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लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है

लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है
आमतौर पर कई निवेशक देखते हैं कि बैंक के शुद्ध मुनाफे में बढ़ोतरी हुई है और ब्याज आय में भी बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसके बावजूद कुछ ब्रोकरेज फर्म कहते हैं कि रिजल्ट बहुत अच्छा नहीं रहा.

क्या होता है रेपो रेट, सीआरआर और मॉनिटरी पॉलिसी? क्या हैं इसके घटने-बढ़ने के मायने

बुधवार को रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी की आरबीआई की घोषणा के बाद तीन सरकारी और एक निजी बैंक ने होम सहित दूसरे लोन की ब्याज दरें बढ़ा दी है। अन्य बैंक भी ब्याज दरों को बढ़ाने की तैयारी में जुटी है। रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, मॉनिटरी पॉलिसी सहित बिजनेस और बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी अन्य टर्म की जानकारी आम लोगों को कम ही होती है। यहां जानिए इन टर्मों के बारे में।

Published: May 06, 2022 12:37:34 pm

Repo Rate: बीते बुधवार को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी का ऐलान किया था। आरबीआई की इस घोषणा के बाद 24 घंटे बाद भी तीन सरकारी और एक निजी बैंक ने होम सहित दूसरे लोन की ब्याज दरें बढ़ा दी है। जाहिर है कि बैंकों का ब्याज दर बढ़ने के साथ ही ईएमआई भी बढ़ेगी। हालांकि रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, मॉनिटरी पॉलिसी सहित बिजनेस और बैंकिग क्षेत्र से जुड़े अन्य टर्म की जानकारी आम लोगों को कम ही होती है। इसलिए यहां उदाहरण के साथ सामान्य बोलचाल की भाषा में जानिए रेपो रेट बढ़ाए जाने का आपपर क्या प्रभाव पड़ेगा?

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रेपो रेट बढ़ने से हमपर क्या प्रभाव पड़ेगा इसे जानने से पहले यह जानना जरूरी है कि रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, मॉनिटरी पॉलिसी होता क्या है? तो आईए पहले जानते हैं इन बैकिंग टर्म के बारे में-

1- रेपो रेट (Repo Rate)
रेपो रेट का मतलब है रिजर्व बैंक द्वारा अन्य बैकों को दिए जाने वाले कर्ज की दर। मतलब वो ब्याज दर जिसपर रिजर्व बैंक देश के अन्य बैंकों को ब्याज देता है। रेपो रेट कम होने का मतलब है कि बैंक अपने ग्राहकों को कम ब्याज दर पर होम लोन, व्हीकल लोन सहित अन्य लोने देंगे। बीते दिनों रेपो रेप बढ़ाया गया है। इस कारण बैंक भी अपना ब्याज दर बढ़ा रही है।

2- रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
रिवर्स रेपो रेट वो रेट है जिस पर बैंकों को आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी के लिक्विडिटी को नियंत्रित करता है। समय-समय पर उस दौर की व्यवस्था व मांग के अनुसार आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ाता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम को उसके पास जमा कराएं।

3- सीआरआर (Cash Reserve Ratio)
भारत की बैंकिंग व्यवस्था के अनुसार देश के सभी बैंकों को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। इसे ही कैश रिजर्व रेश्यो (सीआरआर) या नकद आरक्षित अनुपात कहते हैं।

4 - एसएलआर (Statutory Liquidity Ratio)
लिक्विडिटी (Liquidity) या तरलता के जरिए किसी एसेट या संपत्ति को बिना उसके मार्केट प्राइस को प्रभावित किए रेडी कैश में बदला जा सकता है। सबसे ज्यादा लिक्विड एसेट खुद नकदी ही है। लिक्विडिटी के दो मुख्य प्रकारों में मार्केट लिक्विडिटी और अकाउंटिंग लिक्विडिटी शामिल हैं। लिक्विडिटी की माप करने के लिए करेंट, क्विक और कैश रेशियो सबसे ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है।

5. मॉनिटरी पॉलिसी (Monetary Policy)
मॉनिटरी पॉलिसी या मौद्रिक नीति वह नीति है जो देश के केंद्रीय बैंकों द्वारा मनी सप्लाई को नियंत्रित करने और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सतत आर्थिक विकास को बढ़ावा देती हैं। मॉनिटरी पॉलिसी टूल्स में ओपेन मार्केट परिचालन, बैंकों को प्रत्यक्ष लेंडिग, बैंक रिजर्व आवश्यकता, अपारंपरिक आपात लेंडिंग कार्यक्रम और बाजार अपेक्षाओं को प्रबंधित करना-जो केंद्रीय बैंक की विश्वसनीयता के अधीन है, शामिल है।

रेपो रेट को बढ़ाए जाने से आपका ईएमआई कितना बढ़ेगा
यदि किसी व्यक्ति ने 30 लाख रुपए का होम लोन 20 साल के लिए 7.5 प्रतिशत ब्‍याज दर पर ले रखा है और इस पर अभी हर महीने 24,168 रुपए की ईएमआई चुकाते हैं, तो अब बढ़े हुए ब्याज दर के तहत हर महीने की किस्‍त बढ़कर 24,907 रुपए हो सकती है। यानी आप हर महीने 739 रुपए ज्‍यादा किस्‍त चुकाएंगे। क्योंकि रेपो रेट बढ़ने के बाद आपके कर्ज की ब्‍याज दर भी बढ़कर 7.9 फीसदी हो जाएगी।

पूरी लोनअवधि में 1.77 लाख रुपए का बोझ बढ़ जाएगा
यदि 20 साल के पूरे लोन अवधि की बात की जाए तो पहले के ब्‍याज दर के हिसाब से ग्राहक को 20 साल में कुल 28,00,271 रुपए ब्‍याज के रूप में अदा करना पड़ता। लेकिन अब रेपो रेट बढ़ाए जाने के बाद ब्याज दर बढ़ाए जाने से कुल ब्‍याज देनदारी 29,77,636 रुपये हो जाएगी। इस तरह नई ब्‍याज दर के आधार पर पर कुल 1,77,365 रुपये का बोझ बढ़ जाएगा।

महंगाई को बताया गया रेपो रेट बढ़ाए जाने का कारण
बीते बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने रेपो रेट में 0.40 प्रतिशत की बढ़ोतरी करते हुए इसे 4.40 प्रतिशत कर दिया। इस बढ़ोतरी के पीछे महंगाई को नियंत्रित करने को वजह बताया गया है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि इन्फ्लेशन, जियो पॉलिटिकल टेंशन, कच्चे तेल की कीमत और अन्य सामाग्रियों के बढ़ते दामों ने भारत की अर्थव्यवस्था पर गहरा असर किया है। इसको नियंत्रित करने के लिए रेपो रेट को बढ़ाया जाना जरूरी हो गया था।

Slipage Ratio: स्लिपेज रेशियो क्या है? रेवेन्यू और प्रॉफिट बढ़ने लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है के बावजूद क्यों बैंकों की वित्तीय रिपोर्ट हो सकती है कमजोर

Slipage Ratio: बैंक मैनेजमेंट और बैंकिंग नियामक के अलावा रेटिंग एजेंसियां बैंक को रेटिंग देने के लिए लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है स्लिपेज रेशियो को महत्व देती हैं.

Slipage Ratio: स्लिपेज रेशियो क्या है? रेवेन्यू और प्रॉफिट बढ़ने के बावजूद क्यों बैंकों की वित्तीय रिपोर्ट हो सकती है कमजोर

आमतौर पर कई निवेशक देखते हैं कि बैंक के शुद्ध मुनाफे में बढ़ोतरी हुई है और ब्याज आय में भी बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसके बावजूद कुछ ब्रोकरेज फर्म कहते हैं कि रिजल्ट बहुत अच्छा नहीं रहा.

Slipage Ratio: बैंकों के तिमाही नतीजों पर निवेशकों की निगाहें रहती हैं क्योंकि इसके आधार पर ही अपने निवेश को लेकर वे फैसला लेते हैं. आमतौर पर कई निवेशक देखते हैं कि बैंक के शुद्ध मुनाफे में बढ़ोतरी हुई है और ब्याज आय में भी बढ़ोतरी हुई है लेकिन इसके बावजूद कुछ ब्रोकरेज फर्म कहते हैं कि रिजल्ट बहुत अच्छा नहीं रहा. ऐसा Slipage Ratio के चलते होता है. हाल ही में जून 2021 तिमाही के रिजल्ट का एक्सिस बैंक ने ऐलान किया था जिसके मुताबिक सालाना आधार पर उसके मुनाफे में 94 फीसदी और ब्याज आय में 11 फीसदी की उछाल दर्ज की गई थी. इसके बावजूद कुछ ब्रोकरेज फर्म के मुताबिक स्लिपेज बढ़ने के चलते नतीजे अनुमान से कम रहे. हालांकि ब्रोकरेज फर्मो नें इसे खरीदने की रेटिंग दी हुई है. स्लिपेज रेशियो वह दर है जिस पर गुड लोन बैड में बदल रहे हैं. किसी वित्त वर्ष में बैंक का एनपीए जिस दर से बढ़ता है, वह स्लिपेज है. बैंक मैनेजमेंट और बैंकिंग नियामक के अलावा रेटिंग एजेंसियां भी बैंक को रेटिंग देने के लिए स्लिपेज रेशियो को महत्व देती हैं.

Slipage Ratio को ऐसे समझें

मान लीजिए कि किसी बैंक का ग्रॉस एनपीए पिछले वित्त वर्ष में 12 फीसदी था और बैड लोन बढ़ने के चलते इस वित्त वर्ष में यह बढ़कर 15 फीसदी हो गया तो इसे 3 फीसदी का स्लिपेज कहेंगे. स्लिपेज में तेज बढ़ोतरी का प्रोविजनिंग और नेट प्रॉफिट पर गहरा असर होता है.
एसेट क्वालिटी में कम स्लिपेज या कोई स्लिपेज न होना यह दर्शाता है कि बैंक ने कितने बेहतर तरीके से एसेट क्वालिटी को मैनेज किया है. जब एसेट क्लालिटी बढ़ती है तो लिक्विडिटी, रिस्क लेने की क्षमता और फंड की कम लागत जैसे फायदे भी होते हैं.

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इस तरह होता है आकलन

  • स्लिपेज रेशियो गुड लोन के बैड होने की दर है. गुड लोन का मतलब होता है कि लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है उसकी किश्त समय पर मिलती है लेकिन बैड लोन को लेकर बैंक को आय की उम्मीद कम रहती है या नहीं रहती है. अधिकतर मामलों में 90 दिनों तक अगर किसी लोन की किश्त नहीं मिलती तो बैंक उसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट की श्रेणी में रख देते हैं.
  • स्लिपेज रेशियो के कैलकुलेशन के लिए वर्तमान वर्ष में एनपीए कितना बढ़ा और वर्ष की शुरुआत में स्टैंडर्ड एसेट्स कितना था, इसके अनुपात को 100 से गुणा किया जाता है.

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जानें क्या होता है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, एसएलआर

जानें क्या होता है रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर, एसएलआर

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया मॉनिटरी पॉलिसी का रिव्यू करते समय सीआरआर, रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट से संबंधित ऐलान भी करता है। कई बार यह इसे यथावत रखता है और लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है कई बार इसमें आमूलचूल परिवर्तन करता है। आइए जानें कि आखिर रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, सीआरआर (कैश रिजर्व रेशियो) होता क्या है और एसएलआर यानी स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो के क्या मायने हैं :

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रेपो रेट

जैसा कि आप जानते हैं कि बैंकों को अपने रोज के काम लिए अक्सर बड़ी रकम की लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है जरूरत होती है। अक्सर यह होता है कि इसकी मियाद एक दिन से ज्यादा नहीं होती। तब बैंक केंद्रीय बैंक (भारत में रिजर्व बैंक) से रात भर के लिए (ओवरनाइट) कर्ज लेने का विकल्प अपनाते हैं। इस कर्ज पर रिजर्व बैंक को उन्हें जो ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिए रिजर्व बैंक से कर्ज लेना सस्ता हो जाता है और तब ही बैंक ब्याज दरों में भी कमी करते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा रकम कर्ज के तौर पर दी जा सके। अब अगर रेपो दर में बढ़ोतरी का सीधा मतलब यह होता है कि बैंकों लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है के लिए रिजर्व बैंक से रात भर के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा। ऐसे में जाहिर है कि बैंक दूसरों को कर्ज देने के लिए जो ब्याज दर तय करते हैं, वह भी उन्हें बढ़ाना होगा।

रिवर्स रेपो दर

रिवर्स रेपो रेट ऊपर बताए गए रेपो रेट से उल्टा होता है। इसे ऐसे समझिए: बैंकों के पास दिन भर के कामकाज के बाद बहुत बार एक बड़ी रकम शेष बच जाती है। बैंक वह रकम अपने पास रखने के बजाय रिजर्व बैंक में रख सकते हैं, जिस पर उन्हें रिजर्व बैंक से ब्याज भी मिलता है। जिस दर पर यह ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

वैसे कई बार रिजर्व बैंक को लगता है कि बाजार में बहुत ज्यादा नकदी हो गई है तब वह रिवर्स रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है। इससे होता यह है कि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपना पैसा रिजर्व बैंक के पास रखने लगते हैं।

कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर)

मौद्रिक नीति की समीक्षा के दौरान अक्सर इस पर भी कॉल ली जाती है। यहां बता दें कि सभी बैंकों के लिए जरूरी होता है कि वह अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा रखें। इसे नकद आरक्षी अनुपात यानी कि कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) कहते हैं। ऐसा इसलिए किया जाता है कि अगर किसी भी मौके पर एक साथ बहुत बड़ी संख्या में जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आ जाएं तो बैंक डिफॉल्ट न कर सके।

आरबीआई जब ब्याज दरों में बदलाव किए बिना बाजार से लिक्विडिटी कम करना चाहता है, तो वह सीआरआर बढ़ा देता है। इससे बैंकों के पास बाजार में कर्ज देने के लिए कम रकम बचती है। वहीं सीआरआर को घटाने से बाजार में नकदी की सप्लाई बढ़ जाती है।

स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो (एसएलआर)
एसएलआर यानी कि स्टैच्यूटरी लिक्विडिटी रेशियो। वाणिज्यिक बैंकों के लिए अपने प्रतिदिन के कारोबार के आखिर में नकद, सोना और सरकारी सिक्यॉरिटीज में निवेश के रूप में एक निश्चित रकम रिजर्व बैंक के पास रखनी जरूरी होता है। इस रकम का इस्तेमाल किसी भी आपात देनदारी को पूरा करने में इस्तेमाल किया जा सकता है। अब वह रेट जिस पर बैंक यह पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे ही एसएलआर कहते हैं। इसके तहत अपनी कुल देनदारी के अनुपात में सोना आरबीआई के पास रखना होता है।

ब्याज़ दरों कोई बदलाव नहीं

बैंक दरों में कटौती का काफ़ी दिनों से इंतरज़ार था

बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने मंगलवार को मुद्रा नीति की घोषणा की है जिसमें मुख्य ब्याज़ दर में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसे 7.75 फ़ीसदी पर ही रखा गया है.

दूसरी ओर भारतीय रिज़र्व बैंक ने स्टैचुअरी लिक्विडिटी रेशियो मे 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर इसे 21.50 पर कर दिया है.

सीआरआर में बदलाव नहीं

इसी तरह देश की केंद्रीय बैंक ने कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) यानी जमा-नक़द लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है अनुपात में भी कोई बदलाव नहीं किया है.

वाणिज्यिक बैंक जो पैसे रिजर्व बैंक के पास जमा रखते हैं और जितना नक़द उनके पास कर्ज़ देने के लिए होता है, उस अनुपात को सीआरआर कहते हैं.

बैंक के गवर्नर ने सरकार की ओर से किसी तरह के दवाब से इंकार करते हुए कहा कि उन्हें काम करने की पूरी छूट दी गई है.

राजन ने कहा कि फ़िलहाल थोड़ी सावधानी बरतने की ज़रूरत है.

यथास्थिति के संकेत

आरबीआई के गवर्नर राजन ने कहा कि बीते साल सेवा क्षेत्र में कामकाज अच्छा रहने और खपत बढ़ने की वजह से सकल घरेलू उत्पाद पर उतना असर नहीं पड़ा, जितना पड़ सकता था.

रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने फ़िलहाल यथास्थिति बनाए रखने के संकेत दिए हैं.

उन्होंने यह संकेत भी दिया कि ब्याज़ दरों में कोई बदलाव करने लिक्विडिटी रेशियो क्‍या है पर विचार नए आंकड़ों के मिलने के बाद ही किया जा सकता है.

राजन की घोषणा के तुरंत बाद शेयर बाज़ार की स्थिति सुधरी और सेंसेक्स एक बार फिर ऊपर उठने लगा.

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RBI: 40 महीने में पहली बार बैंकिंग सिस्टम में हुई नगदी की कमी! आरबीआई को उठाना पड़ा ये कदम

Liquidity In Banking System: मई 2019 के बाद ये पहला मौका है जब बैंकिंग सिस्टम में नगदी की कमी हुई है.

By: ABP Live | Updated at : 21 Sep 2022 01:12 PM (IST)

Edited By: manishkumar

Indian Banking System: महंगाई (Inflation) पर नकेल कसने के लिए आरबीआई ( RBI) द्वारा लिए गए कड़े नीतिगत फैसलों ( Policy Decision) के बाद 40 महीनों में पहली बार भारतीय बैंकिंग सिस्टम ( Indian Banking System) में नगदी की कमी हो गई है. इस हालात के बाद आरबीआई को बैंकिंग सिस्टम में 2.73 अरब डॉलर यानि 21800 करोड़ रुपये मंगलवार 20 सितंबर, 2022 को डालने पड़े हैं. मई 2019 के बाद ये पहला मौका है जब बैंकिंग सिस्टम में नगदी की कमी हुई है.

दरअसल 4 मई 2022 को आरबीआई ने महंगाई पर लगाम लगाने के लिए मॉनिटरी पॉलिसी की बैठक में कैश रिजर्व रेशियो (Cash Reserve Ratio) बढ़ाने का फैसला किया था. बैंकिंग सिस्टम में मौजूद अतिरिक्त नगदी को कम करने के मकसद से आरबीआई कैश रिजर्व रेशियो यानि सीआरआर (CRR) में 50 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी कर इसे 4 फीसदी से बढ़ाकर 4.50 फीसदी कर दिया. सीआरआर में बढ़ोतरी का फैसला 21 मई, 2022 से लागू हुआ था. इससे बैंकिंग सिस्टम में मौजूद 90,000 करोड़ रुपये की अतिरिक्त नगदी में कमी आ गई.

दरअसल महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है. इसकी बड़ी वजह बाजार में मौजूदा ज्यादा नगदी को माना जा रहा है. यही वजह है कि बैंकों के पास मौजूदा ज्यादा नगदी को सोकने के लिए आरबीआई ने सीआरआर में 50 बेसिस प्वाइंट बढ़ाने का फैसला किया था. बैंकों को कुल जमा का 4.50 फीसदी रकम आरबीआई के पास सीआरआर के तौर पर जमा रखना पड़ रहा है. इससे बैंकिंग सिस्टम में मौजूदा अतिरिक्त नगदी घट गई है. बैंकों को अब सोच समझकर कर्ज उपलब्ध करा रहे हैं. आपको बता दें सीआरआर जो आरबीआई के पास बैंकों को रखना होता है उसपर आरबीआई बैंकों को ब्याज भी नहीं देती है.

बैंकिंग सिस्टम में नगदी की कमी के बाद एक दिन के लिए कॉल मनी रेट्स बढ़कर 5.85 फीसदी पर जा पहुंचा है जो कि जुलाई, 2019 के बाद सबसे ज्यादा है.

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Published at : 21 Sep 2022 01:03 PM (IST) Tags: inflation crr indian banking system RBI Cash Reserve Ratio हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

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