने के मोर्चे पर इससे चालू खाते (Current Account) की सेहत सुधरेगी. यह बात अलग है कि जब देश में बाहरी सामान पर निर्भरता बहुत ज्यादा हो, तो इम्पोर्ट बिल एक सीमा से कम नहीं हो सकता. मसलन, भारत अपनी जरूरत का 83% कच्चा तेल बाहर से आयात करता है. इसके अलावा मोबाइल फोन, खाने का तेल, दलहन, सोना-चांदी, रसायन और उर्वरक का भी बड़े पैमाने पर आयात होता है. रुपया कमजोर होने से ये चीजें देश में महंगी हो जाती हैं. लेकिन दूसरी तरफ भारत से बड़े पैमाने पर कल-पुर्जे, चाय, कॉफी, चावल, मसाले, समुद्री उत्पाद, मीट जैसे सामान का निर्यात होता है. ऐसे में रुपया कमजोर होने से एक्सपोर्ट ऑर्डर बढ़ जाता है. ज्यादा निर्यात यानी ज्यादा डॉलर. ऊपर से महंगा डॉलर अंदर आकर ज्यादा रुपया बन जाता है.

RBI कैसे करता है मनी कंट्रोल ?

भारत विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है में रुपये का मूल्य सरकार तय नहीं करती. यह पूरी तरह फॉरेन एक्सचेंज मार्केट के हवाले होता है. डिमांड और सप्लाई की हालत इसकी कीमत तय करती है. हालांकि साल 1975 तक करंसी रेट में सरकार का दखल खूब हुआ करता था. जैसा कि चीन सहित दुनिया के कई देशों में अब भी होता है. फिर आरबीआई रुपये को गिराने या चढ़ाने में कैसे कारगर हो सकता है? यह सब कुछ इनडायरेक्ट होता है. मसलन, मौजूदा हालात को ले लें, तो पिछले कई महीनों से RBI बड़े पैमाने पर डॉलर की खरीदारी कर रहा है. वह जितना ज्यादा डॉलर खरीदेगा, रुपये पर दबाव बनता जाएगा. वह गिरेगा. आरबीआई के कुल ऐसेटे्स में विदेशी मुद्रा की हिस्सेदारी करीब तीन चौथाई होती है. दिसंबर के शुरू में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 636.9 अरब डॉलर था. विदेशी मुद्रा भंडार में एक्सपोर्ट, बाहर से शेयरों और म्यूचुअल फंड में निवेश, पर्यटन सहित कई स्रोतों से इजाफा होता है. लेकिन जब आरबीआई बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा खरीदने लगता है तो इसे भंडार में कृत्रिम इजाफे के तौर पर देखा जाता है और देसी करंसी कमजोर पड़ती जाती है. आरबीआई यह भंडार हमेशा के लिए जमा नहीं रखता. मुफीद मौका पाकर बेचता भी है. आखिर उसकी कोशिश भी आर्थिक गतिविधियों, महंगाई और पैसे के प्रवाह को संतुलित रखने की होती है. आरबीआई जब विदेशी मुद्रा की बिकवाली शुरू करता है, तब रुपया मजबूत होने लगता है. फॉरेक्स एक्सपर्ट्स का कहना है कि अगर आरबीआई ने अभी खजाने में जमा डॉलर बेचना शुरू नहीं किया तो दिसंबर के अंत तक रुपया 77 के स्तर को पार कर जाएगा.
रुपये को कंट्रोल करने का दूसरा और पारंपरिक टूल है ब्याज दरें बढ़ाना. आरबीआई अपने पॉलिसी रेट (Repo, Reverse repo, CRR) में जैसे ही इजाफा करेगा, ब्याज दरें बढ़ेंगी. फिर करंसी की किल्लत होगी. रुपये की डिमांड बढ़ेगी. यह डिमांड वैसे तो देखने में घरेलू लगती है, लेकिन बाहर से आने वाले निवेश के चलते यह फॉरेन एक्सचेंज मार्केट में भी रुपये को मजबूती देती है.करंसी मार्केट के जानकारों की मानें तो रुपये के 76.50 के स्तर तक जाते ही आरबीआई हरकत में आ जाएगा और इसे थामने के उपाय करेगा. अब आप यह भी समझ गए होंगे कि आरबीआई जैसी स्वायत्त संस्था की कमान किसी को सौंपने से पहले सरकारें इतनी कसरत क्यों करती हैं. माना जाता है कि ज्यादातर देशों में रिजर्व बैंक के गवर्नर सरकार के इशारे पर ही पॉलिसी रेट तय करते हैं. भारत में भी आरबीआई गवर्नर की नियुक्ति में राजनीतिक दखल की चर्चा हमेशा होती रहती है.

आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास

चीन से तुर्की तक करंसी कंट्रोल

अपनी करंसी का मूल्य घटाकर ग्लोबल ट्रेड में कैसे खेला जाता है, इसकी सबसे बड़ी मिसाल चीन है. पचास साल पहले ग्लोबल ट्रेड में महज 1% हिस्सेदारी रखने वाला चीन आज दुनिया का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर है. ग्लोबल ट्रेड में अमेरिका (8.1 %) और जर्मनी (7.8%) के मुकाबले चीन की हिस्सेदारी (15%) यानी करीब दो गुना है. पीपल्स बैंक ऑफ चाइना (PBOC) चीन में मनी सप्लाई को कंट्रोल करता है. यह सरकार का ही अंग माना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में चीन की व्यापार नीति का यह अहम टूल रहा है कि डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा युआन का मूल्य घटाए रखा जाए. इससे उसे अपना एक्सपोर्ट बढ़ाने में खासी मदद मिली. 'दुनिया की फैक्टरी' का तमगा हासिल कर चुके चीन का बुनियादी ढांचा इतना मजबूत है कि वह कम लागत पर ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सकता है. ऐसे में बेहद कम मार्जिन पर माल बेचते हुए भी बंपर वॉल्यूम के दम पर वह लगातार दुनिया के बाजारों में माल उतार सकता है. उसके निर्यात के मुकाबले आयात कम है. ऐसे में करंसी की कमजोरी का उसे उतना नुकसान नहीं होता, जितना अतिरिक्त एक्सपोर्ट के रूप में फायदा मिल जाता है. पीपल्स बैंक ऑफ चाइना युआन को कॉम्पिटिटिव यानी सस्ता बनाए रखने के लिए ब्याज दरों में कटौती जैसे पारंपरिक टूल भी आजमाता है. तुर्की की करंसी लीरा में इस साल डॉलर के मुकाबले 45 फीसदी की गिरावट देखी गई है. वहां महंगाई और बेरोजगारी चरम पर है. लेकिन प्रेसिडेंट रेचेप तैय्यब अर्दोआन ब्याज दरें कम से कम रखने की अपनी नीति पर अड़े हुए हैं. ऐसे ही दुनिया के कई देश आर्थिक हालात सुधारने खासकर निर्यात बढ़ाने या व्यापार घाटा कम करने के लिए करंसी गिराने का सहारा लेते हैं. कुछ सरकारें अपने कर्ज पर ब्याज भुगतान कम से कम करने के लिए भी इस टैक्टिस का सहारा लेती हैं.

वीडियो: बैंकों में जमा 49% रकम की गारंटी नहीं, जानिए हकीकत में कितना सेफ है आपका पैसा?

अपने विदेशी मुद्रा ब्रोकर का भुगतान कैसे करें

मार्केट मेकर लुभाने व्यापारियों के लिए इस्तेमाल करते हैं। वे कोई विनिमय शुल्क या नियामक शुल्क, कोई डेटा शुल्क और सबसे अच्छा, कोई कमीशन नहीं देने का वादा करते हैं । नए व्यापारी के लिए बस व्यापार व्यवसाय में तोड़ना चाहते हैं, यह सच होने के लिए बहुत अच्छा लगता है।

लेनदेन की विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है लागत के बिना व्यापार स्पष्ट रूप से एक फायदा है। हालांकि, अनुभवहीन व्यापारियों के लिए सौदेबाजी की तरह लगने वाला सबसे अच्छा सौदा उपलब्ध नहीं हो सकता है – या यहां तक ​​कि एक सौदा भी। यहां हम आपको दिखाएंगे कि विदेशी मुद्रा ब्रोकर शुल्क / कमीशन संरचनाओं का मूल्यांकन कैसे करें और वह ढूंढें जो आपके लिए सबसे अच्छा काम करेगा।

आयोग की संरचनाएं

विदेशी मुद्रा में दलालों द्वारा कमीशन के तीन रूपों का उपयोग किया जाता है। कुछ फर्म एक निश्चित प्रसार की पेशकश करते हैं, अन्य एक चर प्रसार की पेशकश करते हैं और फिर भी अन्य लोग प्रसार के प्रतिशत के आधार पर कमीशन लेते हैं। तो सबसे अच्छा विकल्प कौन सा है? पहली नज़र में, ऐसा लगता है कि निश्चित प्रसार सही विकल्प हो सकता है, क्योंकि तब आपको पता होगा कि वास्तव में क्या उम्मीद है। हालांकि, इससे पहले कि आप कूदें और एक चुनें, आपको कुछ चीजों पर विचार करने की आवश्यकता है।

एक ब्रोकर के मामले में जो एक वैरिएबल स्प्रेड प्रदान करता है, आप एक ऐसी स्प्रेड की अपेक्षा कर सकते हैं जो कई बार 1.5 पिप्स जितनी कम हो या पांच पिप्स जितनी ऊंची हो, यह मुद्रा जोड़ी के ट्रेड होने और मार्केट की अस्थिरता के स्तर पर निर्भर करता है।

कुछ ब्रोकर बहुत कम कमीशन लेते हैं, शायद एक पाइप के दो-दसवें हिस्से को, और फिर आप से प्राप्त ऑर्डर फ्लो को एक बड़े मार्केट मेकर को दे देंगे, जिनके साथ उनका पेशेवर रिश्ता है। ऐसी व्यवस्था में, आप एक बहुत ही तंग फैलाव प्राप्त कर सकते हैं जो केवल बड़े व्यापारियों तक ही पहुंच सकता है।

विभिन्न दलाल, विभिन्न सेवा स्तर

तो आपके व्यापार पर कमीशन के नीचे की रेखा के प्रभाव का प्रत्येक प्रकार क्या है? यह देखते हुए कि सभी दलालों को समान नहीं बनाया जाता है, यह उत्तर देने के लिए एक कठिन प्रश्न है। इसका कारण यह है कि आपके व्यापार खाते के लिए सबसे अधिक लाभप्रद वजन होने पर खाते में लेने के लिए अन्य कारक हैं।

उदाहरण के लिए, सभी ब्रोकर समान रूप से बाजार बनाने में सक्षम नहीं हैं । विदेशी मुद्रा बाजार एक है पर्ची के बिना बाजार, जो बैंकों, का मतलब है कि प्राथमिक बाजार निर्माताओं, अन्य बैंकों और कीमत एग्रीगेटर्स (खुदरा ऑनलाइन दलालों), के आधार पर के साथ रिश्ते हैं पूंजीकरण और साख प्रत्येक संगठन की। इसमें कोई गारंटर या एक्सचेंज शामिल नहीं हैं, बस प्रत्येक खिलाड़ी के बीच क्रेडिट समझौता है । इसलिए, जब यह एक ऑनलाइन बाजार निर्माता की बात आती है, उदाहरण के लिए, आपके ब्रोकर की प्रभावशीलता बैंकों के साथ उनके संबंधों पर निर्भर करती है, और ब्रोकर उनके साथ कितनी मात्रा विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है में करते हैं। आमतौर पर, उच्च-मात्रा वाले विदेशी मुद्रा खिलाड़ियों को तंग फैलता है।

यदि आपके बाज़ार निर्माता का बैंकों की एक पंक्ति के साथ एक मजबूत संबंध है और कह सकते हैं, 12 बैंकों के मूल्य उद्धरण, तो ब्रोकरेज फर्म औसत बोली पारित करने और अपने खुदरा ग्राहकों से कीमतें पूछने में सक्षम होंगे। मुनाफे के लिए प्रसार को थोड़ा चौड़ा करने के बाद भी, डीलर उन प्रतिस्पर्धियों से अधिक प्रतिस्पर्धी प्रसार पारित कर सकता है जो अच्छी तरह से पूंजीकृत नहीं हैं।

यदि आप एक ब्रोकर के साथ काम कर रहे हैं जो आकर्षक स्प्रेड पर गारंटीकृत तरलता की पेशकश कर सकता है, तो यह वही हो सकता है जिसे आपको देखना चाहिए। दूसरी ओर, यदि आप जानते हैं कि आप हर बार व्यापार करते समय पैसे के निष्पादन को प्राप्त कर रहे हैं, तो आप एक निश्चित पाइप स्प्रेड का भुगतान करना चाहते हैं । स्लिपेज, जो तब होता है जब आपके व्यापार की पेशकश की गई कीमत से दूर किया जाता है, यह एक लागत है जिसे आप सहन नहीं करना चाहते हैं।

एक कमीशन ब्रोकर के मामले में, चाहे आप एक छोटे से कमीशन का भुगतान करें, यह इस बात पर निर्भर करता है कि ब्रोकर क्या पेशकश कर रहा है। उदाहरण के लिए, मान लीजिए कि आपका ब्रोकर आपको एक छोटा कमीशन देता है, आमतौर पर एक पाइप के दो-दसवें हिस्से के क्रम में, या लगभग $ 2.50 से $ 3 प्रति 100,000 यूनिट व्यापार, लेकिन बदले में आप एक मालिकाना सॉफ्टवेयर प्लेटफॉर्म तक पहुंच प्रदान करते हैं जो कि सबसे बेहतर है ऑनलाइन ब्रोकर्स प्लेटफॉर्म, या कुछ अन्य लाभ। इस मामले में, इस अतिरिक्त सेवा के लिए छोटे कमीशन का भुगतान करने के लायक हो सकता है।

एक विदेशी मुद्रा ब्रोकर चुनना

एक व्यापारी के रूप में, आपको ब्रोकर को तय करने के प्रकार के अलावा, ब्रोकर पर निर्णय लेते समय हमेशा कुल पैकेज पर विचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, कुछ ब्रोकर उत्कृष्ट प्रसार की पेशकश कर सकते हैं, लेकिन उनके प्लेटफार्मों में प्रतियोगियों द्वारा पेश की जाने वाली सभी घंटियाँ और सीटी नहीं हो सकती हैं। जब एक ब्रोकरेज फर्म के चयन, आप निम्नलिखित की जांच करनी चाहिए:

  • फर्म कितना पूंजीकृत है?
  • व्यापार में कब से है?
  • फर्म का प्रबंधन कौन करता है और इस व्यक्ति के पास कितना अनुभव है?
  • फर्म के साथ किन और कितने बैंकों के रिश्ते हैं?
  • प्रत्येक माह यह कितनी मात्रा में लेन-देन करता है?
  • ऑर्डर आकार के संदर्भ में इसकी तरलता की गारंटी क्या है?
  • इसकी मार्जिन पॉलिसी क्या है?
  • यदि आप अपनी स्थिति को रातोंरात पकड़ना चाहते हैं तो इसकी रोलओवर नीति क्या है?
  • क्या फर्म पॉजिटिव कैरी से गुजरती है, अगर कोई है तो?
  • क्या फर्म रोलओवर ब्याज दरों में प्रसार को जोड़ता है?
  • यह किस तरह का मंच प्रदान करता है?
  • क्या इसके पास कई ऑर्डर प्रकार हैं, जैसे “ऑर्डर कैंसिल ऑर्डर” या “ऑर्डर ऑर्डर भेजता है”?
  • क्या यह ऑर्डर मूल्य पर आपके स्टॉप लॉस को निष्पादित करने की गारंटी देता है?
  • क्या फर्म के पास एक डीलिंग डेस्क है?
  • यदि आपका इंटरनेट कनेक्शन खो गया है और आपके पास एक खुली स्थिति है तो आप क्या करते हैं?
  • क्या फर्म वास्तविक समय में पी एंड एल जैसे सभी बैक-एंड कार्यालय कार्य प्रदान करती है?

तल – रेखा

भले ही आपको लगता है कि एक चर प्रसार का भुगतान करते समय आपको एक सौदा मिल रहा है, आप अन्य लाभों का त्याग कर सकते हैं। लेकिन एक बात निश्चित है: एक व्यापारी के रूप में, आप हमेशा प्रसार का भुगतान करते हैं और आपका ब्रोकर हमेशा इसे अर्जित करता है। सबसे अच्छा सौदा संभव करने के लिए, एक प्रतिष्ठित ब्रोकर चुनें जो अच्छी तरह से पूंजीकृत है और बड़े विदेशी-विनिमय बैंकों के साथ मजबूत संबंध हैं। सबसे ज़्यादा पसंदीदा करंसीयों के फैलाव की जाँच करें। बहुत बार, वे 1.5 पिप्स के रूप में कम होंगे। यदि यह स्थिति है, तो एक वैरिएबल स्प्रेड एक निश्चित स्प्रेड की तुलना में सस्ता हो सकता है। कुछ ब्रोकर आपको एक निश्चित स्प्रेड या एक चर का विकल्प भी प्रदान करते हैं। अंत में, व्यापार का सबसे सस्ता तरीका एक बहुत ही प्रतिष्ठित बाजार निर्माता के साथ है जो आपको अच्छी तरह से व्यापार करने के लिए आवश्यक तरलता प्रदान कर सकता है।

GYANGLOW

लोगों के द्वारा कल्पना किया जाता है कि क्या होगा जल्दी पूरी दुनिया के लिए एक ही मुद्रा प्रणाली हो? किसी भी प्रकार की वित्तीय गतिविधि को निष्पादित करने के लिए एक ही मुद्रा लागू करें। इस लेख में एकल मुद्रा प्रणाली के लाभ और नुकसान के बारे में पढ़ेंगे।

एकल मुद्रा प्रणाली के लाभ

आइए एक नजर डालते हैं कि क्या होगा यदि दुनिया के पेशेवरों और विपक्षों का मूल्यांकन करके एक मुद्रा हो। एकल विश्व मुद्रा के लाभ सभी के लिए स्पष्ट हैं;

1. मुद्रा विनिमय शुल्क का उन्मूलन

जब आप एक मुद्रा का दूसरे के लिए आदान-प्रदान कर रहे होते हैं, तो मुद्रा विनिमय शुल्क हमेशा शामिल होते हैं। बैंक इस शुल्क को आपके हाथ में मुद्रा को किसी अन्य विदेशी मुद्रा में बदलने की सेवा करने के लिए चार्ज करते हैं, जिसकी आपको आवश्यकता होती है। यह शुल्क तब भी लिया जाता है जब आप विदेश में रह रहे अपने मित्र या करीबी रिश्तेदार को विदेशी मुद्रा भेजना चाहते हैं। एक विश्व मुद्रा इस समस्या का समाधान करेगी। दुनिया में कहीं भी यात्रा करें और आप उसी मुद्रा का उपयोग करने में सक्षम होंगे और इस प्रकार विनिमय शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं है।

2. धन का बेहतर उपयोग

जब हम इसे करने वाले देशों के पैमाने पर मुद्रा विनिमय पर विचार करते हैं, तो यह बिंदु बहुत स्पष्ट हो जाता है। जब देशों को मुद्रा बदलने के लिए मुद्रा विनिमय शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं होगी तो वे पैसे की बचत करेंगे और अन्य क्षेत्रों में इसका बेहतर उपयोग करने में सक्षम हो सकते हैं। यूरोप का उदाहरण यहां सटीक बैठता है। यूरोपीय आयोग का अनुमान है कि यूरोपीय संघ में यूरो को एकल मुद्रा के रूप में अपनाने के बाद, देशों द्वारा हर साल लगभग 13 से 20 बिलियन यूरो बचाए गए थे, जिन्हें उनके बीच व्यापार करने के लिए विनिमय शुल्क का भुगतान करने की आवश्यकता नहीं थी। यह हमें हमारे अगले बिंदु पर लाता है …

3. व्यापार का मुक्त प्रवाह

विभिन्न देशों के लिए अलग-अलग मुद्राएं और उनकी बदलती विनिमय दरें व्यापार के मुक्त प्रवाह में बाधा हैं। जब एक एकल विश्व मुद्रा लागू की जाती है तो यह देशों के बीच व्यापार और लेनदेन की मात्रा को बढ़ावा देगी। वस्तुओं के आयात और निर्यात में मूल्य पारदर्शिता होगी। जब 1992 में यूरोप का आर्थिक और मौद्रिक संघ बनाया गया और यूरो को सामान्य मुद्रा के रूप में अपनाया गया, तो यूरोपीय संघ के सदस्यों के बीच व्यापार में 8 से 16% की वृद्धि हुई!

अब जब हमने एक विश्व मुद्रा के लाभों पर चर्चा कर ली है, तो मामला काफी सीधा सा लगता है ?? अब आप पूछ रहे होंगे कि हमने अभी तक ऐसा क्यों नहीं किया! हमने एक भी मुद्रा क्यों नहीं अपनाई? ऐसा इसलिए है क्योंकि वर्तमान में, पेशेवरों की संख्या एक विश्व मुद्रा के नुकसान से अधिक नहीं है।

एकल मुद्रा प्रणाली के नुकसान

यही कारण है कि हम पूरी दुनिया के लिए एक मुद्रा का उपयोग नहीं करते हैं

1. हर देश की आर्थिक स्थिति अलग होती है।

एक विश्व मुद्रा की स्थापना का मतलब एक केंद्रीय बैंक बनाना होगा जिसके पास मुद्राओं को प्रिंट करने और ब्याज दरें निर्धारित करने का एकमात्र अधिकार है।
अब आप इस बात से सहमत हो सकते विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है हैं कि प्रत्येक देश में प्रचलित आर्थिक स्थितियाँ भिन्न और अनूठी हैं। एक केंद्रीय बैंक को निष्पक्ष कार्य करना चाहिए और इसलिए एक क्षेत्र को दूसरे क्षेत्र के पक्ष में आर्थिक नीतियां नहीं बना सकता है। इसे दुनिया भर में समान ब्याज दरों के साथ एक समान आर्थिक नीति तैयार करनी चाहिए, चाहे अलग-अलग देशों की आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। हालाँकि, वैश्विक स्तर पर सभी देशों पर विचार करते समय यह व्यावहारिक नहीं है।

2. किसी देश की वित्तीय स्वायत्तता का नुकसान

एक एकल विश्व मुद्रा का मतलब होगा कि सरकारों को उन्हें लाभान्वित करने वाली आर्थिक नीतियों का मसौदा तैयार करने पर अपनी स्वायत्तता छोड़नी होगी। यह इतना अच्छा नहीं हो सकता है।

चीन के उदाहरण पर विचार करें। चीन एक ऐसा देश है जिसका निर्यात का आर्थिक मूल्य उसके आयात से अधिक है। इस प्रकार यह विदेशों में अपने निर्यात को आकर्षक बनाने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करता है। अवमूल्यन के बाद निर्यात आकर्षक क्यों हैं? क्योंकि अब उतनी ही मात्रा में विदेशी मुद्रा अधिक चीनी मुद्रा खरीद सकती है और इस प्रकार विदेशी 'सस्ता' चीनी सामान खरीदना पसंद करेंगे। चीन अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कैसे करता है? अर्थव्यवस्था में इसकी मुद्रा आपूर्ति को बढ़ाकर। जब अर्थव्यवस्था में अधिक धन प्रवाहित होता है, तो प्रत्येक व्यक्तिगत कागजी मुद्रा का मूल्य घट जाता है जिससे विदेशी मुद्रा खरीदने का सबसे सस्ता तरीका क्या है उसका अवमूल्यन होता है। चीन मुद्रा आपूर्ति बढ़ाने के दो तरीके अपना सकता है। अधिक मुद्रा छापकर या ब्याज दरों में कमी करके। जब ब्याज दरों में कमी आती है, तो अधिक लोग खर्च करने के लिए बैंकों से पैसा उधार लेते हैं और अर्थव्यवस्था में अधिक समग्र मुद्रा प्रवाह होता है। इस प्रकार चीन अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए अपनी नीतियों को नियंत्रित कर सकता है। हालाँकि, यदि एक भी विश्व मुद्रा है, तो चीन इन आर्थिक नीतियों को लागू नहीं कर पाएगा और चरम स्थिति में, उनकी अर्थव्यवस्था भी गिर सकती है!

3. आर्थिक संकट पैदा करना

एक विश्व मुद्रा विदेशी मुद्रा व्यापार और मुद्रा की अटकलों की समस्या को हल कर सकती है लेकिन अनजाने में यह स्वयं की और अधिक समस्याएं पैदा कर सकती है! हमने पहले एक विश्व मुद्रा के केंद्रीय बैंक के बारे में बात की थी जिसे निष्पक्ष और निष्पक्ष तरीके से कार्य करना था। हालाँकि, जब केंद्रीय बैंक निष्पक्ष कार्य करने की कोशिश करता है, तब भी एक समान नीति से कुछ देशों को लाभ होगा और कुछ अन्य देशों के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है! उदाहरण के तौर पर, आपको यूरोपीय संघ में जर्मनी से आगे देखने की जरूरत नहीं है।

जर्मनी शायद वह देश है जिसे यूरो को अपनाने से सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। यूरोपीय संघ के गठन से पहले ही जर्मनी एक मजबूत अर्थव्यवस्था थी और जर्मन मार्क दुनिया की सबसे मजबूत मुद्राओं में से एक था। यूरो को अपनाने के साथ, ड्यूश मार्क की तुलना में एक अवमूल्यन मुद्रा, जर्मन निर्यात यूरोप के बाकी देशों के लिए आकर्षक हो गया और जर्मन अर्थव्यवस्था और समृद्ध हुई। अन्य सदस्य राज्य, विशेष रूप से दक्षिण-पूर्वी यूरोप में, निर्यात को बढ़ावा देने और अपने कर्ज को कम करने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन नहीं कर सके। यूरो आम मुद्रा होने के कारण, वे अपनी मौद्रिक नीति नहीं बना सके और प्रतिस्पर्धी बन गए। इस प्रकार उनका निर्यात घट गया और कर्ज बढ़ गया।

अब जब आप एकल मुद्रा उपयोग के फायदे और नुकसान दोनों को जानते हैं, तो आप समझ जाएंगे कि दुनिया इस समाधान के साथ आगे क्यों नहीं बढ़ रही है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कोई भी व्यावहारिक एक विश्व मुद्रा समाधान की दिशा में काम नहीं कर रहा है। अभी क्रिप्टोकरेंसी आशा की एक किरण दे रही है। वे खुद को मौद्रिक लेनदेन के एक तेज, सस्ते और आसान तरीके के रूप में पेश कर रहे हैं जिसमें विदेशी मुद्रा लेनदेन को बदलने की क्षमता है। हालाँकि, यह आशा अभी केवल एक चमक है और ऐसा नहीं लगता कि यह जल्द ही कभी भी अमल में आएगी। कई विश्व सरकारों द्वारा क्रिप्टोकरेंसी को व्यापक रूप से अपनाना और स्वीकार करना एक बड़ी समस्या बनी हुई है।

पढ़ने के लिए विदेश जा रहे हैं तो इन 5 टिप्स की मदद से पैसे बचाएं

आजकल विदेश में पढ़ाई आम बात हो गई है हालांकि विदेश में पढ़ना सस्ता नहीं है। विदेश में पढ़ाई का खर्च ज्यादा होता है इसलिए आप यहां दिए गए टिप्स की मदद से विदेश में पढ़ते हुए बचत कर सकते हैं।

Forex Money Saving

पिछले कुछ सालों से देश में मध्यम-आय वर्ग की जनसंख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। जिसके कारण अच्छी पढ़ाई और मौकों की तलाश में विदेश जानेवाले स्टूडेंट्स की संख्या में भारी इज़ाफा देखने को मिल रहा है। बेशक ये उन स्टूडेंट्स के लिए बेहद अलग अनुभव है, जो कि उच्च शिक्षा या फिर पीएचडी की पढ़ाई के लिए विदेश जाना पसंद करते हैं।

लेकिन एक बात जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है वो है इस पढ़ाई पर होनेवाला भारी भरकम खर्च। ऊपर से फीस और निजी खर्चों के लिए लगनेवाला महंगा करेंसी एक्सचेंज रेट, इस खर्च का बोझ और ज्यादा बढ़ा देता है। हम आपको बताने जा रहे हैं कुछ ज़रूरी टिप्स जिनकी मदद से आप विदेश में पढ़ाई करते हुए विदेशी करेंसी पर खर्च होने वाले पैसे बचा सकते हैं।

1. रेट्स की तुलना करके स्थानीय जगह पर फॉरेक्स खरीदें
विदेश जाने से पहले एक बात जो ध्यान में रखनी बेहद ज़रूरी है, वो ये कि भारत में विदेशी मुद्रा खरीदना, विदेश में करेंसी एक्सचेंज करने और डेबिट या क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल करने के मुकाबले हमेशा बेहतर रहता है। इसीलिए ज़रूरी है कि फॉरेक्स रेट्स की तुलना करके, स्थानीय तौर पर ही सही एक्सचेंज रेट की तलाश करें।

करेंसी का एक्सचेंज रेट इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस शहर में हैं और कौन सी करेंसी चाहते हैं। ऐसे में एक करेंसी एक्सचेंज कंपनी और दूसरी कंपनी के एक्सचेंज रेट में 6 फीसदी तक का अंतर आ सकता है। समय बचाने और एक्सचेंज रेट के मोलभाव की सिरदर्दी से बचने के लिए आप किसी भी ऑनलाइन फॉरेक्स मार्केटप्लेस का इस्तेमाल कर सकते हैं, जो कि अलग अलग करेंसी एक्सचेंज कंपनी और बैंकों के रेट को एक साथ दिखाते हैं।

ऑनलाइन फॉरेक्स मार्केटप्लेस एक ऐसी जगह है जहां अलग-अलग करेंसी एक्सचेंज एजेंट एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं ताकि उन्हें ज्यादा से ज्यादा बिज़नेस मिल सके। ऐसे में ग्राहकों को अच्छा एक्सचेंज रेट मिलता है।

2. विदेश में फॉरेक्स कार्ड का इस्तेमाल करें
विदेश में पढ़नेवालों के लिए रोज़मर्रा के खर्चों में डेबिट और क्रेडिट कार्ड के बजाय, प्रीपेड फॉरेक्स कार्ड का इस्तेमाल ज्यादा समझदारी भरा हो सकता है। फॉरेक्स कार्ड किसी भी रुपी कार्ड या दूसरे फॉरेक्स प्रोडक्ट्स के मुकाबले कहीं ज्यादा किफायती होते हैं। इनमें दूसरे फॉरेक्स प्रोडक्ट्स और इंटर बैंक रेट्स को चेक करके उनकी तुलना करने की भी सुविधा मिलती है।

कुछ डेबिट कार्ड्स ज़ीरो मार्जिन का वादा करते हैं लेकिन उनके रेट्स कई बार इतने ज्यादा होते हैं कि उनका इस्तेमाल इंटर बैंक रेट्स के मुकाबले कहीं ज्यादा महंगा पड़ जाता है। फॉरेक्स कार्ड्स हर उस जगह मान्य होते हैं जहां वीज़ा या मास्टर कार्ड का इस्तेमाल हो सकता है। इन कार्ड्स पर फ़ॉरेन ट्रांजैक्शन फीस नहीं लगती।

ये सिर्फ पिन से इतेमाल किए जा सकते हैं और इनका इन्श्योरेंस कवर भी होता है। सबसे अच्छी बात ये कि विदेश में होने पर भी इनका टॉप-अप कराके आप रोज़मर्रा के खर्चों में इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। नीचे दिए गए टेबल की मदद से आप समझ सकते हैं कि प्रीपेड फॉरेक्स कार्ड की बजाय दूसरे कार्ड्स का इस्तेमाल करने पर आपको कितना नुकसान झेलना पड़ सकता है:

Forex Card Charge

इनमें जो बात ध्यान देने वाली है वो है एटीएम के ज़रिए पैसे निकालने पर लगनेवाला चार्ज, रिप्लेसमेंट चार्ज, बैलेंस इन्क्वायरी चार्ज और दूसरे कई छिपे हुए चार्ज जिनका आपको पता नहीं होता। इसीलिए अपनी ज़रूरत और इस्तेमाल के मुताबिक सही फॉरेक्स कार्ड का चुनाव करें।

3. रेमिटेंस रेट्स और चार्ज की तुलना करें
जब आप विदेश में पढ़ाई करने जाते हैं तो आपको समय-समय पर ट्यूशन फीस के लिए पैंसों की ज़रूरत पड़ती है। क्योंकि ट्यूशन फीस, आपकी पढ़ाई पर लगनेवाले कुल खर्च का एक बड़ा हिस्सा होता है, ऐसे में करेंसी एक्सचेंज रेट में कुछ पैसों का भी बदलाव आपके पूरे बजट पर बड़ा असर डाल सकता है।

आप मनी ट्रांसफर की सुविधा किसी बैंक या फिर किसी कैटेगरी 2 स्वीकृत डीलर या फिर किसी ऑनलाइन मार्केटप्लेस, जो कि बैंक या कैटेगरी 2 स्वीकृत डीलर जिन्हें AD-II भी कहा जाता है, दोनों से संबंद्ध हो, इनके ज़रिए पा सकते हैं। आपको ज़रूरत है तो बस एक ऐसा रेमिटेंस सर्विस प्रोवाइडर चुनने की, जो आपको सही रेट पर मनी ट्रांसफर की सुविधा दे और ठीक रेमिटेंस चार्ज ले।

मनी ट्रांसफर के लिए अलग-अलग सर्विस प्रोवाइडर 200 से 2 हज़ार रुपए तक का चार्ज लेते हैं। नीचे दिया गया टेबल ये दिखाता है कि विदेशों में ऑनलाइन मनी ट्रांसफर करने के लिए ऐसे मार्केटप्लेस के इस्तेमाल में ज़्यादा समझदारी है, जो कम से कम चार्ज में जल्द पैसे ट्रांसफर करने की गारंटी देता है।

Transfer Charge

4. फॉरेक्स रेट पर नजर रखें

फॉरेक्न एक्सचेंज रेट्स में लगातार बदलाव होते रहते हैं और अलग अलग बैंकों और मनी चेंजर्स के रेट में भी काफी अंतर होता है। इसीलिए ये ज़रूरी है कि आप करेंसी एक्सचेंज रेट्स में लगातार हो रहे बदलावों की जानकारी रखें। ताकि जब रेट्स कम हों तो आप इसका फायदा उठाकर करेंसी खरीद लें। अगर आप इन चीज़ों का ध्यान रखेंगे, तो इस प्रक्रिया में खूब सारे पैसे बचा सकते हैं। ऐसी कई साइट्स हैं जो आपको रेट चेंज अलर्ट की भी सुविधा देती हैं, और इसका इस्तेमाल आप अपने फायदे के लिए कर सकते हैं।

5. विदेश में एक स्थानीय बैंक में खाता खोलें
ऐसे स्टूडेंट्स जिन्हें पढ़ाई के लिए विदेश में 1 साल या उससे ज्यादा वक्त गुज़ारना है, उनके लिए सबसे व्यवहारिक सलाह यही रहेगी कि वो विदेशी बैंक में एक स्थानीय खाता ज़रूर खोल लें। इसके लिए आपकी युनिवर्सिटी से भी आपको किसी ऐसे स्टूडेंट फ्रैंडली बैंक की रेकमेडेशन मिल सकती है जो पैसे निकालने पर लगनेवाली एटीएम फीस की समस्या हल कर सकता है। इसके अलावा अगर आप कोई पार्ट टाइम जॉब करके तनख्वाह कमाने लगें तो ये भी आपके लिए काफी मददगार रहेगा।
(सुदर्शन मोटवानी, संस्थापक और सीईओ, बुक माय फॉरेक्स डॉट कॉम)

(डिस्क्लेमर: ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए। आप कोई भी फैसला लेने से पहले वित्तीय सलाहकार की मदद जरूर लें।)

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