ग्रोथ या डिविडेंड

कई निवेशक स्कीम के डिविडेंड के इतिहास पर जोर देते हैं। उनके मुताबिक डिविडेंड का ट्रेंड जारी रहेगा। लेकिन, कई बार बाजार की नब्ज पहचानने में गलती कर देते हैं। जब बाजार अच्छा हो तब डिविडेंड की घोषणा आसान होती है। आप फंड की परफॉरमेंस हर मार्केट साइकिल में जांचे। यह भी देखें कि जब बाजार में मंदी थी तब भी क्या स्कीम में डिविडेंड का एलान हुआ। इससे फंड के लगातार प्रदर्शन का पता चलेगा।
LIC News: एलआईसी ने शुरू की निवेशकों को हुए नुकसान की भरपाई की कवायद, जानिए क्या हुई है तैयारी
By: ABP Live | Updated at : 25 May 2022 07:51 AM (IST)
LIC Share News: देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के आईपीओ (IPO) ने भले ही निवेशकों को निराश किया हो, लेकिन उन्हें हुए नुकसान की भरपाई की तैयारी अब कंपनी ने कर ली है. एलआईसी की ओर से मंगलवार को कहा गया है कि उसका बोर्ड डिविडेंड देने पर विचार करेगा. हालांकि, इसके बारे में पूरा खुलासा 30 मई जारी होने वाले पहले तिमाही परिणामों में होगा.
बता दें एलआईसी आईपीओ के शेयर बाजार में लिस्ट होने के बाद कंपनी पहले तिमाही परिणामों का खुलासा करेगी. इसी बैठक में डिविडेंड देने पर भी विचार किया जाएगा. जाहिर है कि कंपनी ने ऐसी योजना तैयार की है कि उसके जरिए उन लोगों को कमाई का मौका मिलेगा, जिन्हें आईपीओ ने घाटा पहुंचाया है.
MF में डिविडेंड प्लान लेना चाहिए या ग्रोथ प्लान, कहां होगा आपको ज्यादा फायदा?
- Vijay Parmar
- Publish Date - August 2, 2021 / 04:37 PM IST
Mutual Fund Investment: म्यूचुअल फंड में निवेशक को आवश्यकता के अनुसार निवेश करने का मौका मिले इस उद्देश्य से विभिन्न प्रकार के प्लान बनाएं गए है, जिसमें ग्रोथ प्लान और डिविडंड प्लान भी शामिल है. दोनों विकल्प में से कौन सा प्लान आपके लिए सही है उसका चुनाव आपके वित्तीय उद्देश्यों और जरूरतों पर निर्भर करता है. यदि आपको नियमित आय की आवश्यकता हैं तो आप डिविडेंड प्लान में निवेश कर सकते हैं और अगर आपको नियमित Cash Flow की आवश्यकता नहीं हैं तो आप ज्यादा रिटर्न के लिए ग्रोथ प्लान में निवेश कर सकते हैं. म्यूच्यूअल फंड के ग्रोथ प्लान अधिक लोकप्रिय हैं और अधिकतर निवेशकों द्वारा इसी विकल्प में निवेश किया जाता है.
म्यूचुअल फंड डिविडेंड ग्रोथ या डिविडेंड स्कीम से दूर क्यों रहना चाहिए
वर्षों पहले जब मैंने पहला म्यूचुअल फंड इन्वेस्टमेंट किया था, तो वो मैंने अपने पैसे बढ़ाने के लिए किया था। तब, म्यूचुअल फंड एजेंट, जो ख़ुद को “सलाहकार” बताता था और बैंक में RM था, उसने मुझे “डिविडेंड” प्लान के बदले “ग्रोथ” प्लान चुनने की सलाह दी- क्योंकि “ग्रोथ” प्लान लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर के ग्रोथ या डिविडेंड लिए अनुकूल था, जबकि “डिविडेंड” प्लान उन लोगों के लिए ज़्यादा अनुकूल था जो नियमित डिविडेंड इंकम चाहते थे।
मैं ऐसा मानता था कि, म्यूचुअल फ़ंड्स के डिविड़ेंड प्लान में लगाया गया पैसा, डिविड़ेंड देने वाली कंपनियो में इन्वेस्ट किया जाता होगा और उन कंपनियो से मिला डिविड़ेंड हमें दिया जाता होगा। और फिर मुझे आश्चर्य होता था कि ज़्यादातर म्यूचुअल फंड कंपनीयाँ कैसे डिविड़ेंड दे पाती हैं! ज्यादातर भारतीय कंपनियाँ वार्षिक डिविड़ेंड देती है, तो म्यूचुअल फंड कम्पनियाँ हर तीन महीने में डिविड़ेंड कहाँ से देती है?
म्यूचुअल फंड डिविडेंड की ज़रूरी बातें
- भारतीय इन्वेस्टर को दी जाने वाली प्रत्येक इक्विटी ओरियंटेड म्यूचुअल फंड योजना में या तो ग्रोथ-प्लान या तो डिवीडेंड-प्लान का विकल्प होता है
- डिविडेंड प्लान: इन्वेस्टर को निश्चित समय के बाद डिविड़ेंड मिलता है
- ग्रोथ प्लान: कोई डिविडेंड नहीं दिया जाता है
- फंड मैनेजर के पास डिविड़ेंड देना,न देना और कितना देना यह निर्णय लेने की अंतिम सत्ता होती है
- फंड मैनेजर यह भी तय करता है कि आपको डिविड़ेंड देने के लिए ज़रूरत पड़ने पर किन शेर को बेचना ग्रोथ या डिविडेंड है।
- इस अमाउंट को म्यूचुअल फंड के रिझर्व से भी लिया जा सकता है, खासकर उन वर्षों में जब म्यूचुअल फंड ने उतनी अच्छी कमाई नहीं की हो।
- म्यूचुअल फंड को डिविड़ेंड जारी करना ज़रूरी है, भले ही उसने नुकसान किया हो। क्योंकि ऐसा न करने पर कई इन्वेस्टर नाराज हो सकते है।
NAV पर डिविडेंड का प्रभाव
- डिविडेंड देने के विभिन्न विकल्प पहले से तय होते हैं और इन्वेस्टर उनमें से चुन सकते हैं
- क्वार्टरली(तीन महीने) और वार्षिक सबसे आम विकल्प हैं, हालांकि कई म्यूचुअल फंड में मासिक या अर्ध-वार्षिक(छह महीने) विकल्प भी उपलब्ध है
- डिविडेंड देने के अलग-अलग प्लान में अलग-अलग NAV होती हैं, अर्थात यदि किसी में 4 डिविडेंड प्लान हैं, तो उन 4 प्लान में हर एक की अपनी अलग NAV होगी
- इन्वेस्टर के खाते में जितना डिविडेंड जमा होता है, उतनी ही रक़म उस दिन उसकी NAV में से कम हो जाती है।
- उदाहरण के लिए,यदि स्कीम में NAV Rs100 है और डिविडेंड Rs5 / यूनिट है, तो जिस दिन डिविडेंड दिया जाएगा, उसी दिन NAV Rs95 हो जाएगी
- जब कम्पनी स्टॉक पर डिविडेंड देती हैं, तो मार्केट इसे एक मजबूत संकेत मानता ग्रोथ या डिविडेंड है कि कंपनी इतना अच्छा प्रोफ़िट कर रही है की जिससे कम्पनी खुद का विकास करने के बाद भी कुछ रक़म इन्वेस्टर को वापस भी दे रही है।
- इससे होता यह है की जब कंपनियां डिविडेंड देती है तो आमतौर पर इस पोज़िटिव सिग्नल के कारण स्टॉक की क़ीमत डिविडेंड की रक़म जितनी कम नहीं होती है। स्टॉक डिविडेंड के सिग्नलिंग इफ़ेक्ट के बारे में ज़्यादा जानने के लिए , यह ब्लॉगपोस्ट देखें।
- म्यूचुअल फंड ग्रोथ या डिविडेंड के ऊपर, सिग्नलिंग इफ़ेक्ट लागू ही नहीं होता है।
- डिविडेंड देने पर भी NAV नहीं बढ़ती है।
- असल में, चूंकि डिविडेंड नहीं देने से अक्सर इन्वेस्टर नाराज़ हो जाते हैं, इसलिए कई म्यूचुअल फंड को मार्केट से मजबूरन केपीटल निकालनी पड़ती है, जबकी नहीं निकालने से और फ़ायदा हो सकता था।
डबल टैक्सेशन
- म्यूचुअल फंड में डिवीडेंड पर पहले से ही टैक्स (DDT) लग जाता है, बाद में नहीं लगता है।
- यदि आप इन्वेस्टमेंट से निश्चित समय पर कुछ इंकम चाहते है, तो डिविडेंड प्लान के बजाय, ग्रोथ ग्रोथ या डिविडेंड ग्रोथ या डिविडेंड प्लान में इन्वेस्ट करके निश्चित समय पर पैसे निकालने की सिस्टम बना सकते हैं।
- डिविडेंड के रूप में मिली हुई पूरी रक़म पर टैक्स (DDT) देने के बजाय, इस मामले में इन्वेस्टर को केवल प्रोफ़िट पर ही टैक्स देना पड़ता है।
- म्यूचुअल फंड डिविडेंड पर टैक्स (DDT) लग जाएगा।
- यदि इन्वेस्टर ख़ुद उसी स्टॉक में उतना ही इन्वेस्ट करता है तो डिवीडेंड पर 10 लाख से पहले कोई टैक्स नहीं लगेगा।
- म्यूचुअल फंड डिविडेंड प्लान में आमतौर पर डिविडेंड से इंकम पाने पर ध्यान नहीं दिया जाता है। म्यूचुअल फंड ने पहले से लिखके दिया हो, तो ही उस पर ध्यान देते है।
- इसके बजाय, म्यूचुअल फंड का ध्यान इन्वेस्टर को निश्चित समय पर निश्चित रक़म देने में ही होता है, न कि इंकम पर।
- यदि इन्वेस्टमेंट का उद्देश्य निश्चित समय पर कुछ निश्चित पैसे निकालने का है तो यह डिविडेंड प्लान की तुलना में अधिक कर-कुशल तरीके से प्राप्त किया जा सकता है, जैसा कि ऊपर चर्चा की गई ग्रोथ या डिविडेंड है।
- दूसरी तरफ, यदि इंवेस्टमेंट से निश्चित इंकम पाने का उद्देश्य है तो फिर इन्वेस्टर को सीधे स्टॉक्स में इन्वेस्ट करना चाहिए।
- उसके लिए ऐसी कंपनियो को खोजना चाहिए ग्रोथ या डिविडेंड ग्रोथ या डिविडेंड जो पहले से ही डिविडेंड देती हो/बढ़ाती आई हो।
- यदि आपको यह मुश्किल लगता है या लगातार मार्केट रिसर्च करने और अपडेट रहने का समय नहीं है, तो हमने 4 ग्रोथ या डिविडेंड अलग-अलग स्मॉलकेस बनाए हैं जो आपके लिए यह काम करके देते है ।
डिविडेंड पेआउट विकल्प
इस विकल्प के तहत मुनाफा का हिस्सा निवेशकों को दिया जाता है। चेक या ईसीएस के जरिए यह पेमेंट होता है।
इस स्कीम के जरिए जो डिविडेंड का एलान होता है उससे म्यूचुअल फंड की और यूनिट खरीद ली जाती है। इसलिए निवेशक मुनाफा वसूली करके उसी स्कीम में निवेश करता है।
सोचने वाली बात
मुनाफे का हिस्सा मिलने से निवेशकों को फायदा होता है या फिर इसके पीछे कंपनियों की कोई चाल होती है।
एक समय राज ग्रोथ के विकल्प में पैसा लगाना चाहता था और कंपाउंडिंग का फायदा उठाना चाहता था। लेकिन, मोटे डिविडेंड के एलान का लालच भी पीछे नहीं छूटता।
कुछ मिथक
1. ज्यादा डिविडेंड मतलब अच्छा फंड
ज्यादातर मौकों पर म्यूचुअल फंड की तरफ से एलान किया गया डिविडेंड पोर्टफोलियो में खरीदे गए शेयरों के डिविडेंड से जुड़ा होता है। म्यूचुअल फंड में यह नेट एसेट वैल्यू से भी जुड़ा होता है। जब म्यूचुअल फंड का एनएवी 12 रुपए होता है और कंपनी 20 फीसदी डिविडेंड जारी करती है तो यह 2 रुपए बैठेगा और डिविडेंड के एलान के बाद एनएवी 10 रुपए रह जाएगा। बाजार में उठापटक होने पर यह और नीचे भी आ सकता है। इसलिए कंपनी डिविडेंड के तौर पर आपका पैसा ही आपको देती है।
2. डिविडेंड विकल्प में कम एनएवी खरीद का मौका देता है
आपने नोटिस किया होगा कि डिविडेंड के विकल्प में ग्रोथ के मुकाबले एनएवी कम ग्रोथ या डिविडेंड होता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब डिविडेंड दिया जाता है तो रिकॉर्ड डेट के बाद एनएवी घट जाता है। कई लोग इस कम एनएवी को खरीद का मौका मान लेते हैं। निवेशकों को लगता है कि इससे उन्हें आगे इसी तरह का डिविडेंड मिलेगा।