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एक डॉलर खाता क्या है

एक डॉलर खाता क्या है
रुपये ने डॉलर तोड़ा अपना पिछला रिकॉर्ड कर 79.99 के निचले स्तर पर पहुंच गया है।

Dollar Vs Rupees: रुपया धड़ाम! 51 पैसा टूटकर 80 रुपये के पार पहुंचा डॉलर, जानिए क्यों गिर रहा रुपया?

Dollar Vs Rupees: US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है। इसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। गुरुवार को शुरुआती कारोबार में रुपया में 51 पैसे की रिकॉर्ड गिरावट आई है। एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है।

Vikash Tiwary

Written By: Vikash Tiwary @ivikashtiwary
Updated on: September 22, 2022 12:26 IST

51 पैसा टूटकर डॉलर की. - India TV Hindi

Photo:INDIA TV 51 पैसा टूटकर डॉलर की कीमत 80 रुपये के पार

Highlights

  • आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर
  • एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है
  • US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की है

Dollar Vs Rupees: US Fed ने बुधवार को उम्मीद के मुताबिक ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की एक डॉलर खाता क्या है बढ़ोतरी की है। इसका असर भारतीय शेयर मार्केट से लेकर रुपये पर देखने को मिल रहा है। गुरुवार को शुरुआती कारोबार में रुपया में 51 पैसे की रिकॉर्ड गिरावट आई है। एक डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया टूटकर 80.48 हो गया है। यह रुपये का अब तक का सबसे निचला स्तर है। रुपये में गिरावट से एक ओर जहां व्यापार घाटा बढ़ेगा वहीं दूसरी ओर जरूरी सामान के दाम में बढ़ोतरी एक डॉलर खाता क्या है होगी। इसका दोतरफा बोझ सरकार से लेकर आम आदमी पर पड़ेगा। आईए जानते हैं कि क्यों टूट रहा है रुपया और इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?

क्यों टूट रहा है रुपया

गिरावट का एक और एक डॉलर खाता क्या है कारण डॉलर सूचकांक का लगातार बढ़ना भी बताया जा रहा है। इस सूचकांक के तहत पौंड, यूरो, रुपया, येन जैसी दुनिया की बड़ी मुद्राओं के आगे अमेरिकी डॉलर के प्रदर्शन को देखा जाता है। सूचकांक के ऊपर होने का मतलब होता है सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर की मजबूती। ऐसे में बाकी मुद्राएं डॉलर के मुकाबले गिर जाती हैं।इस साल डॉलर सूचकांक में अभी तक नौ प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जिसकी बदौलत सूचकांक इस समय 20 सालों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर है। यही वजह है कि डॉलर के आगे सिर्फ रुपया ही नहीं बल्कि यूरो की कीमत भी गिर गई है।

रुपये की गिरावट का तीसरा कारण यूक्रेन युद्ध माना जा रहा है। युद्ध की वजह से तेल, गेहूं, खाद जैसे उत्पादों, जिनके रूस और यूक्रेन बड़े निर्यातक हैं, की आपूर्ति कम हो गई है और दाम बढ़ गए हैं। चूंकि भारत विशेष रूप से कच्चे तेल का बड़ा आयातक है, देश का आयात पर खर्च बहुत बढ़ गया है। आयात के लिए भुगतान डॉलर में होता है जिससे देश के अंदर डॉलरों की कमी हो जाती है और डॉलर की कीमत ऊपर चली जाती है।

कहां तक टूट सकता है रुपया?

बैंक ऑफ अमेरिका के अनुसार, भारतीय रुपया साल के अंत तक 81 प्रति डॉलर तक टूट सकता है। इस साल अब तक भारतीय रुपया 9% से अधिक लुढ़क चुकी है। डॉलर में मजबूती और कच्चे तेल कीमतों में तेजी ने रुपया को कमजोर करने का काम किया है। भारत अपनी जरूरत का लगभग 80% कच्चा तेल आयात करता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ा है।

रुपये में कमजोरी का क्या होगा असर

भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स आयात करता है। रुपया कमजोर एक डॉलर खाता क्या है होने के कारण इन वस्तुओं का आयात पर अधिक रकम चुकाना पड़ रहा है। इसके चलते भारतीय बाजार में इन वस्तुओं की कीमत में बढ़ोतरी हो रही है। भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।

रुपये पर सीधा असर

व्यापार घाटा बढ़ने का चालू खाता के घाटा (सीएडी) पर सीधा असर पड़ता है और यह भारतीय रुपये के जुझारुपन, निवेशकों की धारणाओं और व्यापक आर्थिक स्थिरता को प्रभावित करता है। चालू वित्त वर्ष में सीएडी के जीडीपी के तीन फीसदी या 105 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। आयात-निर्यात संतुलन बिगड़ने के पीछे रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध से तेल और जिसों के दाम वैश्विक स्तर पर बढ़ना, चीन में कोविड पाबंदियों की वजह से आपूर्ति श्रृंखला बाधित होना और आयात की मांग बढ़ने जैसे कारण हैं। इसकी एक अन्य वजह डीजल और विमान ईधन के निर्यात पर एक जुलाई से लगाया गया अप्रत्याशित लाभ कर भी है।

देश के निर्यात में गिरावट ऐसे समय हुई है जब तेल आयात का बिल बढ़ता जा रहा है। भारत ने अप्रैल से अगस्त के बीच तेल आयात पर करीब 99 अरब डॉलर खर्च किए हैं जो पूरे 2020-21 की समान अवधि में किए गए 62 अरब डॉलर के व्यय से बहुत ज्यादा है। सरकार ने हाल के महीनों में आयात को हतोत्साहित करने के लिए सोने जैसी वस्तुओं पर आयात शुल्क बढ़ाने, कई वस्तुओं के आयात पर पाबंदी लगाने तथा घरेलू उपयोग में एथनॉल मिश्रित ईंधन की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रयास करने जैसे कई कदम उठाए हैं। इन कदमों का कुछ लाभ हुआ है और आयात बिल में कुछ नरमी जरूर आई है लेकिन व्यापक रूझान में बड़े बदलाव की संभावना कम ही नजर आती है।

आजादी के बाद से ही रुपया होता रहा कमजोर

भारत को 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपये हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू (Pandit Jawaharlal Nehru) थे। उनके नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपये की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपये हुआ था।

पहली बार की आर्थिक मंदी ने रुपये की कमर तोड़ दी

देश के आजाद होने के बाद से पहली बार 1991 में मंदी आई। तब केंद्र में नरसिंम्हा राव (Narasimha Rao) की सरकार थी। उनकी अगुआई में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की गई, जिसने रुपये की कमर तोड़ दी। रिकार्ड गिरावट के साथ रुपया प्रति डॉलर 22.74 पर जा पहुंचा। दो साल बाद रुपया फिर कमजोर हुआ। तब एक डॉलर की कीमत 30.49 रुपया हुआ करती थी। उसके बाद से रुपये के कमजोर होने का सिलसिला चलता रहा है। वर्ष 1994 से लेकर 1997 तक रुपये की कीमतों में उतार-चढ़ाव देखने को मिला। उस दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 31.37 से 36.31 रुपये के बीच रहा।

HDFC Bank ने अपने ग्राहकों को दी बड़ी सुविधा, बिना कोई चार्ज काटे खाते में मिलेगा पूरा पैसा

अमेरिकी स्टॉक खरीदने से पहले निवेशक को अपने रुपये से डॉलर खरीदना होता है. यह खरीदारी रिजर्व बैंक के द्वारा बनाई गई लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) में तय लिमिट के मुताबिक की जाती है. विदेशी स्टॉक में निवेश केलिए रुपये से डॉलर खरीदने में बैंक के जार्ज पर छूट मिलेगी.

HDFC Bank ने अपने ग्राहकों को दी बड़ी सुविधा, बिना कोई चार्ज काटे खाते में मिलेगा पूरा पैसा

एचडीएफसी बैंक (HDFC Bank) ने अपने ट्रेड और रिटेल ग्राहकों के लिए एक नई सुविधा शुरू की है. इस नई सर्विस का नाम ‘फुल वैल्यू आउटवार्ड रेमिटेंस’ (Full Value Outward Remittance) है जिसमें अमेरिकी डॉलर, यूरो और पाउंड स्टर्लिंग के एक्सचेंज पर बैंक की तरफ से कोई चार्ज नहीं काटा जाएगा. हालांकि यह सुविधा तब के लिए है जब कोई ग्राहक विदेश में पैसे भेजता है. बैंक चार्ज पर छूट की यह नई सर्विस आउटवार्ड रेमिटेंस के लिए है. विदेश में अगर किसी व्यक्ति को डॉलर, यूरो या पाउंड में पैसा भेजा जाएगा तो एचडीएफसी बैंक उस पर अपना कोई चार्ज नहीं काटेगा. इसे फॉरेन बैंक चार्जेज कहा जाता है. इस सर्विस से उन लोगों को फायदा होगा जो अमेरिकी स्टॉक या किसी विदेशी स्टॉक में निवेश करते हैं.

दरअसल, अमेरिकी एक डॉलर खाता क्या है स्टॉक खरीदने से पहले निवेशक को अपने रुपये से डॉलर खरीदना होता है. यह खरीदारी रिजर्व बैंक के द्वारा बनाई गई लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) में तय लिमिट के मुताबिक की जाती है. मौजूदा एलआरएस नियम के मुताबिक भारत का कोई नागरिक जिसमें नाबालिग भी शामिल है, एक वित्तीय वर्ष में 2.5 लाख अमेरिकी डॉलर का रेमिटेंस कर सकता है. अगर डॉलर का मौजूदा रेट देखें तो 78 रुपये के हिसाब से यह रकम 1.95 करोड़ रुपये होती है. यानी 1.95 करोड़ रुपये के बराबर की राशि विदेश में भेज सकते हैं.

ट्रेड कस्टमर को फायदा

एचडीएफसी बैंक ने फुल वैल्यू रेमिटेंस की सुविधा को ट्रेड से जुड़े ट्रांजैक्शन के लिए भी शुरू कर दी है. डॉलर के साथ पाउंड और यूरो भी विदेश भेजने पर बैंक कोई चार्ज नहीं काटेगा. बैंक के सेविंग अकाउंट और करंट अकाउंट होल्डर इस सुविधा का लाभ उठा सकेंगे और ट्रेड और रिटेल रेमिटेंस पर बैंक चार्ज का छूट पा सकेंगे. एचडीएफसी बैंक का कहना है कि रिटेल के साथ साथ ट्रेड कस्टमर को इस सुविधा की बेहद दरकार थी. बैंक ने इसका खयाल रखते हुए रेमिटेंस में ग्राहकों की सुविधाएं बढ़ा दी हैं. बैंक का कहना है कि यह पहल ट्रेड के लिए ‘गेम चेंजर’ साबित होगा.

अभी क्या है नियम

बैंक के रेमिटेंस चार्ज की बात करें तो इसमें आउटवार्ड (विदेश में भेजने) और इनवार्ड दोनों आते हैं. 500 अमेरिकी डॉलर या इससे अधिक बाहर भेजने पर 500 रुपये का कमीशन लगता है. 500 डॉलर से अधिक भेजने पर 1000 रुपये का कमीशन लिया जाता है. हालांकि इनवार्ड रेमिटेंस का कोई शुल्क नहीं है. एफसीवाई कैश सेलिंग पर कोई चार्ज नहीं लगता.

इसके अलावा सभी फॉरेन एक्सचेंज ट्रांजैक्शन पर जीएसटी काटा जाता है जो कि ऊपर बताए एक डॉलर खाता क्या है गए शुल्क से अतिरिक्त होता है. 1 लाख रुपये तक के करेंसी एक्सचेंज पर 0.18 परसेंट जीएसटी और कम से कम 45 रुपये और अधिकतम 180 रुपये जीएसटी लिया जाता है. 1 लाख रुपये से 10 लाख के बीच करेंसी एक्सचेंज पर 180 रुपये प्लस 0.09 परसेंट जीएसटी जिसमें कम से कम 180 रुपये और अधिकतम 990 रुपये तक लिए जा सकते हैं.

मुद्रा और चालू खाते को लेकर भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत 3.5 फीसदी के काफी उच्च स्तर के चालू खाते के घाटे की संभावना से दो-चार है. एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का चालू खाते का घाटा 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता है. सरकार के सामने इस बढ़ रहे चालू खाते के घाटे की भरपाई पूंजी प्रवाह से करने की चुनौती है. The post मुद्रा और चालू खाते को लेकर भारत की स्थिति चिंताजनक बनी हुई है appeared first on The Wire - Hindi.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत 3.5 फीसदी के काफी उच्च स्तर के चालू खाते के घाटे की संभावना से दो-चार है. एक अनुमान के मुताबिक़, भारत का चालू खाते का घाटा 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता है. सरकार के सामने इस बढ़ रहे चालू खाते के घाटे की भरपाई पूंजी प्रवाह से करने की चुनौती है.

पिछले कुछ हफ्तों से, जब विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) द्वारा लगातार बाजार में बिकवाली का दौर जारी रहा, भारतीय रिजर्व बैंक भारतीय मुद्रा रुपये की विनिमयय दर को थामने की एक हारी हुई लड़ाई लड़ता दिखा.

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने मुख्य तौर पर भारतीय ब्लूचिप कंपनियों के शेयरों की बिक्री है और भारतीय बाजार से 2.3 लाख करोड़ रुपये (लगभग 30 अरब अमेरिकी डॉलर) की बड़ी रकम निकाल ली है. इसने भारतीय रुपये पर और नीचे गिरने का भीषण दबाव बनाने का काम किया है.

रुपये में ऐतिहासिक गिरावट का दौर जारी है और यह आरबीआई द्वारा भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर की बिक्री करके इसे संभालने की कोशिशों को धता बताते हुए प्रति डॉलर 79 रुपये से ज्यादा नीचे गिर चुका है. सिर्फ एक पखवाड़े में ही रिजर्व बैंक ने 10 अरब अमेरिकी डॉलर की बिक्री की है.

बता दें कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार, अक्टूबर, 2021 के 642 अरब अमेरिकी डॉलर के उच्चतम स्तर से 50 अरब अमेरिकी डॉलर घट गया है. इसके अलावा तेल-गैस का एक बड़ा आयातक होने के नाते ज्यादातर विशेषज्ञों के अनुमानों के मुताबिक भारत 3.5 फीसदी के काफी उच्च स्तर के चालू खाते के घाटे की संभावना से भी दो-चार है. ठोस आंकड़ों में तब्दील करें, तो भारत का चालू खाते का घाटा 100 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर हो सकता है. सरकार के सामने इस बढ़ रहे चालू खाते के घाटे की भरपाई पूंजी प्रवाह से करने की चुनौती है.

इस साल, पूंजी प्रवाह (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश और विदेशी प्रत्यक्ष निवेश-एफडीआई) दोनों ही काफी कमजोर रहे हैं. एलआईसी के शेयरों के विनिवेश को लेकर जिस तरह से बहुत उत्साह नहीं दिखा, उससे यह स्पष्ट है कि विदेशी संस्थागत निवेशक बेहद लाभदायक भारतीय सार्वजनिक उपक्रमों की परिसंपत्तियों में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं.

विदेशी निवेशक अपने निवेश फैसलों को तब तक रोक कर रखेंगे, जब तक कि रुपये में गिरावट/अवमूल्यन पूरी तरह हो नहीं जाता है और यह नया स्थिर स्तर प्राप्त नहीं कर लेता है. यूक्रेन युद्ध के बाद और तेल-गैस और खाद्य पदार्थों की बढ़ रही कीमतों की पृष्ठभूमि में रुपये का नया स्तर क्या है? ज्यादातर वैश्विक निवेशक इस बात की थाह लेना चाहते हैं.

जापानी इनवेस्टमेंट रिसर्च हाउस नोमुरा ने डॉलर की तुलना में रुपये की कीमत के 82 रुपये तक जाने का अनुमान लगाया है. वित्त मंत्रालय ने पिछले सप्ताह सावधानी के साथ यह बता दिया कि वैश्विक आर्थिक हालातों को देखते हुए 80 रुपये प्रति डॉलर का मूल्य तर्कसंगत होगा.

सीएनबीसी को दिए गए एक इंटरव्यू में मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंत नागेश्वरन ने यह स्वीकार किया कि 2022-23 में भारत 30 से 40 अरब डॉलर के नकारात्मक चालू खाते के घाटे का सामना कर सकता है. उन्होंने इसके साथ ही यह भी तुरंत ही जोड़ा कि यह कोई चिंता की बात नहीं है क्योंकि इतनी रकम विदेशी मुद्रा भंडार से ली जा सकती है.

आरबीआई के डेटा के आधार पर इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट एक और गंभीर चिंता की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत को अगले 9 महीनों में 267 अरब अमेरिकी डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान करना होगा. यह भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का करीब 44 प्रतिशत है. क्या वैश्विक मुद्रा संकुचन के हालात में यह एक और जोखिम का सबब बन सकता है?

एक तरफ नागेश्वरन यह तर्क दे रहे हैं कि खतरे की घंटी बजाने जैसी कोई बात नहीं है, लेकिन सरकार के कुछ कदमों से ऐसा लगता है यह काफी चिंतित है.

वित्त मंत्रालय ने पिछले सप्ताह ओएनजीसी और ऑयल इंडिया लिमिटेड जैसे घरेलू कच्चा तेल उत्पादकों पर एक बड़ा विंडफॉल टैक्स (अचानक और अप्रत्याशित हुए मुनाफे पर लगाया गया कर)- करीब 40 डॉलर प्रति बैरल का- लगा दिया. इसने डीजल, पेट्रोल और निर्यातित एटीएफ पर एक अच्छा खासा 13 रुपये प्रति लीटर का निर्यात कर भी लगा दिया. इससे मुख्य तौर पर आरआईएल (रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड) पर प्रभाव पड़ेगा, जो अपने रिफाइंड उत्पादों का 90 फीसदी से ज्यादा निर्यात करती है.

पिछले कुछ महीनों से आरआईएल ने जमकर मुनाफा कमाया है. यह रूस से काफी सस्ता और कीमत में काफी छूट के साथ मिला कच्चा तेल खरीदकर अपने उत्पादों, मुख्य रूप से डीजल की बिक्री यूरोपीय संघ और अमेरिका को कर रही था. कुछ जानकारों का कहना है कि आरआईएल को प्रति बैरल पर 35 डॉलर से ज्यादा मुनाफा हो रहा था.

जेपी मॉर्गन का कहना है कि सरकार द्वारा निर्यात कर लगाए जाने के बाद मुनाफा घटकर 12 से 13 डॉलरर प्रति बैरल पर आ सकता है. हालांकि इसके बाद भी रिलायंस को अपने निर्यात पर अच्छा-खासा लाभ होगा.

सरकार ने सोने के आयात पर भी आयात शुल्क को बढ़ा दिया है. उसे उम्मीद है कि इससे सोने का आयात कम होगा और भारत के कीमती विदेशी मुद्रा भंडार को सहेजा जा सकेगा.

समस्या यह है कि ये सब चालू खाते के घाटे को नियंत्रण में रखने के मकसद से टुकड़े-टुकड़े में लिए गए फैसले हैं. खाद्य पदार्थो, स्टील, तेल आदि पर निर्यात प्रतिबंध लगाने का मकसद घरेलू मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखना है, लेकिन इससे निर्यात से होने वाली कमाई में भी कमी आती है, खासकर ऐसे समय में जब विदेशी मोर्चे का जोखिम बढ़ रहा है. इसलिए, घरेलू महंगाई पर नियंत्रण और विदेशी मोर्चे को स्थिर करने के बीच, केंद्र की स्थिति काफी दुविधा वाली हो गई है.

सरकारें माइक्रो पॉलिसी के स्तर पर जितना रद्दोबदल करती हैं, मैक्रो मैनेजमेंट का काम उतना अनिश्चित और कठिन होता जाता है. भारत में अभी यही हो रहा है.

तेल कंपनियों पर विंडफॉल लाभ पर कर लगाकर जमा किए गया धन बढ़ रहे राजकोषीय घाटे को पाटने में आंशिक तौर पर मदद करेगा. लेकिन यह पर्याप्त नहीं है, क्योंकि कुल अतिरिक्त खर्च सरकार द्वारा लगाए गए सभी विंडफॉल करों को शामिल करने के बावजूद बजट के अनुमानों से 3.5 से 4 लाख करोड़ तक पहुंच सकता है.

खराब हो रहे वैश्विक आर्थिक हालात के बीच बढ़ रही राजकोषीय चुनौती को कम करके नहीं आंका जा सकता है.

बढ़ी हुई बेरोजगारी के बीच भारत में एक के बाद होने वाले चुनावों में लोक-कल्याण के नए-नए वादे किए जाते हैं. इस पृष्ठभूमि में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का उदार लोक-कल्याणकारी कार्यक्रमों के जरिये ज्यादा समग्र लोक-कल्याणवाद वादा भी राजकोषीय खर्च को बढ़ावा देता है.

जहां तक मैक्रो या व्यापक स्तर का सवाल है, तो दुनिया की निगाहें भारत पर टिकी होंगी कि भारत अपने दोहरे घाटे- राजकोषीय घाटे और चालू खाते के घाटे से कैसे निपटता है.

आखिरकार इन दो संकेतकों का मैक्रो मैनेजमेंट ही विनिमय दर की स्थिरता, मुद्रास्फीति और संवृद्धि का निर्धारण करेगा. अल्पकालिक नजरिये से उठाए जाने वाले कदमों से एक सीमा के बाद कोई फायदा नहीं पहुंचेगा.

भारत की आजादी के वक्‍त एक डॉलर की कीमत थी चार रुपये, आज करीब 80, पढ़ें 75 वर्ष में कैसे हुआ बदलाव

जुलाई 2022 में भारतीय रुपया पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 80 के निचले स्तर पर फिसल गया क्योंकि आपूर्ति प्रभावित होने के चलते कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने अमेरिकी डॉलर की मांग को बढ़ावा दिया।

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रुपये ने डॉलर तोड़ा अपना पिछला रिकॉर्ड कर 79.99 के निचले स्तर पर पहुंच गया है।

Rupee’s Journey Since India’s Independence: भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष (75th Independence Day) का जश्न मना रहा है और आने वाले वर्षों के दौरान आर्थिक विकास को ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने देख रहा है। अर्थव्यवस्था के अन्य पहलुओं को किनारे रखते हुए आइए देखते हैं कि भारतीय रुपया का 1947 के बाद से अब तक का सफर कैसा रहा है।

किसी देश की मुद्रा उसके आर्थिक विकास का आकलन करने का एक मुख्य घटक होती है। बीते 75 सालों में हमारे देश ने अपार प्रगति की है और लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। लेकिन, देश की मुद्रा रुपये में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। रुपये के अवमूल्यन का नतीजा यह है कि आज रुपया लगभग 80 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है।

पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए: भारत को जब 15 अगस्त 1947 को आजादी मिली। उस समय एक डॉलर की कीमत एक रुपए हुआ करती थी, लेकिन जब भारत स्वतंत्र हुआ तब उसके पास उतने पैसे नहीं थे कि अर्थव्यवस्था को चलाया जा सके। उस समय देश के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार ने विदेशी एक डॉलर खाता क्या है एक डॉलर खाता क्या है व्यापार को बढ़ाने के लिए रुपए की वैल्यू को कम करने का फैसला किया। तब पहली बार एक डॉलर की कीमत 4.76 रुपए हुई थी।

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1962 तक रुपये की वैल्यू में कोई बदलाव नहीं हुआ, लेकिन उसके बाद 1962 और 1965 के युद्ध के बाद देश की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा और 1966 में विदेशी मुद्रा बाजार में भारतीय रुपए की कीमत 6.36 रुपए प्रति डॉलर हो गई। 1967 आते-आते सरकार ने एक बार फिर से रुपए की कीमत को कम करने का फैसला किया, जिसके बाद एक डॉलर की कीमत 7.50 रुपए हो गई।

RBI ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया: 1991 में एक बार फिर भारत में गंभीर आर्थिक संकट आया। एक डॉलर खाता क्या है जिसके बाद देश अपने आयातों का भुगतान करने और अपने विदेशी ऋण चुकाने की स्थिति में नहीं था। इस संकट को टालने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने दो फेज में रुपए का अवमूल्यन किया और उसकी कीमत 9 प्रतिशत और 11 प्रतिशत घटाई। अवमूल्यन के बाद अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का मूल्य लगभग 26 था।

रिसर्च एनालिस्ट दिलीप परमार ने जानकारी दी कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद से रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) पर 3।74 प्रतिशत की दर से गिर रहा है। 2000 से 2007 के बीच, रुपया एक हद तक स्थिर हो गया जिसके कारण देश में पर्याप्त विदेशी निवेश आया। हालांकि, बाद में 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान इसमें गिरावट आई।

फॉरेन रिज़र्व का रुपए पर असर: 2009 के बाद से रुपए का मूल्यह्रास शुरू हुआ, जिसके बाद वह 46.5 से अब 79.5 पर पहुंच गया। डॉलर के मुकाबले रुपये के लुढ़कने की सबसे बड़ी वजह फॉरेन रिज़र्व में गिरावट होती है। अगर फॉरेन रिज़र्व कम होगा तो रुपया कमज़ोर होगा और अगर ये एक डॉलर खाता क्या है ज्यादा होगा तो रुपया मज़बूत होगा।

हाल की घटनाओं को देखें तो जहां सितंबर 2021 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 642.45 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। वहीं, 24 जून 2022 आते-आते ये कम होकर 593.32 बिलियन डॉलर पर आ गया है। जिसके पीछे की सबसे अहम वजह महंगाई और क्रूड ऑयल की बढ़ती कीमतों को बताया जा रहा है। यही वजह है कि रुपए की वैल्यू गिरती जा रही है।

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