भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी

सिक्कों की खनक फीकी: 11 में से 10 व्यापारियों ने नहीं ली चिल्लर, बैंक ने भी लौटाई, लोगों के पौने दो करोड़ जाम
शहर में एक और दो रुपए के सिक्के व्यापारियों द्वारा नहीं लिए जा रहे हैं। बार-बार इसकी शिकायत आने के बाद भास्कर टीम 500 रुपए की चिल्लर लेकर शहर की 11 दुकानों पर सामान लेने पहुंची। इनमें से 10 व्यापारियों ने चिल्लर के बदले सामान देने से इनकार कर दिया। यहां तक कि बैंक भी इन सिक्कों को व्यापारियों और लोगों के खातों में जमा नहीं कर रहे हैं।
व्यापारियों के मुताबिक शहर के बाजारों में 4 करोड़ रुपए की चिल्लर है, जो जबरन चलन से बाहर की जा रही है। इससे ये पैसा जाम हो गया है। भारतीय मुद्रा का इस हद तक अपमान के बावजूद जिम्मेदार अफसर मौन हैं। एक और दो रुपए के सिक्कों का बाजार में लेन-देन बंद करने के लिए व्यापारी और दुकानदार, ग्राहक और बैंकों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
उनका कहना है कि ग्राहक उनसे एक और दो रुपए के सिक्के नहीं ले रहे हैं। बैंक तो इससे भी आगे हैं। वह बहानेबाजी कर एक-दो रुपए तो दूर पांच भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी और दस रुपए के सिक्के भी जमा नहीं कर रहे हैं। बैंकों ने अपनी सुविधा और व्यापारियों ने मुनाफा बढ़ाने के लिए खुद ही एक और दो रुपए के सिक्कों का बाजार में चलन बंद किया है।
चिल्लर न लेने की आड़ में चल रहे
1 व्यापारी खुल्ले न होने का बहाना बनाकर चॉकलेट दे रहे हैं।
2 100 की चिल्लर लेकर 90 भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी दे रहे हैं। सेटिंग से में चिल्लर जमा कर रहे हैं।
3 सब्जी व्यापारियों ने खुल्ले पैसे का बहाना बनाकर सब्जी के दाम बढ़ा दिए हैं।
सिक्के नहीं चलेंगे, अब कोई नहीं लेता
व्यापारी कैलाश श्यामनानी से 250 ग्राम नमकीन मांगा। कीमत 45 रुपए के एवज में 50 रुपए के सिक्के दिए तो दुकानदार के तेवर बदल गए। बोले- 1 और 2 रुपए के सिक्के नहीं चलेंगे।
सिक्के नहीं लेंगे, पेट्रोल ऐसे ही ले जाइए
50 का पेट्रोल मांगा। पेट्रोल लेने के बाद सेल्समैन संतोष दुबे को 50 रुपए के 1-2 रुपए के सिक्के दिए, भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी जिसे लेने से मना कर दिया। बोला- पेट्रोल ऐसे ही ले जाइए सिक्के नहीं लूंगा।
अब देखिए असली खेल. सेंट्रल बैंक के मैनेजर बोले- आप आज दिल्ली जाएं, आरबीआई गवर्नर ही जवाब देंगे कि सिक्के क्यों नहीं ले रहे?
नकद जमा और निकासी काउंटर पर पैसे जमा करने की बारी आते ही सिक्कों के पैकेट देख कैशियर ओमकारदास सोनवानी बाेले- यह जमा नहीं करेंगे। बैंक में एक करोड़ की चिल्लर रखी है। आप प्रबंधक से बात कर लें। प्रबंधक तेजस मिश्रा बोले- चिल्लर कहां से ले आए? एक-एक, दो-दो करके बाजार में चला दो। व्यापार कर रहे हैं तो बिजनेस अकाउंट में जमा कराइए। बचत खाते में सिक्के जमा नहीं करेंगे। कारण पूछने पर बोले- आप दिल्ली का टिकट कटा लीजिए। वहां आरबीआई के गवर्नर बैठते हैं। वही आपको जवाब दे पाएंगे।
आरबीआई के निर्देश- सिक्के लेने से इनकार नहीं कर सकते बैंक
नोट तथा सिक्कों के विनिमय (बदलने) की सुविधा के लिए 3 जुलाई 2017 को आरबीआई के मुख्य महाप्रबंधक मानस रंजन मोहंती ने मास्टर परिपत्र डीसीएम (नोट विनिमय) जारी किया है। इसमें स्पष्ट है कि सिक्के स्वीकार करना होगा। पॉलीथिन की प्रत्येक थैली में 100 सिक्के पैक कर स्वीकार करना खजांची के साथ-साथ ग्राहक के लिए सुविधाजनक होगा। इस प्रकार की पॉलीथिन थैलियां काउंटर पर रखी जाएं तथा ग्राहकों के लिए भी उपलब्ध करवाई जाएं।
बैंक, व्यापारी चिल्लर न ले तो यहां करें शिकायत
1 जिला प्रशासन: नए कलेक्टोरेट भवन स्थित शिकायत शाखा में आवेदन दें।
2 लीड बैंक मैनेजर: अग्रणी बैंक महाप्रबंधक सेंट्रल बैंक साईं मंदिर के सामने सिविल लाइन में लिखित शिकायत करें।
3 पुलिस विभाग: संबंधित पुलिस थाने में व्यापारी या बैंक के खिलाफ लिखित शिकायत कर सकते हैं।
4 उपभोक्ता न्यायालय: संबंधित बैंक या व्यापारी के खिलाफ कोर्ट में परिवाद पेश कर सकते हैं।
5 दैनिक भास्कर: अफसर शिकायत न सुने तो हमें शिकायत की कापी मो. 9713169604 पर वाट्सएप करें।
व्यापारी बोले- बैंक ही जिम्मेदार
हम ग्राहकों से कैसे ले सिक्के
सिक्के गिनकर देने और कम निकलने पर स्वयं जिम्मेदारी लेने की पेशकश के बाद बैंक सिक्के लेने तैयार नहीं हैं। बैंक मदद करें तो व्यापारियों भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी को सिक्के लेने में कोई परेशानी नहीं है।
सुरेंद्र जैन मालथौन, जिलाध्यक्ष, अभा व्यापारी संघ
सिक्के लेने से मना नहीं कर सकते
व्यापारी, दुकानदार और बैंक सिक्के लेने से मना कर रहे हैं। यदि ऐसा है तो संबंधित पर भारतीय मुद्रा अधिनियम के तहत एफआईआर की जा सकती है। बैंक से भी जवाब-तलब किया जाएगा।
- दीपक सिंह, कलेक्टर
शिकायत आती है तो कार्रवाई करेंगे
कुछ दिन पहले इस तरह के मामले में निर्देश आए थे। पुलिस स्तर पर इस तरह के मामलों में सीधे कार्रवाई के प्रावधान नहीं हैं लेकिन यदि शिकायत आती है तो कार्रवाई की जाएगी।
- अतुल सिंह, एसपी
दीपेंद्र यादव, अग्रणी बैंक प्रबंधक, सागर
क्या एक, दो के सिक्के बंद हो गए हैं?
-नहीं, ऐसा बिल्कुल नहीं है।
बाजार में इन्हें कोई ले क्यों नहीं रहा है?
-यह व्यापारी और दुकानदार ही बता सकते हैं।
|बैंक सिक्के नहीं ले रहे हैं, ऐसा क्यों?
-ऐसा नहीं है, भारतीय रिजर्व बैंक के नियमानुसार सभी बैंक सिक्के ले रहे हैं।
बैंक कैशियर पर कार्रवाई कब होगी?
-हमें कार्रवाई के अधिकार नहीं है, आरबीआई और जिला प्रशासन से कार्रवाई हो सकती है।
सीएसपी संचालक, बैंक मैनेजर एवं व्यापारियों के साथ सुरक्षा मानकों को लेकर विशेष बैठक
मधेपुरा जिले के मुरलीगंज थाना परिसर में प्रभारी थानाध्यक्ष धनेश्वर मंडल की अध्यक्षता में आज सोमवार को सभी बैंकों के मैनेजर, जिसमें भारतीय स्टेट बैंक मुख्य शाखा, स्टेट बैंक बाजार ब्रांच, सेंट्रल बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक व सीएसपी/सीएससी केंद्र संचालकों के साथ बैठक की गई.
बैठक में कहा गया कि बैंक से पैसा निकालते एवं जमा करते समय तथा व्यापारियों द्वारा अधिक मात्रा में कैश अगर बैंक में जमा कराने जाते हैं या फिर निकालने जाते हैं तो इसकी सूचना थाना को अवश्य दें. जहां तक भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी संभव हो सकेगा सुरक्षा के लिए कदम उठाए जाने की बात बताई.
थानाध्यक्ष ने बैंक अधिकारी एवं कर्मियों को स्पष्ट रूप से निर्देशित करते हुए कहा कि 50 हजार से अधिक की राशि निकासी करने पर सीएसपी संचालक एवं फाइनेंस कम्पनी के कर्मी स्थानीय थाना को इसकी सूचना अवश्य दें, ताकि पुलिस उन्हें सुरक्षा मुहैया करा सके. यदि स्थानीय पुलिस प्रशासन को सूचना दिए बगैर बैंक से 50 हजार व अधिक की राशि निकासी करने के बाद उनके साथ किसी प्रकार की लूटपाट या अन्य दुर्घटना होती है तो पुलिस प्रशासन द्वारा प्राथमिकी के साथ-साथ मामले में संचालक की संलिप्तता होना भी माना जाएगा. जिसके तहत धारा 120 बी अपराधी षड्यंत्र के तहत दर्ज प्राथमिकी में शामिल किया जाएगा. सभी संचालक अपने सीएसपी सेंटर एवं फाइनेंस कार्यालय में कम से कम दो-दो सीसीटीवी कैमरा अवश्य लगावें.
साथ ही उन्होंने सभी बैंक मैनेजरों से आग्रह किया कि संबंधित बैंक के सीएसपी संचालक को ग्रामीण क्षेत्र या जिस क्षेत्र के लिए उन्हें अनुमति दी गई है वह उसी क्षेत्र में अपना सीएसपी संचालित करें, जिससे उसके लोकेशन को ट्रैकिंग करने में आसानी हो सके. मौके पर प्रभारी थानाध्यक्ष धनेश्वर मंडल ने कहा कि सुरक्षा के सभी मानकों को सभी सीएसपी संचालक, व्यापारी, दुकानदार 7 दिनों के अंदर सुरक्षा के लिए निर्देशित किए गए मानकों का अनुपालन करेंगे.
मौके पर सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के मैनेजर अवध कुमार मिश्रा, बैंक ऑफ इंडिया के कुमार अभिनव, केनरा बैंक मैनेजर आशीष कुमार एवं दर्जनों व्यापारी, भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी सीएसपी संचालक, सीएससी संचालक और आभूषण विक्रेता मौजूद थे.
सीएसपी संचालक, बैंक मैनेजर एवं व्यापारियों के साथ सुरक्षा मानकों को लेकर विशेष बैठक Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 23, 2020 Rating: 5
मंडी व्यापारियों को देंगे मोबाइल वॉलेट, ये होंगे फायदे
इंदौर. आइआइएम के प्रोफेसर मंडियों को और बेहतर करने का रोडमैप तैयार कर रहे हैं। इस संबंध में शनिवार को व्यापारियों से सुझाव लिए गए। इस दौरान ई-मंडी को लेकर एक व्यापारी ने यहां तक कह दिया, हम इतने ताकतवर हैं कि मंडी तक नहीं चलने देंगे।
व्यापारियों ने एमडी फैज अहमद किदवाई से कहा, जितनी ताकत आप टैक्स चोरी रोकने में लगाते हैं, उसके बजाय अन्य राज्यों का मॉडल प्रदेश में लागू करें। अन्य राज्य से आने वाली दालों को टैक्स में छूट दी जाना चाहिए। किदवाई ने व्यापारियों को बताया, बहुत जल्द एक मोबाइल वॉलेट लागू किया जा रहा है, जिसके बाद व्यापारी प्रदेश की किसी भी मंडी से ट्रेडिंग कर सकेंगे और सिक्योरिटी राशि भी नहीं देना होगी। उस वॉलेट में आप एडवांस राशि डाल देंगे।
दरअसल, मंडियों को प्रदेश की बेहतर मंडी बनाने के लिए मंडी बोर्ड द्वारा आइआइएम के छात्रों और प्रोफेसर के माध्यम से स्टडी कराई जा रही है। इसके बाद उसे शासन को सौंपा जाएगा। छात्रों और प्रोफेसर द्वारा संभाग की मंडियों के हम्मालों, तुलावटियों व किसानों से चर्चा कर व्यवस्थाओं को समझा गया। अब व्यापारियों से सुझाव के लिए शनिवार को किला मैदान स्थित मंडी बोर्ड के ऑफिस में बैठक की गई। इसमें मंडी बोर्ड के अपर संचालक केदारसिंह, भारसाधक अधिकारी एवं अपर कलेक्टर कैलाश वानखेडे़, मंडी सचिव व उद्योग महासंघ के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल, युवा व्यापारी लवेश शाह, मंडी व्यापारी प्रतिनिधि मनोज काला, प्रेम खंडेलवाल सहित अन्य व्यापारी व उद्यमी मौजूद थे।
ग्रेडिंग लैब जरूरी : व्यापारियों ने कहा, ग्रेडिंग लैब होना चाहिए। इसके लिए प्राइवेट एजेंसी की मदद ली जा सकती है। माश्चर के हिसाब से भाव तय होते हैं। किसान अच्छी क्वालिटी की उपज लेकर आएंगे तो उन्हें बेहतर मूल्य मिलेगा।
व्यापारियों ने कहा, मंडी बोर्ड लीज प्रक्रिया निर्धारित करे। लीज प्रक्रिया है ही नहीं। मंडी बोर्ड ने लीज राशि जमा करने वाले व्यापारियों का स्वागत करना चाहिए। मंडी समिति में एक के बजाय पांच व्यापारी प्रतिनिधि होना चाहिए।
आइआइएम के प्रोफेसर ओंकार ने पूछा, क्या इनकम टैक्स की तर्ज पर मंडी टैक्स में छूट रिबेट मिलना चाहिए तो व्यापारियों ने हां कर दी। जब उन्होंने कहा, इस पर इनकम टैक्स की तरह मंडी को भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी व्यापारी की पूरी जानकारी देना होगी तो साफ इनकार कर दिया।
व्यापारियों ने कहा, शहर के बीच में होने से छावनी अनाज मंडी में आवक कम हो गई। किसान ट्रैफिक में उलझना नहीं चाहते। वे देवास और अन्य मंडियों का रुख करने लगे हैं। प्रशासन द्वारा वाहनों के प्रवेश पर सख्ती से भी दिक्कत हो रही है। पूर्व के समय में भी बदलाव कर दिया गया है। व्यापारियों ने कहा, 2013 में सभी विधायकों व जनप्रतिनिधियों ने लिखित में दिया कि छावनी अनाज मंडी को शहर से बाहर शिफ्ट कर दिया जाए। मंडी के लिए कम से कम २०० एकड़ जमीन होना चाहिए।
व्यापारियों ने कहा, प्रदेश के दाल व्यापारी देश के व्यापारियों से टक्कर ले सकते हैं, इसके लिए प्रदेश में बाहर से आने वाली दालों पर मंडी टैक्स में अन्य राज्य की तर्ज पर पांच साल की छूट दी जाए। हमारे व्यापारी अन्य राज्यों में जाकर दाल मिल चला रहे हैं। भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी यहां छूट नहीं मिल रही है। जब जीएसटी लागू हो गया है तो फिर मंडी बोर्ड चौकियों पर क्यों ताकत लगा रहा है। सुविधाएं बढ़ाए जाने पर जोर दें। मंडी टैक्स कम एक या आधा प्रतिशत होना चाहिए। गोदाम तक माल पहुंचने के बाद टैक्स नहीं लिया जाए।
बैठक के शुरू होने से पहले एमडी किदवाई अपर कलेक्टर वानखेडे़ के साथ बंद कमरे में बैठे थे। इस दौरान उन्हें बताया गया, तीनों मंडी में पानी के कनेक्शन नहीं है। इस पर उन्होंने मंडी सचिव सतीश पटेल को फटकार लगाते हुए कहा, जब 2 से 5 करोड़ के शेड बना सकते हो तो पानी, शौचालय पर राशि क्यों नहीं खर्च कर सकते। मंडी में सीसीटीवी कैमरे लगाने की भी जानकारी ली। बताया गया, प्रवेश और निकासी गेट पर लगाए जा रहे हैं। एमडी ने कहा, रिकॉर्डिंग की व्यवस्था हो, ताकि मंडी में टैक्स चोरी और अवैध वसूली पर रोक लगाई जा सके।
छावनी भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी अनाज मंडी शिफ्ट करने को लेकर एमडी ने व्यापारियों और अधिकारियों से चर्चा की। उन्होंने कहा, पीपीपी मॉडल पर मंडी शहर से बाहर विकसित की जाए। छावनी अनाज मंडी की जमीन की कीमत भी जानी जाए, ताकि हाउसिंग बोर्ड या अन्य एजेंसी को यह जमीन देकर बदले में दो सौ एकड़ जमीन लेकर डेवलप कराया जा सके।
घटती विकास दर के बावजूद उम्मीदें
भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी तीन खबरें अभी सुर्खियों में हैं। पहली, साल की दूसरी तिमाही में विकास की रफ्तार धीमी पड़ी है और जुलाई-सितंबर के दरम्यान विकास दर घटकर 6.3 फीसदी पर आ गई। दूसरी, विश्व बैंक.
भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ी तीन खबरें अभी सुर्खियों में हैं। पहली, साल की दूसरी तिमाही में विकास की रफ्तार धीमी पड़ी भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी है और जुलाई-सितंबर के दरम्यान विकास दर घटकर 6.3 फीसदी पर आ गई। दूसरी, विश्व बैंक ने कहा है कि विदेश में कमा रहे भारतीयों ने इस साल देश में रिकॉर्ड 100 अरब डॉलर भेजे। और तीसरी, विदेशी निवेशकों में बढ़ते विश्वास से भारतीय शेयर बाजार में तेजी कायम है और दिसंबर के पहले दिन भी इसने मजबूत शुरुआत की। क्या यह देश की आर्थिक सेहत के लिए सुखद है? इस प्रश्न का जवाब ढूंढ़ने से पहले हमें मुख्य आर्थिक सलाहकार वीए नागेश्वरन के बयान पर गौर करना चाहिए, जिन्होंने कहा है कि यह वक्त सावधानी से आगे बढ़ने का है।
असल में, संकट के दौरान अर्थव्यवस्था लुढ़कती ही है और यह गिरावट जितनी तेज होती है, अगले साल उछाल उतनी ही अधिक दिखती है। इसी कारण ‘विकास दर’ के बजाय ‘सकल घरेलू उत्पाद के स्तर’ से तुलना करने की वकालत की जाती है और महामारी से पहले, यानी 2019-20 के बरअक्स आज हमारा विकास बहुत ज्यादा नहीं दिखता। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अगली दोनों तिमाही में कम वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। मगर चिंता की बात महज वृद्धि दर नहीं है। अर्थव्यवस्था में कई सेक्टर अब भी बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं। फिर, कृषि को छोड़कर तिमाही के आंकड़ों में असंगठित क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता, जिसके कारण उसकी सही तस्वीर सामने नहीं आ पाती। हालांकि, इस बार कृषि के आंकड़े भी भरोसा नहीं जगा रहे। इस साल दूसरी तिमाही में पूर्वी भारत के कई हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति थी। बिहार, बंगाल, ओडिशा जैसे कई धान-उत्पादक राज्यों में बुआई भी कम की गई। मगर, दूसरी तिमाही के आंकड़े बता रहे हैं कि कृषि में करीब साढ़े चार फीसदी की वृद्धि हुई है, जो समझ से परे है।
दूसरी तिमाही के आंकडे़ यह मुनादी कर रहे हैं कि संगठित क्षेत्र अब रफ्तार पकड़ने लगा है, लेकिन इसकी कीमत असंगठित क्षेत्र चुका रहा है, क्योंकि उसकी मांग संगठित क्षेत्र ने हड़प ली है। बावजूद इसके खनन और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में नकारात्मक वृद्धि चिंताजनक है। सर्विस सेक्टर ने अच्छा प्रदर्शन किया है, क्योंकि पिछले साल इसी तिमाही में कोरोना की दूसरी लहर में यह बमुश्किल सांस ले पा रहा था। हां, विमानन कंपनियां अब भी यात्रियों के मामले में 2019-20 के स्तर तक नहीं पहुंच सकी हैं।
देखा जाए, तो शेयर बाजार में तेजी की बड़ी वजह यही है। रिजर्व बैंक ने भारतीय शेयर बाजार की 2,700 कंपनियों का जो आंकड़ा जारी किया है, उसके मुताबिक, इन कंपनियों की बिक्री में 41 फीसदी और लाभ में तकरीबन 20 प्रतिशत का उछाल आया है। इनके फायदे निवेशकों को लुभा रहे हैं। चूंकि बैंकों की ब्याज दर बढ़ने के बावजूद अब भी कम है, इसलिए संगठित क्षेत्र के वेतनभोगियों की बचत शेयर बाजार में पहुंच गई है। आंकड़ों की मानें, तो बैंकों से निकासी बढ़ी है, लेकिन उस अनुपात में पैसे जमा नहीं हो रहे। विदेशी निवेशक भी इसके आकर्षण से नहीं बच पाए हैं। स्थिति यह है कि अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों में बैंक-दर में वृद्धि के बावजूद तीन-साढ़े तीन फीसदी तक रिटर्न मिल पाता है, जबकि भारत में शेयर बाजार से 10 फीसदी तक रिटर्न संभव है।
इससे यह भ्रम नहीं पालना चाहिए कि देश में सब कुछ बेहतर है। संगठित क्षेत्र अपने बूते यह सब नहीं कर रहा। पिछले कुछ महीनों में असंगठित क्षेत्र भारतीय व्यापारियों के लिए जमा और निकासी की कई कंपनियां दम तोड़ चुकी हैं। हिंदुस्तान युनिलिवर लिमिटेड की एक रिपोर्ट कहती है कि उनका मार्केट शेयर इसलिए बढ़ा, क्योंकि छोटी-छोटी कंपनियां परिस्थितियों से मुकाबला नहीं कर सकीं और उनकी मांग संगठित क्षेत्र के हिस्से में आ गई। यह सभी उद्योगों में हुआ है। पारले-जी बिस्कुट की बिक्री ही इसलिए बढ़ी, क्योंकि छोटी-छोटी कंपनियां प्रतिस्पद्र्धा से बाहर हो चुकी हैं। रही बात, विदेश से भारतीयों द्वारा भेजे जाने वाले धन की, तो मूलत: दो तबके को यह सहूलियत हासिल है। एक संपन्न तबका है, जिसके परिजन इसलिए विदेश से पैसे भेजते हैं, ताकि भारत में उनका कुछ निवेश हो सके। यह निवेश शेयर बाजार में होता है या फिर रियल एस्टेट में। जबकि, दूसरा तबका विपन्न है, जिसके परिजन इस उम्मीद में पैसे भेज रहे हैं कि संकट के दौर में उनकी जितनी खराब हालत हुई, उससे वे पार पा सकें।
वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) भी अनवरत भारतीय अर्थव्यवस्था के पांव खींच रहा है। इससे सूक्ष्म व लघु उद्योग पार नहीं पा रहे। बेशक इन दोनों को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन संगठित क्षेत्र की कंपनियों को मिलने वाले इनपुट क्रेडिट इनके लिए मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं। इनपुट क्रेडिट जैसी सुविधा न रहने के कारण इनके उत्पाद महंगे हो गए हैं। लिहाजा, जीएसटी में सुधार बहुत जरूरी है। इसे ‘लास्ट प्वॉइंट टैक्स’ बना देना चाहिए, ताकि इनपुट क्रेडिट जैसी व्यवस्था खत्म हो सके।
बाजार में मांग को बढ़ाना आवश्यक है। बेहतर अर्थव्यवस्था के लिए असंगठित और संगठित क्षेत्रों को साथ मिलकर चलना चाहिए, लेकिन अभी संगठित क्षेत्र में पर्याप्त तेजी दिख रही है। जाहिर है, असंगठित क्षेत्र को समर्थन की दरकार है। मध्यम, लघु व सूक्ष्म कंपनियों के लिए जब भी नीतियां बनाई जाती हैं, तो फायदा मध्यवर्ती कंपनियां उठा ले जाती हैं। हमें सूक्ष्म व लघु कंपनियों के लिए विशेष नीतियां बनानी होंगी। यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि एमएसएमई सेक्टर के 97.5 फीसदी कामगार सूक्ष्म व लघु कंपनियों में ही काम करते हैं।
इसी तरह, 45 फीसदी कामगार कृषि क्षेत्र से जुड़े हैं। इनके हाथ इतने मजबूत करने होंगे कि उनमें खरीद की क्षमता बढ़े, तभी मांग बढ़ेगी। संगठित क्षेत्र को भी इससे लाभ होगा। आपूर्ति-शृंखला की मुश्किलें भी इससे कम होंगी। हम बेशक बाहरी कारकों (चीन की सख्त कोविड-नीति, यूक्रेन जंग) को काबू नहीं कर सकते, पर घरेलू प्रयास जरूर कर सकते हैं। चूंकि अभी कर-राजस्व की स्थिति अच्छी है, तो क्यों न पेट्रो उत्पादों पर वैट कम करने के प्रयास किए जाएं, ताकि महंगाई में कमी हो? अभी मौद्रिक नीति की नहीं, वित्त नीति की जरूरत है। अगर रिजर्व बैंक यूं ही दरों को बढ़ाता रहा, तो बाजार में मांग कम हो जाएगी। यानी, इस समय वित्त मंत्रालय को मोर्चा संभालना चाहिए।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)