Trading के फायदें

एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत

एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत
  • खाता खोलने के लिए प्रपत्र डाउनलोड करें (हिंदी - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है ) (अंग्रेजी - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है )
  • क्या आपको मदद की ज़रूरत है? आप पीएमजेडीवाई सहायता केन्द्र - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है से संपर्क कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय टोल फ्री नंबर : 1800 11 0001 और 1800 180 1111

एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत

कुछ वर्षों पहले बहु-ब्रांड खुदरा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को लेकर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने एक बड़ा दांव चला। यहां तक कि वह गठबंधन के एक प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस के समर्थन वापस लेने पर भी नहीं झुकी और तृणमूल तो सरकार से अलग भी हो गई। फिर भी संप्रग सरकार ने इस कानून में समझौते की गुंजाइश छोड़ दी, खासतौर से यह कहते हुए कि किसी जगह बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई का अंतिम फैसला राज्य सरकारों का होगा, इससे इस सुधारवादी कदम की धार कम हो गई।

यह उल्लेख करना महत्त्वपूर्ण होगा कि बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई का बुनियादी मकसद बेहद अहम बैक-एंड आपूर्ति शृंखला में अधिक मुद्रा के प्रवाह को सुनिश्चित करना था। भारत की खस्ताहाल आपूर्ति शृंखला कई आपूर्तिगत बाधाओं के लिए जिम्मेदार है और इसका सामान्य तौर पर लंबे समय से कायम असहज मुद्रास्फीति में भी अहम योगदान रहा है। कोई बहु-ब्रांड खुदरा शृंखला, जितने बड़े पैमाने पर अपना संचालन करना चाहेगी, उसे उसी स्तर की आपूर्ति शृंखला का निर्माण और संचालन करना होगा, ऐसे में इसका निर्धारण राज्यों द्वारा करने की मंजूरी देना इस कानून की भावना के खिलाफ रहा।

यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने भी बहु-ब्रांड खुदरा मसले पर राजनीतिक रुख अपना लिया। इसका अर्थ यही है कि कई भाजपा शासित राज्यों ने इसके फायदों को नजरअंदाज कर दिया। इसके अतिरिक्त इस नीति के साथ कई अनिश्चितताएं भी जुड़ गईं क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि आम चुनाव में जीत के बाद वह इस नीति को पलट देगी, निश्चित रूप से पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में कमोबेश यही संकेत दिखता है कि पार्टी विरोध में है। इस घटनाक्रम का एक दुर्भाग्यपूर्ण नतीजा अब भारत की व्यापार वार्ताओं में भी नजर आ रहा है। इसी समाचार पत्र में गत सप्ताह प्रकाशित एक समाचार के अनुसार भारत और दक्षिणपूर्व एशियाई देशों (आसियान) के साथ हुए एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीएम) में दरार पड़ती दिख रही है। यह स्थिति बहु-ब्रांड खुदरा में एफडीआई को लेकर भारत के भ्रमित रवैये को लेकर उत्पन्न हुई।

परिणामस्वरूप आसियान के दो महत्त्वपूर्ण देश थाईलैंड और इंडोनेशिया भारत के साथ सेवाओं के मुक्त व्यापार के अनुबंध को समाप्त करने पर जोर दे रहे हैं। कथित तौर पर वे अपनी कंपनियों को समूचे भारत में निवेश की मंजूरी दिए जाने को लेकर दबाव बना रहे हैं। दोनों देशों में खुदरा क्षेत्र शानदार स्थिति में है और खासतौर से मुद्रास्फीति से संघर्ष करने में इंडोनेशियाई शृंखलाओं की विशेषज्ञता भारत के लिए खासी उपयोगी होगी। हालांकि भारत की दुविधा, कमजोरी और सुधारों को लेकर ढुलमुल रवैये ने थाईलैंड और इंडोनेशिया को एफटीए की मंजूरी को लटकाए रखने पर मजबूर किया है।

वहीं अपने निर्यात को बढ़ाने और आंतरिक क्षेत्र को स्थायित्व प्रदान करने के लिए भारत को दक्षिणपूर्व एशिया के बड़े बाजार की दरकार है, जो भारत के गतिशील सेवा क्षेत्र के लिए अपने द्वार खोले रखे। अब यह संभव होता नहीं दिख रहा। यह एक स्वरूप (पैटर्न) का हिस्सा है। अतीत में सुधारों को लेकर चिंतित नजरिया और घरेलू स्तर पर एक साथ कई पक्षों को खुश करने की कवायद एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत के चलते भारतीय निर्यात की राह बड़े स्तर पर बाधित रही। उदाहरण के तौर पर यूरोपीय संघ के साथ भारत का बेहद आवश्यक एफटीए इस वजह से रुक गया क्योंकि भारत के वाहन, सूचना प्रौद्योगिकी और दवा क्षेत्रों के लिए बहुत ज्यादा मांगें की जा रही थीं। भारत को अपना निर्यात मोर्चा दुरुस्त रखने की जरूरत है। एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत यह सुनिश्चित करने के लिए उसे निश्चित तौर पर व्यापार वार्ताओं को सही दिशा में आगे बढ़ाना होगा और घरेलू सुधारों को विभिन्न हित समूहों और सियासत से दूर रखना होगा, तभी सही नतीजे मिल पाएंगे।

प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय)

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गरीबी दूर करने के लिए भारत सरकार ने वित्तीय समावेशन को बेहद महत्वपूर्ण बताया है। यदि लोग बड़ी संख्या में वित्तीय सेवाओं से वंचित रहेंगे तो यह हमारे देश के विकास में बाधा बनेगा। नागरिकों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए इस योजना की आवश्यकता थी जिससे सभी इससे होने वाले लाभ और विकास का हिस्सा बन सकें।

विश्व की सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन योजना प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय) की घोषणा प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2014 को ऐतिहासिक लाल किले से की थी जिसका शुभारम्भ 28 अगस्त 2014 को पूरे देश में किया गया। योजना के शुभारम्भ के समय माननीय प्रधानमंत्री जी ने इसे गरीबों की इस दुष्चक्र से मुक्ति के त्योहार के रूप में मनाने का अवसर बताया।

माननीय प्रधानमंत्री जी ने एक प्राचीन संस्कृत श्लोक -सुखस्‍य मूलम धर्मः , धर्मस्‍य मूलम अर्थः, अर्थस्‍य मूलम राज्‍यम का सन्दर्भ दिया जिसके अनुसार आर्थिक गतिविधियों में लोगों को शामिल करने की ज़िम्मेदारी राज्य की है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि "सरकार ने यह ज़िम्मेदारी उठा ली है"। प्रधानमंत्री जी ने इसके लिए तक़रीबन 7.25 लाख बैंक कर्मचारियों को ईमेल भेजा था जिसमें उन्होंने 7.5 करोड़ बैंक खातों को खोलने के लक्ष्य को प्राप्त करने और वित्तीय अस्पृश्यता को समाप्त करने में मदद करने का आग्रह किया था।

गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है ने भी प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय) के तहत प्राप्त उपलब्धियों को सराहा है। इसमें यह कहते हुए प्रमाण-पत्र जारी किया गया "वित्तीय समावेशन अभियान" के एक भाग के रूप में एक सप्ताह में जो सबसे अधिक बैंक खाते खोले गए, उसकी संख्या है - 18,096,130 और भारत सरकार के वित्तीय सेवा विभाग ने 23 से 29 अगस्त 2014 के बीच यह उपलब्धि हासिल की। केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय) को अर्थव्यवस्था का एक जबर्दस्त परिवर्तन बताया एवं कहा कि इससे प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के लिए एक मंच मिला है जिससे सब्सिडी में आ रही खामियों को दूर करने में मदद मिलेगी एवं राजकोष में बचत को बल मिलेगा।

प्रधानमंत्री जन-धन योजना क्या है?

प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय) वित्तीय समावेशन के लिए एक राष्ट्रीय मिशन है जिसका उद्देश्य बैंकिंग/बचत, जमा खाता, प्रेषण, ऋण, एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत बीमा, पेंशन इत्यादि वित्तीय सेवाओं को प्रभावी ढंग से सभी तक पहुँचाना है।

इस योजना के अंतर्गत मैं कहाँ खाता खोल सकता हूँ?

खाता किसी भी बैंक शाखा अथवा व्यवसाय प्रतिनिधि (बैंक मित्र) आउटलेट में खोला जा सकता है।

  • खाता खोलने के लिए प्रपत्र डाउनलोड करें (हिंदी - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है ) (अंग्रेजी - पीडीएफ फाइल जो नई विंडों में खुलती है )
  • क्या आपको मदद की ज़रूरत है? आप पीएमजेडीवाई सहायता केन्द्र - बाहरी वेबसाइट जो एक नई विंडो में खुलती है से संपर्क कर सकते हैं।
  • राष्ट्रीय टोल फ्री नंबर : 1800 11 0001 और 1800 180 1111

  • यदि आधार कार्ड/आधार नंबर उपलब्ध है तो किसी अन्य प्रलेख की आवश्यकता नहीं है। यदि आपका पता बदल गया है तो वर्तमान पते का स्वप्रमाणन पर्याप्त है।
  • यदि आधार कार्ड उपलब्ध नहीं है तो उस स्थिति में मतदाता पहचान पत्र, ड्राइविंग लाईसेंस, पैन कार्ड, पासपोर्ट तथा नरेगा कार्ड जैसे सरकारी रूप से वैध प्रलेखों (ओवीडी) में से किसी एक की आवश्यकता होगी। यदि इन दस्तावेजों में आपका पता भी मौजूद है तो ये पहचान तथा पते के प्रमाण के रूप में कार्य करेगा।
  • यदि किसी व्यक्ति के पास कोई भी "वैध सरकारी प्रलेख" नहीं हैं, लेकिन इसे बैंक द्वारा 'कम जोखिम' की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है तो वह व्यक्ति निम्नलिखित में से कोई एक प्रलेख जमा करके बैंक खाता खुलवा सकता/सकती है:
    • केंद्र/राज्य सरकार के विभाग, वैधानिक / विनियामक प्राधिकरण, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और लोक वित्तीय संस्थानों द्वारा जारी किये गए पहचान पत्र जिसमे आवेदक की तस्वीर लगी हो;
    • व्यक्ति की सत्यापित तस्वीर के साथ राजपत्रित अधिकारी द्वारा जारी किया गया पत्र।

    क्या चेकबुक उपलब्ध कराई जाएगी?

    प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाय) में खाते शून्य जमा राशि के साथ खोले जा रहे हैं। यदि खाता धारक को चेकबुक चाहिए तो उसे संबंधित बैंक के न्यूनतम शेष राशि से संबंधित मानदंड मानने होंगे।

    बालश्रम और शोषण

    13-year-old Dharmendar (Name Changed), was one of the survivors who were rescued from bangle making factory in Hyderabad in 2015.

    2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल मजदूरों की संख्‍या 1.01 करोड़ है जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां हैं। दुनिया भर में कुल मिलाकर 15.20 करोड़ बच्‍चे – 6.4 करोड़ लड़कियां और 8.8 करोड़ लड़के बाल मजदूर होने का अनुमान लगाया गया है अर्थात दुनिया भर में प्रत्‍येक 10 बच्‍चों में से एक बच्‍चा बाल मजदूर है।

    पिछले कुछ सालों से बाल श्रमिकों की दर में कमी आई है। इसके बावजूद बच्‍चों को कुछ कठिन कार्यों में अभी भी लगाया जा रहा है, जैसे बंधुआ मजदूरी, बाल सैनिक (चाइल्‍ड सोल्जर) और देह व्‍यापार। भारत में विभिन्‍न उद्योगों में बाल मजदूरों को काम करते हुए देखा जा सकता है, जैसे ईंट भट्टों पर काम करना, गलीचा बुनना, कपड़े तैयार करना, घरेलू कामकाज, खानपान सेवाएं (जैसे चाय की दुकान पर) खेतीबाड़ी, मछली पालन और खानों में काम करना आदि। इसके अलावा बच्‍चों का और भी कई तरह के शोषण का शिकार होने का खतरा बना रहता है जिसमें यौन उत्‍पीड़न तथा ऑनलाइन एवं अन्य चाइल्‍ड पोर्नोग्राफी शामिल है।

    बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं जिनमें गरीबी, सामाजिक मापदंड, वयस्‍कों तथा किशोरों के लिए अच्‍छे कार्य करने के अवसरों की कमी, प्रवास और इमरजेंसी शामिल हैं। ये सब वज़हें सिर्फ कारण नहीं बल्कि भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम हैं।

    बच्‍चों का काम स्‍कूल जाना है न कि मजदूरी करना। बाल मजदूरी बच्‍चों से स्‍कूल जाने का अधिकार छीन लेती है और वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं । बाल मजदूरी शिक्षा में बहुत बड़ी रुकावट है, जिससे बच्‍चों के स्‍कूल जाने में उनकी उपस्थिति और प्रदर्शन पर खराब प्रभाव पड़ता है।

    बाल मजदूरी तथा शोषण की निरंतर मौजूदगी से देश की अर्थव्‍यवस्‍था को खतरा होता है और इसके बच्‍चों पर गंभीर अल्पकालीन और दीर्घकालीन दुष्परिणाम होते हैं जैसे शिक्षा से वंचित हो जाना और उनका शारीरिक व मानसिक विकास ना होने देना।

    बाल तस्‍करी भी बाल मजदूरी से ही जुड़ी है जिसमें हमेशा ही बच्‍चों का शोषण होता है। ऐसे बच्‍चों को शारीरिक, मानसिक, यौन तथा भावनात्‍मक सभी प्रकार के उत्‍पीड़न सहने पड़ते हैं जैसे बच्‍चों को वेश्‍यावृति की ओर जबरदस्‍ती धकेला जाता है, शादी के लिए मजबूर किया जाता है या गैर-कानूनी तरीके से गोद लिया जाता है, इनसे कम और बिना पैसे के मजदूरी कराना, घरों में नौकर या भिखारी बनाने पर मजबूर किया जाता है और यहां तक कि इनके हाथों में हथियार भी थमा दिए जाते हैं। बाल तस्‍करी बच्चों के लिए हिंसा, यौन उत्‍पीड़न तथा एच आई वी संक्रमण (इंफेक्‍शन) का खतरा पैदा करती है।

    बाल मजदूरी तथा शोषण एकीकृत दृष्टिकोण के माध्‍यम से रोके जा सकते हैं जो बाल सुरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के साथ-साथ गरीबी तथा असमानता जैसे मुद्दों, गुणात्‍मक शिक्षा के बेहतर अवसरों, और बच्‍चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जन सहयोग जुटाने में मदद करते हैं।

    अध्‍यापक तथा शिक्षा व्‍यवसाय से जुड़े अन्‍य लोग भी बच्‍चों के हितों की रक्षा के लिए आगे आ सकते हैं और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे समाज के हितधारकों को बच्‍चों की उस दयनीय स्थिति से अवगत करा सकते हैं जहां बच्‍चों में निराशा के साथ-साथ देर तक काम करने के संकेत दिखाई देते हैं। बच्‍चों को काम से बाहर निकाल कर उन्‍हें स्‍कूल भेजने के लिए शोषित परिवारों को जागरूक करने के लिए सरकारी नीतियों में व्‍यापक बदलाव करने की जरूरत है।

    यूनीसेफ, सरकार तथा निजी एंजेसियों के साथ मिलकर बाल मजदूरी समाप्‍त करने के लिए आवश्‍यक नीतियां तैयार करता है। यूनिसेफ बाल मजदूरी को जन्‍म देने वाली उन व्‍यावसायिक पद्धतियों व उनकी सप्लाई चैन के विकल्‍प खोजने के लिए काम करता है। यूनिसेफ़ कर्ज़ के अधीन व बंधुआ मजदूरी को खत्म करने में सहायता करने के लिए एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत परिवारों के साथ मिलकर काम करता है । यूनीसेफ उन कार्यक्रमों के एकीकरण के लिए राज्‍य सरकारों को सहयोग देता है जिनसे बाल मजदूरी समाप्‍त हो सकती है। हम बाल मजदूरी की सांस्‍कृतिक स्‍वीकृति को बदलने में समुदायों को भी सहयोग देते हैं, वहीं दूसरी ओर परिवारों को वैकल्पिक आमदनी, प्री स्‍कूल, गुणात्‍मक शिक्षा तथा संरक्षण सेवाओं की पहुंच का भी ध्‍यान रखते हैं।

    बाल मजदूरी समाप्‍त करने में बच्‍चों की बात सुनना सफलता के लिए बेहद जरूरी है।

    बाल अधिकारों पर संयुक्‍त राष्‍ट्र अधिवेशन का एक प्रमुख संदेश यह है कि बच्‍चों के पास उन्‍हें प्रभावित करने वाले मामलों पर अपने विचार रखने और उन्हें सुने जाने का अधिकार है । बाल मजदूरी रोकने तथा उसके प्रत्‍युततर में बच्‍चों की अहम भूमिका होती है। बाल संरक्षण में वे प्रमुख कारक होते हैं और बहुमूल्‍य जानकारी दे सकते हैं कि उनकी क्या भागीदारी होनी एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत चाहिए और उन्‍हें सरकार तथा समाज सुधारकों से क्‍या अपेक्षाएं हो सकती हैं।

    बालश्रम और शोषण

    13-year-old Dharmendar (Name Changed), was one of the survivors who were rescued from bangle making factory in Hyderabad in 2015.

    2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में बाल मजदूरों की संख्‍या 1.01 करोड़ है जिसमें 56 लाख लड़के और 45 लाख लड़कियां हैं। दुनिया भर में कुल मिलाकर 15.20 करोड़ बच्‍चे – 6.4 करोड़ लड़कियां और 8.8 करोड़ लड़के बाल मजदूर होने का अनुमान लगाया गया है अर्थात दुनिया भर में प्रत्‍येक 10 बच्‍चों में से एक बच्‍चा बाल मजदूर है।

    पिछले कुछ सालों से बाल श्रमिकों एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत की दर में कमी आई है। इसके बावजूद बच्‍चों को कुछ कठिन कार्यों में अभी भी लगाया जा रहा है, जैसे बंधुआ मजदूरी, बाल सैनिक (चाइल्‍ड सोल्जर) और देह व्‍यापार। भारत में विभिन्‍न उद्योगों में बाल मजदूरों को काम करते हुए देखा जा सकता है, जैसे ईंट भट्टों पर काम करना, गलीचा बुनना, कपड़े तैयार करना, घरेलू कामकाज, एक व्यापार को समाप्त करने के लिए संकेत खानपान सेवाएं (जैसे चाय की दुकान पर) खेतीबाड़ी, मछली पालन और खानों में काम करना आदि। इसके अलावा बच्‍चों का और भी कई तरह के शोषण का शिकार होने का खतरा बना रहता है जिसमें यौन उत्‍पीड़न तथा ऑनलाइन एवं अन्य चाइल्‍ड पोर्नोग्राफी शामिल है।

    बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं जिनमें गरीबी, सामाजिक मापदंड, वयस्‍कों तथा किशोरों के लिए अच्‍छे कार्य करने के अवसरों की कमी, प्रवास और इमरजेंसी शामिल हैं। ये सब वज़हें सिर्फ कारण नहीं बल्कि भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम हैं।

    बच्‍चों का काम स्‍कूल जाना है न कि मजदूरी करना। बाल मजदूरी बच्‍चों से स्‍कूल जाने का अधिकार छीन लेती है और वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीबी के चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाते हैं । बाल मजदूरी शिक्षा में बहुत बड़ी रुकावट है, जिससे बच्‍चों के स्‍कूल जाने में उनकी उपस्थिति और प्रदर्शन पर खराब प्रभाव पड़ता है।

    बाल मजदूरी तथा शोषण की निरंतर मौजूदगी से देश की अर्थव्‍यवस्‍था को खतरा होता है और इसके बच्‍चों पर गंभीर अल्पकालीन और दीर्घकालीन दुष्परिणाम होते हैं जैसे शिक्षा से वंचित हो जाना और उनका शारीरिक व मानसिक विकास ना होने देना।

    बाल तस्‍करी भी बाल मजदूरी से ही जुड़ी है जिसमें हमेशा ही बच्‍चों का शोषण होता है। ऐसे बच्‍चों को शारीरिक, मानसिक, यौन तथा भावनात्‍मक सभी प्रकार के उत्‍पीड़न सहने पड़ते हैं जैसे बच्‍चों को वेश्‍यावृति की ओर जबरदस्‍ती धकेला जाता है, शादी के लिए मजबूर किया जाता है या गैर-कानूनी तरीके से गोद लिया जाता है, इनसे कम और बिना पैसे के मजदूरी कराना, घरों में नौकर या भिखारी बनाने पर मजबूर किया जाता है और यहां तक कि इनके हाथों में हथियार भी थमा दिए जाते हैं। बाल तस्‍करी बच्चों के लिए हिंसा, यौन उत्‍पीड़न तथा एच आई वी संक्रमण (इंफेक्‍शन) का खतरा पैदा करती है।

    बाल मजदूरी तथा शोषण एकीकृत दृष्टिकोण के माध्‍यम से रोके जा सकते हैं जो बाल सुरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के साथ-साथ गरीबी तथा असमानता जैसे मुद्दों, गुणात्‍मक शिक्षा के बेहतर अवसरों, और बच्‍चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जन सहयोग जुटाने में मदद करते हैं।

    अध्‍यापक तथा शिक्षा व्‍यवसाय से जुड़े अन्‍य लोग भी बच्‍चों के हितों की रक्षा के लिए आगे आ सकते हैं और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे समाज के हितधारकों को बच्‍चों की उस दयनीय स्थिति से अवगत करा सकते हैं जहां बच्‍चों में निराशा के साथ-साथ देर तक काम करने के संकेत दिखाई देते हैं। बच्‍चों को काम से बाहर निकाल कर उन्‍हें स्‍कूल भेजने के लिए शोषित परिवारों को जागरूक करने के लिए सरकारी नीतियों में व्‍यापक बदलाव करने की जरूरत है।

    यूनीसेफ, सरकार तथा निजी एंजेसियों के साथ मिलकर बाल मजदूरी समाप्‍त करने के लिए आवश्‍यक नीतियां तैयार करता है। यूनिसेफ बाल मजदूरी को जन्‍म देने वाली उन व्‍यावसायिक पद्धतियों व उनकी सप्लाई चैन के विकल्‍प खोजने के लिए काम करता है। यूनिसेफ़ कर्ज़ के अधीन व बंधुआ मजदूरी को खत्म करने में सहायता करने के लिए परिवारों के साथ मिलकर काम करता है । यूनीसेफ उन कार्यक्रमों के एकीकरण के लिए राज्‍य सरकारों को सहयोग देता है जिनसे बाल मजदूरी समाप्‍त हो सकती है। हम बाल मजदूरी की सांस्‍कृतिक स्‍वीकृति को बदलने में समुदायों को भी सहयोग देते हैं, वहीं दूसरी ओर परिवारों को वैकल्पिक आमदनी, प्री स्‍कूल, गुणात्‍मक शिक्षा तथा संरक्षण सेवाओं की पहुंच का भी ध्‍यान रखते हैं।

    बाल मजदूरी समाप्‍त करने में बच्‍चों की बात सुनना सफलता के लिए बेहद जरूरी है।

    बाल अधिकारों पर संयुक्‍त राष्‍ट्र अधिवेशन का एक प्रमुख संदेश यह है कि बच्‍चों के पास उन्‍हें प्रभावित करने वाले मामलों पर अपने विचार रखने और उन्हें सुने जाने का अधिकार है । बाल मजदूरी रोकने तथा उसके प्रत्‍युततर में बच्‍चों की अहम भूमिका होती है। बाल संरक्षण में वे प्रमुख कारक होते हैं और बहुमूल्‍य जानकारी दे सकते हैं कि उनकी क्या भागीदारी होनी चाहिए और उन्‍हें सरकार तथा समाज सुधारकों से क्‍या अपेक्षाएं हो सकती हैं।

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