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क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है

क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है

विदेशी मुद्रा भंडार पिछले 5 दिनों में 11.17 अरब डॉलर फिसला, हफ्तेभर में आई सबसे बड़ी गिरावट

Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट आई है. आइए जानें इस हफ्ते कैसा रहा विदेशी निवेशकों का कारोबार-

By: ABP Live | Updated at : 09 Apr 2022 03:37 PM (IST)

विदेशी मुद्रा भंडार (फाइल फोटो)

Foreign Exchange Reserves: विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ी साप्ताहिक गिरावट आई है. ग्लोबल भू-राजनीतिक घटनाक्रमों की वजह से मुद्रा के दबाव में आने के कारण भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 11.173 अरब डॉलर घटकर 606.475 अरब डॉलर पर आ गया. भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने आंकड़ों में इस बारे में जानकारी दी है.

25 मार्च को भी आई थी गिरावट
इससे पूर्व 25 मार्च को समाप्त सप्ताह में विदेशी मुद्रा भंडार 2.03 अरब डॉलर घटकर 617.648 अरब डॉलर रहा था. आरबीआई की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट, विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों (FCA) के घटने की वजह से आई जो कुल मुद्राभंडार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. आंकड़ों के मुताबिक, एफसीए 10.727 अरब डॉलर घटकर 539.727 अरब डॉलर रह गया.

जानें कैसा इंटरनेशन करेंसी का हाल?
डॉलर में अभिव्यक्त विदेशी मुद्रा भंडार में रखे जाने वाले विदेशी मुद्रा आस्तियों में यूरो, पौंड और येन जैसे गैर अमेरिकी मुद्रा में मूल्यवृद्धि अथवा मूल्यह्रास के प्रभावों को शामिल किया जाता है.

9.6 अरब डॉलर की आई कमी
आपको बता दें आरबीआई अपने विदेशी मुद्रा भंडार से डॉलर बेचकर मुद्रा बाजार में अस्थिरता को कम करने के लिए बाजार में हस्तक्षेप करता है. यूक्रेन पर रूस के हमले ने मुद्रा बाजारों में समस्या पैदा कर दी है. इससे पहले 11 मार्च को समाप्त सप्ताह में 9.6 अरब डॉलर की सर्वाधिक कमी आयी थी.

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गोल्ड रिजर्व में आई गिरावट
आलोच्य सप्ताह में स्वर्ण भंडार (Gold Reserve) का मूल्य भी 50.7 करोड़ डॉलर घटकर 42.734 अरब डॉलर रह गया. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के पास जमा विशेष आहरण अधिकार (SDR) 5.8 करोड़ डॉलर बढ़कर 18.879 अरब डॉलर हो गया. आईएमएफ में रखे देश का मुद्रा भंडार भी 40 लाख डॉलर बढ़कर 5.136 अरब डॉलर हो गया.

Published at : 09 Apr 2022 03:33 PM (IST) Tags: foreign currency gold reserve foreign exchange reserves Gold forex हिंदी समाचार, ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें abp News पर। सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट एबीपी न्यूज़ पर पढ़ें बॉलीवुड, खेल जगत, कोरोना Vaccine से जुड़ी ख़बरें। For more related stories, follow: Business News in Hindi

विदेशी मुद्रा भंडार का कैसे हो इस्तेमाल

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले वित्त वर्ष की शुरुआत से 160 अरब डॉलर से अधिक बढ़ चुका है और इस समय करीब 640 अरब डॉलर है। अगर यही रुझान बना रहा तो भारत के पास जल्द ही 700 अरब डॉलर से अधिक का भंडार हो सकता है। साफ तौर पर देश 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों की उस स्थिति से बहुत बेहतर हालत में आ चुका है, जब वह बड़ी मुश्किल से डिफॉल्ट से बच पाया था। लेकिन अब भारत सबसे अधिक विदेशी मुद्रा भंडार वाले देशों में से एक है, जिससे यह बहस शुरू हुई है कि भारत को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का क्या करना चाहिए। आम तौर पर यह सुझाव दिया जाता है कि भंडार का इस्तेमाल बुनियादी ढांचे के वित्त पोषण में हो। लेकिन यह साफ नहीं है कि ऐसा कैसे किया जा सकता है। विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल विदेशी सामान एवं सेवाएं या परिसंपत्तियां खरीदने में किया जा सकता है। इस तरह भंडार के इस्तेमाल का मतलब होगा कि भारत बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए बहुत से उपकरणों और सामग्री का आयात करेगा। यह पसंदीदा तरीका नहीं होने के आसार हैं और इसके विभिन्न वृहद आर्थिक असर होंगे।

आम तौर पर सुझाया जाने वाला एक अन्य विकल्प सॉवरिन वेल्थ फंड बनाना है, जिससे भारत विदेश में परिसंपत्तियां खरीद सकेगा। यह भी तर्क दिया जाता है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को प्रतिफल बढ़ाने के लिए अपने निवेेश को विविधीकृत बनाना चाहिए। यह अमेरिकी सरकार की प्रतिभूतियों जैसी अत्यधिक तरल परिसंपत्तियों में निवेश करता है, इसलिए अमूमन प्रतिफल कम रहता है। शायद विकसित बाजारों में कम ब्याज दरों की वजह से भी प्रतिफल कम रहता हो। ऐसे में ये तर्क सही लगते हैं, लेकिन शायद केंद्रीय बैंक के पास शेयरों या उच्च प्रतिफल वाले बॉन्डों में निवेश की क्षमता नहीं है। इसके अलावा इससे जोखिम बढ़ जाएगा और भंडार रखने का कोई मतलब नहीं होगा।

इस संदर्भ में इस तथ्य को समझना जरूरी है कि भारत ने चालू खाता अधिशेष के जरिये विदेशी मुद्रा भंडार नहीं बनाया है। भारत में हमेशा चालू खाता घाटा रहता है, जिसका मतलब है कि यह बाकी की दुनिया से वस्तुओं और सेवाओं का शुद्ध आयातक है। असल में भारत का भंडार पूंजी के अतिरिक्त प्रवाह को दर्शाता है और इसका एक हिस्सा क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है बहुत जल्दी वापस जा सकता है। विदेशी मुद्रा भंडार पर आरबीआई की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस भंडार में अस्थिर प्रवाह का अनुपात 65 फीसदी से अधिक है। भारत का भंडार पिछले करीब 18 महीनों के दौरान पूंजी के अधिक प्रवाह के कारण ही तेजी से बढ़ा है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं, खास तौर पर अमेरिका में अत्यधिक नरम मौद्रिक नीति से पूंजी का अधिक प्रवाह हुआ है। ऐसे में आरबीआई ने भंडार बनाने के लिए मुद्रा बाजार में पूरा दखल देकर अच्छा काम किया है। कम दखल से भारतीय रुपये में अनावश्यक मजबूती आती। वैसे भी भारतीय रुपये का मूल्य अधिक है, जिससे भारत की विदेशी बाजारों में प्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित हुई है।

मुद्रा बाजार में दखल से मदद भी मिली है क्योंकि इससे अर्थतंत्र में रुपये की तरलता बढ़ी और आरबीआई को महामारी के दौरान बाजार में ब्याज दरों को नीचे लाने में मदद मिली। लेकिन अब स्थितियां बदलने लगी हैं। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने अपने परिसंपत्ति खरीद कार्यक्रम को घटाने का फैसला किया है और ऊंची महंगाई उसे उम्मीद से पहले मौद्रिक नीति क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है को सख्त करने के लिए मजबूर कर सकती है। इससे वैश्विक वित्तीय स्थितियां सख्त बन सकती हैं और भारत जैसे देश से पूंजी, कम से कम कुछ समय के लिए ही बाहर जा सकती है। हालांकि भारत 2013 के 'टैपर टैंट्रम' (बॉन्ड खरीद में कमी) के घटनाक्रम की तुलना में बेहतर स्थिति में है। लेकिन फिर भी वैश्विक धन प्रबंधकों के ब्याज दरों के बदलते माहौल में अपनी पोजिशन में फेरबदल से भारत से पूंजी की अहम निकासी हो सकती है। आम तौर पर पोर्टफोलियो प्रबंधक बड़े बाजारों में ज्यादा बिकवाली करते हैं क्योंकि उनके लिए कीमतों को अधिक प्रभावित किए बिना ऐसा करना तुलनात्मक रूप से आसान होता है।

ऐसी स्थिति में बड़े भंडार का यह फायदा होगा कि आरबीआई मुद्रा बाजार की उठापटक को शांत करने में सक्षम होगा, जिससे कारोबारी रुपये के खिलाफ दांव लगाने को हतोत्साहित होंगे। पूंजी की बड़ी निकासी से मुद्रा में गिरावट निश्चित बन जाएगी, जिससे वित्तीय स्थिरता को लेकर जोखिम पैदा होंगे। इस तरह ऐसे वैश्विक आर्थिक माहौल में बड़े भंडार की वित्तीय स्थिरता लाने में अहम भूमिका हो सकती है। हालांकि बहुत ज्यादा बड़ा भंडार भी समस्याएं पैदा कर सकता है। इसके अलावा बड़े भंडार को नीतिगत समझदारी के एक विकल्प के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। इस समय भारत के लिए सबसे बड़ा जोखिम उसका राजकोषीय स्थिति है। महामारी की वजह से राजकोषीय स्थिति में कमजोरी से बचना मुश्किल था, लेकिन विदेशी और घरेलू निवेेशकों की इस चीज पर नजर बनी क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है रहेगी कि भारत कितने असरदार तरीके से लंबी अवधि की टिकाऊ राजकोषीय राह पर लौटता है। इसमें अधिक देरी होने से वृद्धि के जोखिम बढ़ेंगे और पूंजी का प्रवाह प्रभावित होगा।

बड़ा भंडार बाह्य खाते को स्थिरता देता है, लेकिन आरबीआई अपनी ही नीतिगत जटिलताओं के कारण लगातार विदेशी मुद्रा का भंडारण जारी नहीं रख सकता। बड़े भंडार से ज्यादा पूंजी का प्रवाह हो सकता है, जिससे मुद्रा प्रबंधन मुश्किल बन सकता है। इससे रुपये में मजबूती का दबाव बनेगा और भारत की प्र्रतिस्पर्धी क्षमता प्रभावित होगी। आरबीआई के लगातार दखल से अर्थतंत्र में रुपये की तरलता का स्तर बढ़ेगा और मुद्रास्फीति के जोखिम पैदा होंगे। लगातार नियंत्रण की भी कीमत चुकानी पड़ती है।

इसलिए मुद्रा बाजार में अत्यधिक दखल के बजाय भारत अपनी जरूरत के विदेशी प्रवाह पर पुनर्विचार कर सकता है। मुद्रा बाजार में अत्यधिक दखल की अपनी सीमाएं और कीमत हैं। कर्ज के बजाय प्रत्यक्ष विदशी निवेश और इक्विटी प्रवाह को तरजीह दी जानी चाहिए। उदाहरण के लिए भारत का बाह्य वाणिज्यिक उधारी का स्टॉक 200 अरब डॉलर से अधिक है। हालांकि नीति प्रतिष्ठान अन्य दिशा में जा रहा है। यह सरकारी बॉन्डों को वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में शामिल कराने की कोशिश कर रहा है। इससे डेट पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा, जो इस समय ठीक नहीं क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है है। इससे विदेशी मुद्रा प्रबंधन और मुश्किल बन जाएगा। इससे बाहरी झटकों का भारत के लिए जोखिम बढ़ जाएगा। हालांकि आरबीआई ने मुद्रा बाजार के प्रबंधन में अच्छा काम किया है, लेकिन नीति-निमाताओं को क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है व्यापक वृहद आर्थिक उद्देेश्यों के साथ पूंजी खाते का तालमेल बैठाना चाहिए।

विदेशी मुद्रा व्यापार क्या है?

क्या आप उस समय को याद कर सकते हैं जब आप बचपन में नोट और सिक्के एकत्र किया करते थे? ज्यादातर, उस समय, बच्चों का झुकाव विदेशी मुद्रा की ओर अधिक था। सिग्नेचर से लेकर कलर तक सब कुछ आंखों में झिलमिलाहट दे रहा था।

और, जैसे-जैसे उनमें से कई बड़े हुए, उनमें एक मुद्रा का शेष विश्व की मुद्रा से संबंध का पता लगाने की जिज्ञासा होने लगी। यह अवधारणा विदेशी मुद्रा व्यापार के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे विदेशी मुद्रा व्यापार भी कहा जाता है। अधिक जानने के लिए उत्सुक हैं? जानने के लिए आगे पढ़ें।

Forex Trading

विदेशी मुद्रा बाजार क्या है?

विदेशी मुद्रा (एफएक्स) एक बाज़ार है जहाँ कई राष्ट्रीय मुद्राओं का कारोबार होता है। यह सबसे अधिक तरल और सबसे बड़ा हैमंडी दुनिया भर में हर दिन खरबों डॉलर का आदान-प्रदान हो रहा है। यहां एक रोमांचक पहलू यह है कि यह एक केंद्रीकृत बाजार नहीं है; बल्कि, यह दलालों, व्यक्तिगत व्यापारियों, संस्थानों और बैंकों का एक इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क है।

बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा बाजार न्यूयॉर्क, लंदन, टोक्यो, सिंगापुर, सिडनी, हांगकांग और फ्रैंकफर्ट जैसे प्रमुख वैश्विक वित्तीय केंद्रों में स्थित हैं। संस्थाएं हों या व्यक्तिगत निवेशक, वे इस नेटवर्क पर मुद्राओं को बेचने या खरीदने का आदेश पोस्ट करते हैं; और इस प्रकार, वे एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और अन्य पार्टियों के साथ मुद्राओं का आदान-प्रदान करते हैं।

यह विदेशी मुद्रा बाजार चौबीसों घंटे खुला रहता है, लेकिन किसी भी राष्ट्रीय या अचानक छुट्टियों को छोड़कर, सप्ताह में पांच दिन खुला रहता है।

विदेशी मुद्रा जोड़े और मूल्य निर्धारण

ऑनलाइन विदेशी मुद्रा व्यापार एक जोड़ी तरीके से होता है, जैसे EUR/USD, USD/JPY, या USD/CAD, और बहुत कुछ। ये जोड़े राष्ट्रीयता का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे कि यूएसडी अमेरिकी डॉलर के लिए खड़ा होगा; सीएडी कैनेडियन डॉलर और अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।

इस जोड़ी के क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है साथ, उनमें से प्रत्येक के साथ एक मूल्य जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, मान लें कि कीमत 1.2678 है। अगर यह कीमत एक USD/CAD जोड़ी से जुड़ी है, तो इसका मतलब है कि आपको एक USD खरीदने के लिए 1.2678 CAD का भुगतान करना होगा। याद रखें कि यह कीमत तय नहीं है और उसी के अनुसार बढ़ या घट सकती है।

ट्रेडिंग कैसे होती है?

चूंकि सप्ताह के दिनों में बाजार 24 घंटे खुला रहता है, आप किसी भी समय मुद्रा खरीद या बेच सकते हैं। पहले, मुद्रा व्यापार केवल तक ही सीमित थाहेज फंड, बड़ी कंपनियां, और सरकारें। हालांकि मौजूदा समय में कोई भी इसे जारी रख सकता है।

कई बैंक, निवेश फर्म, साथ ही खुदरा विदेशी मुद्रा दलाल हैं जो आपको खाते और व्यापार मुद्राएं खोलने का अवसर प्रदान कर सकते हैं। इस बाजार में व्यापार करते समय, आप किसी विशिष्ट देश की मुद्रा को दूसरे के लिए प्रासंगिकता में खरीदते या बेचते हैं।

हालांकि, एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में कोई भौतिक आदान-प्रदान नहीं होता है। इस इलेक्ट्रॉनिक दुनिया में, आमतौर पर, व्यापारी एक निश्चित मुद्रा में एक स्थिति लेते हैं और आशा करते हैं कि खरीदारी करते समय मुद्रा में ऊपर की ओर गति हो सकती है या बेचते समय कमजोरी हो सकती है ताकि इससे लाभ कमाया जा सके।

इसके अलावा, आप हमेशा दूसरी मुद्रा के लिए प्रासंगिकता में व्यापार कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, यदि आप एक को बेच रहे हैं, तो आप दूसरा खरीद रहे हैं और इसके विपरीत। ऑनलाइन बाजार में, लेनदेन की कीमतों के बीच उत्पन्न होने वाले अंतर पर लाभ कमाया जा सकता है।

विदेशी मुद्रा व्यापार के तरीके

मूल रूप से, तीन तरीके हैं जो निगम, व्यक्ति और संस्थान विदेशी मुद्रा ऑनलाइन व्यापार करने के लिए उपयोग करते हैं, जैसे:

हाजिर बाजार

विशेष रूप से, यह बाजार सभी मुद्राओं को उनकी वर्तमान कीमत के अनुसार खरीदने और बेचने के लिए है। कीमत मांग और आपूर्ति से निर्धारित होती है और राजनीतिक स्थितियों, आर्थिक प्रदर्शन और वर्तमान ब्याज दरों सहित कई कारकों को दर्शाती है। इस बाजार में, एक अंतिम सौदे को स्पॉट डील कहा जाता है।

वायदा बाजार

हाजिर बाजार के विपरीत, यह अनुबंधों के व्यापार में एक सौदा है। वे उन पार्टियों के बीच ओटीसी खरीदे और बेचे जाते हैं जो खुद समझौते की शर्तों को समझते हैं।

वायदा बाजार

इस बाजार में, वायदा अनुबंधों को खरीदा और बेचा जाता हैआधार शिकागो मर्केंटाइल एक्सचेंज जैसे सार्वजनिक जिंस बाजारों पर उनके मानक आकार और निपटान की तारीख। इन अनुबंधों में कुछ विवरण शामिल होते हैं, जैसे कारोबार की गई इकाइयां, वितरण, मूल्य में न्यूनतम वृद्धि और निपटान तिथियां।

प्रशिक्षण की आवश्यकता

विदेशी मुद्रा व्यापार के गतिशील वातावरण में पर्याप्त प्रशिक्षण आवश्यक है। चाहे आप एक अनुभवी या मुद्रा व्यापार के विशेषज्ञ हों, लगातार और संतोषजनक लाभ प्राप्त करने के लिए अच्छी तरह से तैयार होना आवश्यक है।

बेशक, इसे करने से आसान कहा जा सकता है; लेकिन असंभव कभी नहीं। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप अपनी सफलता को न छोड़ें, अपना प्रशिक्षण कभी बंद न करें। एक मौलिक व्यापारिक आदत विकसित करें, वेबिनार में भाग लें और यथासंभव प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए शिक्षा प्राप्त करना जारी रखें।

रुपये को मिलती वैश्विक स्वीकार्यता, भारतीय मुद्रा का बढ़ता महत्व

वर्तमान संकेट के दौर में भी यह कई मुद्राओं की तुलना में मजबूत हुआ है। लिहाजा नई व्यवस्था से आयातक और निर्यातक दोनों को फायदा हो सकता है। साथ ही इससे विदेशी मुद्रा भंडार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।

सतीश सिंह। जापान की रेटिंग एजेंसी नोमुरा होल्डिंग्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान वैश्विक अनिश्चितता के कारण कई देश आर्थिक संकट में फंस सकते हैं। भारत भी थोड़ा चिंतित है, क्योंकि व्यापार घाटा जून में बढ़कर 26.18 अरब डालर हो गया है। साथ ही जून में भारत का निर्यात 23.52 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन इस दौरान वस्तुओं का आयात सालाना आधार पर 57.55 प्रतिशत उछाल के साथ 66.31 अरब डालर पर पहुंच गया। व्यापार घाटे में तेजी से वृद्धि के कारण पेट्रोलियम, कोयले और सोने के आयात में भारी बढ़ोतरी होना है। अगर ऐसी ही स्थिति कायम रहती है तो रुपया और भी कमजोर होकर 81 के स्तर को पार कर सकता है।

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रूस-यूक्रेन युद्ध समेत अनेक कारणों से विश्व में भू-राजनीतिक संकट अभी भी कायम है। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें आसमान पर हैं। भारत रूस और यूक्रेन से अनेक उत्पादों का आयात करता है। साथ ही, पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के कारण भारत इराक जैसे देश के साथ कारोबार नहीं कर पा रहा है। वर्तमान परिदृश्य में भारत तथा अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में करना भारत के लिए फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे क्या विदेशी मुद्रा है और कैसे यह कारोबार कर रहा है रूस, यूक्रेन, श्रीलंका, इराक आदि देशों के साथ कारोबार करने में भारत को आसानी होगी। साथ ही निर्यात को प्रोत्साहन मिलेगा और वैश्विक कारोबारियों के बीच रुपये की स्वीकार्यता बढ़ेगी। महंगाई में भी कमी आएगी और भू-राजनीतिक संकट के दुष्प्रभावों को भी नाकाम किया जा सकेगा। वैसे आरबीआइ द्वारा उठाए गए कदमों से थोक महंगाई में कमी आई है। जून में यह घटकर 15.18 प्रतिशत पर आ गई, जबकि मई में यह 15.88 प्रतिशत थी।

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इसमें कोई संदेह नहीं कि अभी डालर विश्व की सबसे मजबूत मुद्रा है और इसी वजह से अधिकांश अंतरराष्ट्रीय कारोबार डालर में किया जा रहा है, परंतु नई व्यवस्था को अपनाने के बाद भारत रुपये में अंतरराष्ट्रीय कारोबार कर सकेगा। इसके लिए भारतीय बैंक रुपये में वोस्ट्रो खाते खोल सकेंगे और वस्तुओं या सेवाओं का आयात करने वाले आयातक विदेशी विक्रेता को उनके सामान की कीमत रुपये में अदा कर सकेंगे अर्थात आयातक का बैंक निर्यातक के बैंक के वोस्ट्रो खाते में सामान की कीमत सीधे रुपये में जमा कर सकेगा। इसी तर्ज पर, निर्यातक वस्तु एवं सेवा की कीमत का भुगतान डालर या दूसरी विदेशी मुद्राओं की जगह रुपये में कर सकेंगे।

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वैसे, इस व्यवस्था को लागू करने की मांग लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की स्वीकार्यता को लेकर सरकार के मन में संशय कायम था। बीते दिनों रूस ने भारत के समक्ष रुपये में कारोबार करने का प्रस्ताव रखा था। उसके बाद से इस व्यवस्था को मूर्त रूप देने के लिए गंभीरता से विचार किया जाने लगा। अभी, भारत और रूस के बीच चीन की मुद्रा युआन में कच्चे तेल का कारोबार किया जा रहा है।

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अप्रैल और मई में रूस से भारत का आयात 2.5 अरब डालर था, जो सालाना आधार पर 30 अरब डालर होता है, जिसके इस वित्त वर्ष के दौरान 36 अरब डालर होने का अनुमान है। चूंकि अब यूरो के साथ चीन की मुद्रा युआन में भी अंतरराष्ट्रीय कारोबार किया जाने लगा है, जिससे डालर का प्रभुत्व कम हुआ है। जब डालर और दूसरी विदेशी मुद्राओं की जगह रुपये में कारोबार किया जाने लगेगा तो डालर और ज्यादा कमजोर हो जाएगा। उल्लेखनीय है कि रुपया अभी सभी मुद्राओं की तुलना में कमजोर नहीं हुआ है।

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं

रुपये के कमजोर या मजबूत होने का मतलब क्या है?

विदेशी मुद्रा भंडार के घटने और बढ़ने से ही उस देश की मुद्रा पर असर पड़ता है. अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी का रुतबा हासिल है. इसका मतलब है कि निर्यात की जाने वाली ज्यादातर चीजों का मूल्य डॉलर में चुकाया जाता है. यही वजह है कि डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत से पता चलता है कि भारतीय मुद्रा मजबूत है या कमजोर.

अमेरिकी डॉलर को वैश्विक करेंसी इसलिए माना जाता है, क्योंकि दुनिया के अधिकतर देश अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में इसी का प्रयोग करते हैं. यह अधिकतर जगह पर आसानी से स्वीकार्य है.

इसे एक उदाहरण से समझें
अंतर्राष्ट्रीय कारोबार में भारत के ज्यादातर बिजनेस डॉलर में होते हैं. आप अपनी जरूरत का कच्चा तेल (क्रूड), खाद्य पदार्थ (दाल, खाद्य तेल ) और इलेक्ट्रॉनिक्स आइटम अधिक मात्रा में आयात करेंगे तो आपको ज्यादा डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. आपको सामान तो खरीदने में मदद मिलेगी, लेकिन आपका मुद्राभंडार घट जाएगा.

मान लें कि हम अमेरिका से कुछ कारोबार कर रहे हैं. अमेरिका के पास 68,000 रुपए हैं और हमारे पास 1000 डॉलर. अगर आज डॉलर का भाव 68 रुपये है तो दोनों के पास फिलहाल बराबर रकम है. अब अगर हमें अमेरिका से भारत में कोई ऐसी चीज मंगानी है, जिसका भाव हमारी करेंसी के हिसाब से 6,800 रुपये है तो हमें इसके लिए 100 डॉलर चुकाने होंगे.

अब हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 900 डॉलर बचे हैं. अमेरिका के पास 74,800 रुपये. इस हिसाब से अमेरिका के विदेशी मुद्रा भंडार में भारत के जो 68,000 रुपए थे, वो तो हैं ही, लेकिन भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में पड़े 100 डॉलर भी उसके पास पहुंच गए.

अगर भारत इतनी ही राशि यानी 100 डॉलर का सामान अमेरिका को दे देगा तो उसकी स्थिति ठीक हो जाएगी. यह स्थिति जब बड़े पैमाने पर होती है तो हमारे विदेशी मुद्रा भंडार में मौजूद करेंसी में कमजोरी आती है. इस समय अगर हम अंतर्राष्ट्रीय बाजार से डॉलर खरीदना चाहते हैं, तो हमें उसके लिए अधिक रुपये खर्च करने पड़ते हैं.

कौन करता है मदद?
इस तरह की स्थितियों में देश का केंद्रीय बैंक RBI अपने भंडार और विदेश से खरीदकर बाजार में डॉलर की आपूर्ति सुनिश्चित करता है.

आप पर क्या असर?
भारत अपनी जरूरत का करीब 80% पेट्रोलियम उत्पाद आयात करता है. रुपये में गिरावट से पेट्रोलियम उत्पादों का आयात महंगा हो जाएगा. इस वजह से तेल कंपनियां पेट्रोल-डीजल के भाव बढ़ा सकती हैं.

डीजल के दाम बढ़ने से माल ढुलाई बढ़ जाएगी, जिसके चलते महंगाई बढ़ सकती है. इसके अलावा, भारत बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों और दालों का भी आयात करता है. रुपये की कमजोरी से घरेलू बाजार में खाद्य तेलों और दालों की कीमतें बढ़ सकती हैं.

यह है सीधा असर
एक अनुमान के मुताबिक डॉलर के भाव में एक रुपये की वृद्धि से तेल कंपनियों पर 8,000 करोड़ रुपये का बोझ पड़ता है. इससे उन्हें पेट्रोल और डीजल के भाव बढ़ाने पर मजबूर होना पड़ता है. पेट्रोलियम उत्पाद की कीमतों में 10 फीसदी वृद्धि से महंगाई करीब 0.8 फीसदी बढ़ जाती है. इसका सीधा असर खाने-पीने और परिवहन लागत पर पड़ता है.

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