वित्तीय योजना

वितरण योजना
डीडीयूजीजेवाई के वित्त पोषण का तंत्र इस प्रकार होगा :
इस योजना के अधीन वित्तीय सहायता इस प्रकार दी जाएगीः
सहायता का
प्रकार
विशेष श्रेणी के राज्यों
से भिन्न राज्य
विशेष श्रेणी के
राज्य
निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने पर भारत
सरकार से अतिरिक्त अनुदान
कुल ऋण घटक का 50%
कुल ऋण घटक का 50%
भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला
अधिकतम अनुदान (जिसमें निर्धारित
लक्ष्य प्राप्त करने पर दिया जाने वाला
अतिरिक्त अनुदान भी वित्तीय योजना शामिल है )
यूटिलिटी (यूटिलिटियों) द्वारा किया जाने वाला अधिकतम अंशदान 10% (विशेष श्रेणी के राज्यों के मामलेमें 5%) होगा। लेकिन यूटिलिटी (यूटिलिटियों) का अंशदान
40% (विशेष श्रेणी के राज्यों के मामले में15%) तक हो सकता है, बशर्ते कि वे ऋण का लाभ नहीं उठाना चाहते हों। ऐसी यूटिलिटी (यूटिलिटियों) के मामले में, जो ऋण का
लाभ नहीं उठाते हैं, निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने पर अधिकतम पात्र अतिरिक्त अनुदान अभी भी 15% (विशेष श्रेणी के राज्यों के मामले में 5%) होगा। ऋण घटक आरईसी द्वारा या
तेलंगाना सरकार दलित बंधु योजना के तहत प्रदान करती है वित्तीय सहायता
महबूबनगर : तेलंगाना सरकार दलित परिवारों को 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देकर 'दलित बंधु योजना' के तहत दलित समुदाय को आर्थिक सहायता प्रदान कर रही है.
व्यवसाय से संबंधित किसी भी गतिविधि को शुरू करने के लिए राशि लाभार्थी के खाते में स्थानांतरित कर दी जाएगी। दलित समुदाय के लोगों के लिए तेलंगाना सरकार की इस अद्भुत पहल के लिए लोग आभारी हैं।
लाभार्थी और गडवाल के निवासी वीरन्ना ने कहा, "हमें केसीआर सरकार से दलित बंधु ऋण के रूप में 10 लाख रुपये मिले हैं, जिसके द्वारा हमने यहां गडवाल में अपनी खुद की जूते की दुकान शुरू की है। जो पैसा हमें तेलंगाना सरकार से मिला है फुटवियर की दुकान शुरू करने के लिए पर्याप्त है। मेरा सपना सच हो गया है। मैं खुशी-खुशी एक नया स्टोर खोल रहा हूं।"
गडवाल की लाभार्थी और निवासी सुनीता ने कहा, "मैं अनुसूचित जाति से दलित समुदाय से संबंधित हूं। मुझे केसीआर सरकार से ऋण स्वीकृत हुआ। दलित बंधु पहल योजना में हमें शामिल करने के लिए मैं आभारी हूं। यह एक बहुत अच्छी पहल है। कई लोग इस योजना से लाभान्वित हो रहे हैं। मुझे 10 लाख रुपये मिले। अब मेरी एक दुकान है और मैं बहुत खुश हूं।" (एएनआई)
Aligarh News: वित्तीय योजना दिव्यांग की शादी के लिए यूपी सरकार दे रही आर्थिक मदद, जानें कैसे करें आवेदन
अगर पति दिव्यांग है, पत्नी दिव्यांग है या पति-पत्नी दोनों दिव्यांग हैं, तो योगी सरकार दिव्यांग के विवाह पर वित्तीय सहायता स्वरूप 15 से 35 हजार रुपये देगी. इस समय योजना के लिए आवेदन प्रक्रिया चल रही है.
Aligarh News: अगर पति दिव्यांग है, पत्नी दिव्यांग है या पति-पत्नी दोनों दिव्यांग हैं, तो राज्य सरकार दिव्यांग के विवाह पर वित्तीय सहायता स्वरूप 15 से 35 हजार रुपये देगी. इस समय योजना के लिए आवेदन प्रक्रिया चल रही है.
दिव्यांग शादी अनुदान योजना में आवेदन शुरू
दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के अलीगढ़ उपनिदेशक पारिशा मिश्रा ने बताया कि यूपी में दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग दिव्यांग शादी अनुदान योजना चलाता है, जिसमें राज्य सरकार अलग-अलग विकलांग व्यक्तियों के विवाह पर वित्तीय सहायता स्वरूप 15 से 35 हजार रुपये तक देती है.
अगर पति दिव्यांग है, तो 15000 रुपये मिलेंगे.
अगर पत्नी दिव्यांग है, तो 20000 रुपये मिलेंगे.
अगर पति पत्नी दोनों दिव्यांग हैं, तो 35000 रुपये मिलेंगे.
दिव्यांग शादी अनुदान योजना में लाभ प्राप्ति के लिए पात्रता
दिव्यांग शादी अनुदान योजना में लाभ प्राप्ति के लिए दंपत्ति में पति, पत्नी या दोनों दिव्यांग होने जरूरी हैं.
कम से कम 40 प्रतिशत दिव्यांग होना जरूरी है, जिसका प्रमाण पत्र स्वास्थ्य विभाग देता है.
पत्नी की उम्र 18 से 45 साल और पति की उम्र 21 से 45 साल होनी चाहिए.
पति और पत्नी में से कोई भी इनकम टैक्स नहीं देता हो.
ऐसे करें आवेदन
दिव्यांग शादी अनुदान योजना में रजिस्ट्रेशन जनसुविधा वित्तीय योजना केंद्र पर किया जा सकता है. दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग की वेबसाइट http://divyangjan.upsdc.gov.in/ वित्तीय योजना पर जाकर रजिस्ट्रेशन किया जाता है. रजिस्ट्रेशन फॉर्म भरे जाने के बाद जरूरी डॉक्यूमेंट अपलोड किए जाते हैं, इसमें विकलांगता प्रमाण पत्र व विवाह प्रमाण पत्र अपलोड होता है. आवेदन होने के बाद उसकी हार्ड कॉपी प्रिंट की जाती है. जिसे दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग में जमा किया जाता है.
ये चाहिए डॉक्यूमेंट
योजना में आवेदन करने के लिए पति-पत्नी का आधार कार्ड, विकलांगता प्रमाण पत्र, विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र या विवाह कार्ड, निवास प्रमाणपत्र, किसी बैंक में संयुक्त खाता, फोटो, मोबाइल नंबर होना जरूरी है.
रिपोर्टः चमन शर्मा
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पुरानी पेंशन होगी बहाल तो अर्थव्यवस्था होगी खस्ताहाल
अल्पकालिक राजनीति और चुनावी लाभ को देखते हुए राजस्थान, छत्तीसगढ़, झारखंड और पंजाब जैसे राज्यों ने राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (NPS) को खत्म करके पुरानी पेंशन योजना (OPS) लागू कर दिया है। इन राज्यों के अलावा अब तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य भी पुरानी पेंशन योजना (OPS) लागू करने पर विचार कर रहे हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने चुनावी राज्य गुजरात और हिमाचल प्रदेश में भी सत्ता में वापसी पर OPS लाने का वादा किया है। दीर्घकालिक प्रभावों और राजकोषीय विवेक को ध्यान में न रखते हुए मतदाताओं के एक छोटे से वर्ग को लाभ पहुंचाने के लिए राजनीतिक पार्टियों के द्वारा ऐसे कदम उठाए जाते हैं। राज्यों को बार-बार ऐसी राजनीतिक भावनाओं से प्रेरित कदमों को उठाने के लिए आगाह किया जाता है। वित्तीय योजना कल्याणकारी राज्य में इन कदमों के विनाशकारी परिणाम होते हैं, क्योंकि उन्हें योजनाओं के लिए धन देने और विकास के लिए कदम उठाने की आवश्यकता होती है।
ऐसे में सवाल उठता है कि देश के राज्य माइक्रोइकोनॉमिक्स और अर्थव्यवस्था में सरकार की भूमिका को समझने में कहां तक सक्षम हैं? पेंशन सुधार उस अभूतपूर्व वित्तीय संकट का उप-उत्पाद था, जिसका भारत ने 1980 के दशक के अंत और 1990 के शुरुआती वर्षों में सामना किया था। इस सुधार को देश के दोनों मुख्य राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस का समर्थन प्राप्त था। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी वाली एनडीए सरकार ने 2004 में OPS को बंद कर दिया था, जिसे कांग्रेस ने 2004 में सत्ता में आने के बाद समर्थन दिया था। लेकिन अब ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अन्य राजनीतिक दलों के द्वारा महज सत्ता हासिल करने के लिए राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली की जगह पर पुरानी पेंशन योजना (OPS) को लागू किया जा रहा है।
राजनीतिक दलों के द्वारा पेंशन को अपने चुनाव अभियान का मुख्य मुद्दा बनाकर इससे फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है। सवाल उठता है कि व्यापक आर्थिक विवेक और सार्वजनिक वित्त प्रबंधन के मामले में भारतीय राज्य कैसा प्रदर्शन करते हैं? RBI की हालिया रिपोर्ट बताती है कि राज्य कर्ज के पहाड़ तले नीचे दबे हैं। कई राज्य राजकोषीय घाटे से बुरी तरह से प्रभावित हैं। Loan-to-GDP (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) अनुपात यह दर्शाता है कि कोई राज्य भविष्य में ऋण लिए बिना अपने व्यय के वित्तपोषण के मामले में कितना स्वस्थ है। RBI ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि सितंबर 2021 को वित्तीय योजना समाप्त हुए पिछले 10 वर्षों में 18 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए ऋण-जीएसडीपी अनुपात 22.6% से बढ़कर 31.2% हो गया है। ये उच्च अनुपात वाले राज्यों के वित्तीय स्वास्थ्य के खिलाफ है। अनुशंसित ऋण-जीएसडीपी अनुपात केवल 20% है, जिसे उन्हें 2022-23 तक प्राप्त करने की सलाह दी गई है। लेकिन राज्यों का जो नजरिया है, उससे यह लक्ष्य हासिल होता नहीं नजर आ रहा है। मार्च 2022 तक राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद का बाजार उधार 63.6% तक पहुंच गया है। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में उच्चतम ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात वाले राज्यों में 53.3% के साथ पंजाब, 39.8% के साथ राजस्थान, 38.8% के साथ पश्चिम बंगाल शामिल पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं। यह आंकड़ा केरल में 38.3% और आंध्र प्रदेश में 32.4% के बराबर है।
राज्यों ने अपने वित्तीय स्वास्थ्य को कैसे बदहाल बना दिया है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आप ने पंजाब में लोगों से वादा किया था- हर घर में हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली दी जाएगी। इसके अलावा राज्य की हर महिला को 1,000 रुपये महीना दिया जाएगा। इससे अनुमान के मुताबिक सरकारी खजाने पर सालाना 20,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च बढ़ेगा। इस तरह के फैसले तब लिए जा रहे हैं, जब पंजाब का बकाया कर्ज पहले ही बढ़कर 2.82 लाख करोड़ रुपये हो गया है। आंध्र प्रदेश का भी यही हाल है, जिसका बकाया कर्ज वित्त वर्ष 2021-22 में 3.89 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच गया था।
पंजाब पर पिछले 16 वर्षों में 7 गुना से अधिक पेंशन का बोझ बढ़ा है जिसका भुगतान करने में राज्य के 30% फिसदी कर खत्म हो जाता है। इसी तरह राजस्थान का पेंशन बिल लगभग 16 गुना बढ़ गया है, जिससे राजस्व का 28% खर्च होता है। वहीं छत्तीसगढ़ में यह 12 गुना से अधिक बढ़ा है, जिससे राज्य को अपने राजस्व का 25.66% खर्च करना पड़ता है। नि:संदेह पुरानी पेंशन व्यवस्था की ओर लौटना न केवल अर्थव्यवस्था की हालत को खराब करेगा, बल्कि यह खराब राजनीति का उदाहरण भी सेट करेगा। इस तरह के फैसलों से जरूरतमंदों के लिए कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखने और युवाओं के लिए रोजगार पैदा करने की राज्यों की क्षमता बुरी तरह से प्रभावित होगी। सबसे बुरा प्रभाव तो यह पड़ेगा कि इन बिलों के वित्त पोषण का बोझ आने वाली पीढ़ियों पर पड़ेगा। इसलिए राजनीतिक दलों को एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है और इस तरह के आर्थिक रूप से अत्यधिक अतार्किक कदमों को उठाने से बचना चाहिए।