विदेशी विनिमय बाजार

विदेशी विनिमय बाजार - foreign exchange market
विदेशी विनिमय बाजार से आशय ऐसे बाजार से है जहाँ एक करेंसी दूसरी करेंसी से बदली जाती है या खरीदी बेचीं जाती है। विदेशी विनिमय बाजार को संक्षिप्त में FOREX के नाम से भी जाना जाता है। विदेशी विनिमय बाजार दो प्रकार के होते हैं
• अंतरराष्ट्रीय विदेशी करेंसी बाजार
घरेलु विदेशी करेंसी बाजार
घरेलु विदेशी करेंसी बाजार देश के निवासियों की विदेशी करेंसी की आवश्यकता की पूर्ति करता है जबकि अंतरराष्ट्रीय विदेशी करेंसी बाजार अनिवासियों की। ज्यादातर विदेशी करेंसी का लेन-देन यूरो एवं यू.एस. डॉलर में होता है।
पिछले 50 वर्षों में अंतरराष्ट्रीय लेन-देन की मात्र बहुत ज्यादा बढ़ गई है। विदेशी विनिमय करेंसी को खरीदने और बेचने की क्षमता के बिना अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश संभव नहीं हो पता है। करेंसियों का व्यापार विदेशी विनिमय बाजार में संपन्न होता है, जिसका प्राथमिक कार्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार और निवेश विदेशी विनिमय बाजार को सुविधा प्रदान करना है, इसलिए बाजार के संचालन और मैकेनिज्म की जानकारी अंतरराष्ट्रीय प्रबंध की किसी भी बुनियादी समझ के लिए महत्वपूर्ण है।
विदेशी करेंसी बाजार वह बाजार है जिसमें विभिन्न देशों की करेंसियों को एक-दुसरे से खरीदा और बेचा जाता है यह वह बाजार है जहाँ विदेशी विनिमय बाजार एक देश की करेस्नी को दूसरे देश की करेंसी से बदला जाता है। उदाहरण के लिए, एक भारतीय कंपनी अमेरिका को कपडा निर्यात करती विदेशी विनिमय बाजार है और भुगतान अमेरिकी डॉलर में पति है। निर्यातक इस डॉलर को अंतरराष्ट्रीय विनिमय बाजार में रुपए में बदलता है, यह विदेशी विनिमय है।
भारत में विनिमय दर प्रबंधन: इतिहास और प्रकार
विदेशी मुद्रा बाजार वह बाजार है जिसमे विदेशी मुद्राओं को खरीदा व बेचा जाता है। सन 1971 तक IMF के एक सदस्य होने के नाते भारत में ‘निशिचित विनिमय दर प्रणाली' का पालन होता था । ब्रेटन वुड्स प्रणाली के 1971 में विदेशी विनिमय बाजार ध्वस्त होने के बाद रुपए का मूल्य चार साल तक पौंड के द्वारा निर्धारित होता रहा परन्तु बाद में यह व्यवस्था भी ख़त्म हो गयी I वर्तमान में भारत में प्रबंधित विनिमय दर प्रणाली चलन में है।
वर्तमान में भारत, बाजार और अन्तराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार विनिमय दर का निर्धारण करता है। मुद्रा की मांग व आपूर्ति बाजार आधारित विनिमय दर का निर्धारण करती है। विनिमय दर एक मुद्रा के संबंध में दूसरी मुद्रा का मूल्य है। विदेशी मुद्रा को खरीदने वाले व बेचने वाले लोगों में शेयर दलाल, छात्र, वाणिज्यिक बैंक, केंद्रीय बैंक, गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां, विदेशी मुद्रा दलाल आदि होते हैं। विदेशी मुद्रा विनिमय के प्रमुख कार्यों में निम्न कार्य शामिल हैं:
- मुद्रा को एक बाजार से दूसरे बाजार में पहुचाना, जहाँ इसकी जरुरत है
- आयातकों के लिए अल्पकालिक ऋण उपलब्ध कराकर देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध प्रवाह की सुविधा।
- स्पॉट और वायदा बाजार के माध्यम से विदेशी विनिमय दर को स्थिर करना।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:-
आजादी के बाद से भारत में एक निश्चित विनिमय दर व्यवस्था लागू थी जिसे बाद में पाउंड स्टर्लिंग से लिंक किया गया। साल 1993 से भारत में बाजार आधारित विनिमय दर व्यवस्था चलने लगी।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन के विकास के नीचे चर्चा की है:
बराबर मूल्य प्रणाली (Par Value System- 1947-1971): स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत ने आईएमएफ की ‘बराबर मूल्य प्रणाली’ का अनुसरण किया। जिसमें रुपये का बाहरी मूल्य, सोने के 4.15 ग्रेन पर तय किया गया।
निश्चित विनिमय व्यवस्था (Pegged Regime-1971-1992):
भारत ने अपनी मुद्रा को अगस्त 1971 से दिसंबर 1991 के बीच अमेरिकी डॉलर के साथ विनिमित किया और दिसंबर 1971 से सितंबर 1975 तक ब्रिटेन के पाउंड स्टर्लिंग के साथ विनिमित किया I
उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली: (Liberalised Exchange Rate Management System):-
आर्थिक सुधार की प्रक्रिया के तहत 1992-93 के बजट में वित्त मंत्री ने व्यापार खाते पर रुपए की आंशिक परिवर्तनीयता घोषित की और मार्च 1912 से भारतीय रुपया आंशिक रूप से परिवर्तनीय हो गया I इसी दिन से उदारीकृत विनिमय दर प्रबंधन प्रणाली लागू की गयी I
इस प्रणाली के अंतर्गत एक दोहरी विनिमय दर तय की गई थी, जिसके तहत विदेशी मुद्रा की विनिमय दर का 40 प्रतिशत आधिकारिक व शेष 60 फीसदी बाजार द्वारा निर्धारित दर से परिवर्तित किया गया।
भारत में विदेशी मुद्रा बाजार के प्रकार:
- स्पॉट बाजार: यह बाजार वह बाजार है जो विदेशी मुद्रा के खरीदने व बेचने के तय सौदे के दो दिनों के भीतर किया जाता है। विदेशी मुद्रा की स्पॉट खरीद व विक्रय स्पॉट बाजार का निर्माण करते हैं। जिस दर पर विदेशी मुद्रा खरीदी और बेची जाती है स्पाट विनिमय दर कहा जाता है। सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए,स्पाट दर को मौजूदा विनिमय दर कहा जाता है।
- वायदा बाजार: यह वह बाजार है जिसमे पहले से तय विनिमय दर को भविष्य की तिथि में विदेशी मुद्रा की खरीद व विक्रय किया जाता है। जब विदेशी मुद्रा के क्रेता और विक्रेता दोनों किसी सौदे में संबंधित होते हैं, तब इस सौदे के 90 दिनों के भीतर यह लेनदेन किया जाता है। यह वायदा बाजार कहलाता है।
विनिमय दर प्रबंधन के प्रकार
नियत विनिमय दर (Fixed Exchange Rate):-
घरेलू और विदेशी मुद्राओं के बीच विनिमय दर एक देश की मौद्रिक प्राधिकरण द्वारा तय किया जाता है। इसके तहत विनिमय दर में एक सीमा से अधिक उतार चढ़ाव की अनुमति नहीं होती है, इसे स्थिर विनिमय दर कहा जाता है। आईएमएफ प्रणाली के तहत इसके सदस्य राष्ट्र के मौद्रिक प्राधिकरण अपनी मुद्रा का निश्चित मूल्य तय करता है जो एक आरक्षित मुद्रा सामान्यतः अमेरिकी डॉलर के सापेक्ष होता है। इसे 'आंकी' विनिमय दर या पार वैल्यू कहा जाता है। हालांकि,सामान्य परिस्थितियों में इसमें उच्च्वाचन की ऊपरी और निचली सीमा 1 प्रतिशत तक होती है।
नियत विनिमय दर प्रणाली अपनाने का मूल उद्देश्य विदेशी व्यापार और पूंजी आंदोलनों में स्थिरता सुनिश्चित करना है। नियत विनिमय दर प्रणाली के तहत सरकार विदेशी विनिमय बाजार पर विनिमय दर की स्थिरता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हो जाती है। इसे खत्म करने के लिए सरकार विदेशी मुद्रा को खरीदती व बेचती है।विदेशी मुद्रा जब कमजोर होती है तब तब सरकार इसे खरीद लेती है। और जब यह मजबूत होती है तब सरकार इसे बेच देती है। निजी तौर पर विदेशी मुद्रा की बिक्री व खरीद निलंबित रखी जाती है। आधिकारिक विनिमय दर में कोई परिवर्तन देश की मौद्रिक प्राधिकरण व आईएमएफ के परामर्श के किया जाता है। हालांकि अधिकांश देशों ने दोहरी प्रणाली अपना ली है। सभी सरकारी लेनदेन के लिए एक स्थिर विनिमय दर और निजी लेनदेन के लिए एक बाजार दर तय होती है।
नियत विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
- सबसे पहले, यह अनिश्चितता की वजह से जोखिम को समाप्त करता है। बाजार में यह स्थिरता, निश्चितता प्रदान करता है ।
- दूसरा, यह, राष्ट्रों के बीच विदेशी पूंजी के निर्बाध प्रवाह के लिए एक प्रणाली बनाता है, साथ ही निवेश के रूप में यह निश्चित वापसी का आश्वासन देता है। विदेशी विनिमय बाजार
- तीसरा, यह विदेशी मुद्रा बाजार में सट्टा लेन-देन की संभावना को हटाता है।
- अंत में, यह प्रतिस्पर्धी विनिमय मूल्यह्रास या मुद्राओं के अवमूल्यन की संभावना को कम कर देता है।
B- लचीली विनिमय दर (Flexible Exchange Rate):-
जब विनिमय दर का निर्धारण, बाजार शक्तियों (मुद्रा की मांग व आपूर्ति) द्वारा तय किया जाता है, इसे लचीली विनिमय दर कहा जाता है।
लचीली विनिमय दर के पक्षधर भी इसके पक्ष में समान रूप से मजबूत तर्क देते है। इस संबंध में तर्क दिया जाता है कि लचीली विनिमय दर अस्थिरता, अनिश्चितता, जोखिम और सट्टा का कारण बनती है। परन्तु इसके पक्षधर इस सभी आरोपों को खारिज करते हैं I
लचीली विनिमय दर के पक्ष में तर्क:
- सबसे पहले, लचीली विनिमय दर के रूप में एक स्वायत्ता मिलती है घरेलू नीतियों के संबंध में यह अच्छा सौदा है। इसका घरेलू आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत महत्व है।
- लचीली विनिमय दर खुद समायोजित होती है और इसलिए सरकार पर इतना दबाव नहीं होता कि विनिमय दर को स्थिर करने के लिए पर्याप्त मात्रा में विदेशी मुद्रा भंडार बनाए रखा जाए।
- लचीली विनिमय दर एक सिद्धांत पर आधारित है, इसके तहत भविष्य में अनुमान का लाभ मिलता है। इसकी सबसे बड़ी खूबी स्वत: समायोजन की योग्यता है I
- लचीली विनिमय दर विदेशी मुद्रा बाजार में मुद्रा की वास्तविक क्रय शक्ति का एक संकेतक के रूप में कार्य करता है।
अंत में, कुछ अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि लचीली विनिमय दर का सबसे बड़ा दोष अनिश्चितता है। परन्तु उनका तर्कयह भी है कि लचीली विनिमय दर प्रणाली के तहत अनिश्चितता की संभावना है उतनी ही जितनी स्थिर विनिमय दर के तहत।
GYANGLOW
विदेशी विनिमय बाजार एक देश की मुद्रा को दूसरे देश के मुद्रा के साथ विनिमय की एक संस्था है। विदेशी विनिमय बाजार कई अलग-अलग बाजारों से बने होते हैं क्योंकि अलग-अलग मुद्राओं के बीच व्यापार होता है।
विदेशी मुद्रा बाजार का मुख्य महत्व किसी विदेशी विनिमय बाजार व्यवसाय का सर्वोत्तम बाजार मूल्य प्राप्त करना है। विदेशी मुद्रा बाजार एक प्रकार का वित्तीय संस्थान है जो निम्नलिखित कार्य करता है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राओं का परिसमापन : कुछ मुद्रा के लिए विनिमय दर निर्धारित करता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और भंडार के लिए, नीलामी सेट करता है।
भारत में शेयर बाजार की निगरानी के उद्देश्य से, आमतौर पर, कॉर्पोरेट दलालों को किराए पर लेते हैं। जहां वित्तीय दलाल कंपनियों को उनके निवेश की बाजार स्थिति बनाए रखने में सहायता करते हैं।
विदेशी मुद्रा विदेशी निवेश का मूल्य निर्धारित करती है । विदेशी मुद्रा बाजार मुख्य रूप से विभिन्न मुद्राओं की खरीद और बिक्री से संबंधित है। इस बाजार के तहत एक देश की मुद्रा का दूसरे देश की मुद्रा के साथ आदान-प्रदान किया जाता है। जोखिम (हेजिंग), आर्बिट्रेज और सट्टा लाभ के प्रबंधन की दृष्टि से बाजार में विदेशी मुद्रा भी की जाती है। इस प्रकार का बाजार सापेक्ष स्थिरता के साथ अंतरराष्ट्रीय तरलता प्रदान करता है।
विदेशी मुद्रा बाजार विदेशी बचत के मूल्य को निर्धारित करने में मदद करता है। यह एक ऐसा बाज़ार है जहाँ विदेशी मुद्रा खरीदी और बेची जाती है और हम यह भी कह सकते हैं कि यह एक प्रकार की संस्थागत व्यवस्था है जहाँ विदेशी मुद्राएँ खरीदी और बेची जाती हैं। इसके तहत आयातक विदेशी मुद्रा खरीदते हैं जिसे निर्यातकों द्वारा बेचा जाता है।
वित्तीय केंद्रों में, इस प्रकार का बाजार केवल मुद्रा बाजार का एक हिस्सा होता है जहां विदेशी धन खरीदा और बेचा जाता है। विदेशी मुद्रा बाजार किसी भौगोलिक क्षेत्र तक सीमित नहीं है। यह विदेशी मुद्रा का बाजार है।
विदेशी मुद्रा बाजारों में, बैंकों जैसे डीलरों की एक विस्तृत विविधता है। विदेशी मुद्रा का व्यापार करने वाले बैंकों की विभिन्न देशों में शाखाएँ होती हैं। इन्हें "एक्सचेंज बैंक" भी कहा जाता है, जहां से दुनिया भर में सेवाएं उपलब्ध हैं।
विनिमय के विदेशी बिलों पर छूट और बिक्री करना। बैंक ड्राफ्ट जारी करना। टेलीग्राफिक ट्रांसफर और क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट्स का विदेशी विनिमय बाजार प्रभाव। ऐसे दस्तावेजों के आधार पर राशि की वसूली।
विदेशी मुद्रा में, विदेशी बिल में बिल दलाल होते हैं जो खरीदारों और विक्रेताओं की सहायता करते हैं। बिचौलिये होने के कारण बैंक प्रत्यक्ष डीलर नहीं होते हैं।
विदेशी मुद्रा में, स्वीकृति गृह डीलर होते हैं जो ग्राहकों की ओर से बिल स्वीकार करके विदेशी प्रेषण में मदद करते हैं। विदेशी मुद्रा में, केंद्रीय बैंक और देश का खजाना भी डीलर होते हैं जो बाजार में हस्तक्षेप कर सकते हैं। विनिमय दरों का प्रबंधन इन अधिकारियों द्वारा किया जाता है। इन प्राधिकरणों द्वारा विभिन्न तरीकों से विनिमय नियंत्रण लागू किए जाते हैं। भारत में ऐसा कोई एक्सचेंज मार्केट नहीं है। भारत में सख्त विनिमय नियंत्रण प्रणाली मौजूद है।
यह कार्य वित्त और क्रय शक्ति को एक देश से दूसरे देश में स्थानांतरित करना है। विदेशी बिलों के माध्यम से प्रेषण जो टेलीग्राफिक हस्तांतरण के माध्यम से किए गए थे, इस प्रकार के हस्तांतरण प्रभावित होते हैं।
दो देशों के बीच क्रय शक्ति के हस्तांतरण को पूरा करने के उद्देश्य से, एक मुद्रा को दूसरी मुद्रा में बदलने की सुविधा प्रदान करना।
विभिन्न क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट्स के माध्यम से ट्रांसफर क्रय शक्ति प्रभावित होती है जैसे टेलीग्राफिक ट्रांसफर, बैंक ड्राफ्ट और विदेशी बिल।
विदेशी विनिमय बाजार
Please Enter a Question First
विनियम वर क्या है? इसका निर्धा .
Solution : विनियम दर-यह वह दर है जिस पर एक देश की एक मुदा इकाई का दुसरे देश की मुद्रा में विनिमय किया जाता है। दूसरे शब्दों में, विदेशी विनिमय दर यह बताती है कि किसी देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले दूसरे देश की मुद्रा को कितनी इकाइयाँ मिल सकती हैं।
क्राउथर के अनुसार, "विनिमय दर एक देश की इकाई मुद्रा के बदले में दूसरे देश की मुद्रा को मिलने वाली इकाइयों की माप है।" अब प्रश्न उठता है कि विनिमय दर का निर्धारण कैसे होता है? विनिमय दर के निर्धारण के लिए अर्थशास्त्रियों ने कई सिद्धान्त दिए हैं।
जिस प्रकार से वस्तु की कीमत बाजार में मांग एवं पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है, उसी प्रकार विनिमय दर भी विदेशी विनिमय बाजार में मांग एवं पूर्ति के द्वारा ही निर्धारित होती है। दूसरे शब्दों में, एक विदेशी विनिमय बाजार में विदेशी विनिमय को संतुलन दर विदेशी विनिमय की माँग और पूर्ति के बीच समानता द्वारा निर्धारित होती है।
(i) विदेशी विनिमय की मांग, (ii) विदेशी विनिमय की पूर्ति। -
आरबीआई ने जोखिम बचाव के उपाय बगैर विदेशी मुद्रा लेनदेन पर जारी किए निर्देश
मुंबई, 11 अक्टूबर (भाषा) भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने मंगलवार को किसी भी इकाई विदेशी विनिमय बाजार के पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए बगैर विदेशी मुद्रा में लेन-देन को लेकर बैंकों के लिये संशोधित दिशानिर्देश जारी किया। इस पहल का मकसद विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में अत्यधिक उतार-चढ़ाव से होने वाले नुकसान को कम करना है। आरबीआई इकाइयों के जोखिम से बचाव के उपाए किए बिना उस विदेशी मुद्रा में लेन-देन (यूएफसीई) के मामले में बैंकों के लिये समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता रहा है, जो बैंकों से कर्ज के रूप में लिये गये हैं।
आरबीआई इकाइयों के जोखिम से बचाव के उपाए किए बिना उस विदेशी मुद्रा में लेन-देन (यूएफसीई) के मामले में बैंकों के लिये समय-समय पर दिशानिर्देश जारी करता रहा है, जो बैंकों से कर्ज के रूप में लिये गये हैं।
केंद्रीय बैंक के परिपत्र के विदेशी विनिमय बाजार अनुसार ये निर्देश एक जनवरी, 2023 से प्रभाव में आएंगे।
आरबीआई ने कहा कि किसी भी इकाई का जोखिम से बचाव के कदम उठाये बिना विदेशी मुद्रा में लेन-देन चिंता का विषय रहा है। यह न केवल व्यक्तिगत इकाई के लिये बल्कि पूरी वित्तीय व्यवस्था के लिये चिंता की बात होती है।
जिन इकाइयों ने विदेशी मुद्रा में लेन-देन के लिये जोखिम से बचाव के उपाए नहीं किये हैं, उन्हें विदेशी विनिमय दरों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव के दौरान काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इस नुकसान से संबंधित इकाई का बैंकों से लिये गये कर्ज चुकाने की क्षमता प्रभावित विदेशी विनिमय बाजार होगी और चूक की आशंका बढ़ेगी। इससे पूरी वित्तीय प्रणाली की सेहत पर असर पड़ेगा।
Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म. पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप